सागर। प्रदेश के नायब तहसीलदार और तहसीलदारों की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी होने जा रही है. अब प्रदेश के नायब तहसीलदार और तहसीलदारों को न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के तहत संरक्षण देने की व्यवस्था की जा रही है. अधिनियम का संरक्षण ना होने के कारण नायब तहसीलदार और तहसीलदारों को उनके फैसलों के खिलाफ सिविल या दांडिक कार्रवाई का सामना करना पड़ता था. इस फैसले के बाद नायब तहसीलदार और तहसीलदार न्यायधीश की भूमिका में ही निर्णय ले सकेंगे.
न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 का मिलेगा संरक्षण
प्रदेश के तहसीलदार और नायब तहसीलदारों को न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के तहत संरक्षण देने की 30 साल पुरानी मांग अब पूरी हो रही है. प्रदेश के राजस्व व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सहमति के बाद राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने 25 मार्च को इस मामले में आदेश जारी किए हैं. प्रदेश के समस्त कलेक्टर को जारी आदेश में कहा गया है कि अब राजस्व न्यायालयों के सभी पीठासीन अधिकारी जो भू राजस्व संहिता की धारा 31 अथवा किसी विधिक प्रावधानों के तहत अर्ध न्यायिक या न्यायिक कार्रवाई कर रहे हैं, वह न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के अंतर्गत न्यायाधीश हैं और उन्हें इस तरह की कार्रवाई के दौरान किए गए किसी भी कार्य के खिलाफ सिविल और दांडिक कार्रवाई से अधिनियम की धारा 3(2) के अधीन रहते हुए संरक्षण प्राप्त है.
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अब फैसलों पर नहीं होगी सिविल और दांडिक कार्रवाई
दरअसल न्यायधीश संरक्षण अधिनियम 1985 में इस तरह के प्रावधान पहले से थे, लेकिन इसके बावजूद नायब तहसीलदार और तहसीलदार के फैसले के खिलाफ उनके निर्णय पर उन्हें सिविल अथवा दांडिक कार्रवाई का सामना करना पड़ता था. राजस्व विभाग के इस निर्णय के बाद तहसीलदार और नायब तहसीलदार न्यायाधीश की भूमिका में निर्णय लेंगे.