नरसिंहपुर। कहते हैं कि शिक्षा हासिल कर कोई भी इंसान अपना भविष्य बदल सकता है और एक शिक्षित व्यक्ति समाज को भी अच्छे विचार दे सकता है. इस सब के लिए उसे बस यह ठानना होता है वह ये कर सकता है. कुछ ऐसा ही ठान लिया नरसिंहपुर के छोटे से गांव तुमड़ा के एक शिक्षक ने और जुट गया शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करने. शिक्षक हल्केवीर ने अपने शिक्षा के अस्त्र से ऐसी वीरता और नवाचार जिसकी खूब तारीफ हो रही है. इस शिक्षक ने पूरे गांव को ही पाठशाला बना दिया है कैसे? देखें इस रिपोर्ट में
तारीफ के काबिल है प्राइमरी टीचर का यह नवाचार
नरसिंहपुर के गांव तुमड़ा में प्राइमरी शिक्षक हल्केवीर कोरोना काल में बच्चों के स्कूल बंद होने से काफी परेशान थे. उन्हें डर था कि बच्चे स्कूल नहीं आ पा रहे हैं वे पिछला पढ़ाया हुआ सबकुछ भूल जाएंगे फिर बड़ी परेशानी होगी. उनके इसी डर ने ही उन्हें इस नवाचार को करने की प्रेरणा दी. बस फिर क्या था उन्हें पूरे गांव को ही स्कूल बना देने की ठानी. उन्होंने गांव की हर चीज, पेड़, बैलगाड़ी के पहिए, घरों की दीवारों सहित गांव में मौजूद हर चीज को शिक्षा देने का माध्यम बना दिया. आज इस शिक्षक के नवाचार के जरिए ही गांव के बच्चे न केवल शिक्षा का ककहरा सीख रहे हैं बल्कि घरों में रहकर ही बुनियादी शिक्षा भी हासिल कर रहे हैं.
ब्लैक बोर्ड बनीं घरों की दीवारें
जब घरों की दीवारें ही ब्लैकबोर्ड बन जाए और घर आंगन और गांव में यहां वहां रखी हर बेकार चीज शिक्षा देने में अहम रोल निभाए तो फिर उस गांव के बच्चों की शिक्षा की बुनियाद को मजबूत होने से कोई नही रोक सकता. तुमड़ा गांव में शिक्षा के क्षेत्र में हुआ यह नवाचार आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. पिछले डेढ़ साल में कोरोना संकट काल में प्राइमरी स्कूल बंद होने से गरीब परिवारों के बच्चों की नींव कमजोर होने लगी थी और वह शिक्षा से दूर होते जा रहे थे. पढ़ाई का एकमात्र साधन ऑनलाइन पढ़ाई थी, लेकिन झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के परिजनों के पास ना एंड्राइड मोबाइल और ना ही टीवी ऐसे में वे नया पढ़ना तो दूर अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को भी भूलते जा रहे थे लेकिन, अब इस गांव की तस्वीर बदली हुई है और वो बिना किसी सरकारी मदद के.
शिक्षक हल्केवीर ने खुद ही की मेहनत
शिक्षक हल्कीवीर ने गांव के बच्चों को दी जाने वाली प्राथमिक शिक्षा की तस्वीर बदलने का जिम्मा खुद ही उठाया. किताबी ज्ञान को दीवारों पर उतारने के लिए उन्होंने खुद ही अपने हाथों में ब्रश और पेंट उठाया और जुट गए गांव और गरीब परिवारों के घरों की दीवारों पर अक्षर ज्ञान को उतारने. आज यहां बच्चे खेल खेल में शिक्षा की ज्योति से अपनी अज्ञानता के अंधकार को दूर कर रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं. बच्चों के परिजन भी शिक्षक के प्रयासों से बेहद खुश है क्योंकि उन्हें मास्टरजी के मेहनत तो काबिले तारीफ लगती ही है अपने बच्चों का भविष्य भी संवरता हुआ नजर आता है.