इंदौर। क्या कोई व्यक्ति आधुनिक सुख-सुविधाओं और संसाधनों के बिना प्रकृति की गोद में खुशी-खुशी जीवन गुजार सकता है, आधुनिक दौर में ऐसा संभव नहीं लगता, पर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में इस कल्पना को इंदौर की समाज सेविका पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन ने साकार कर दिखाया है. मगिलिगन की जीवनशैली और उनका घर आत्मनिर्भरता का ऐसा जीवंत उदाहरण है, जहां प्रकृति से तालमेल के साथ प्राकृतिक ऊर्जा को सहेजते हुए जरूरत की हर सामग्री घर के आस-पास ही उपलब्ध हो जाती है.
तीन दशक पहले जनक और उनके ब्रिटिश मूल के पति जिमी मगिलिगन इंदौर आए थे और यहीं पर बरली महिला ग्रामीण विकास संस्थान का संचालन कर समाजसेवा करने लगे. इसके बाद ये दोनों इंदौर के सनावड़िया गांव में रच-बस गए. अपने संस्थान की बदौलत आदिवासी अंचल की करीब 6 हजार बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा किया. जब दोनों संस्थान से रिटायर हुए तो अपने घर के रूप में एक ऐसा केंद्र विकसित किया, जो आज के दौर में आत्मनिर्भरता का सबसे जीवंत उदाहरण है.
लाइट के स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा
इंदौर के सनावड़िया गांव की एक पहाड़ी पर मौजूद इनका घर सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के संयोजन का अनूठा केंद्र है. घर में लगे पवन ऊर्जा प्लांट से रोजाना 2 किलोवाट बिजली का उत्पादन होता है, जिसे इनवर्टर के जरिए संरक्षित किया जाता है. इसके अलावा घर में खाना पकाने के लिए मगिलिगन सोलर कुकर का इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने घर में ही ऑटो ट्रैकिंग सोलर कुकर स्थापित कर रखा है, जो जर्मनी के सेफलर मॉडल पर आधारित है. सोलर कुकर में खाना बनाने के लिए चूल्हे के आसपास भी नहीं बैठना पड़ता है, जिससे समय की बचत होती है. वहीं बारिश के दिनों में जब सोलर कुकर काम नहीं करता तो ये परिवार रद्दी पेपर और गोबर को प्रेस कर बनाए जाने वाले सूखे ब्रैकेट को कंडों की तरह चूल्हे में जलाकर खाना तैयार करता है.
सूखे बोरिंग को किया पुनर्जीवित
जनक मगिलिगन ने पानी की आपूर्ति के लिए एक बड़ा तालाब खुदवाया है, जिसमें बारिश का पानी जाने से जल स्तर बढ़ा और बगल में सूख चुका बोरिंग पुनर्जीवित हो गया. अब इसी बोरिंग से जनक का परिवार पानी की जरूरतें पूरी करता है. घर के आस-पास की जमीन में जरूरत के मुताबिक कई प्रकार के फलदार और औषधि वाले पौधे लगाए गए हैं. जिसमें रीठा, नीम, एलोवेरा और कई अन्य औषधीय पेड़-पौधे हैं. इसके अलावा कई तरह की सब्जियों की भी खेती यही की जाती है. साथ ही वस्तु विनिमय प्रणाली घर के किचन से निकले पानी से पुदीना, बैगन, टमाटर, प्याज, लहसुन आदि गार्डन में ही उगाया जाता है. इन सब्जियों में से अधिकांश को सोलर ड्रायर से ही सुखाकर साल भर उपयोग में लाया जाता है. जनक भारतीय संस्कृति में प्रचलित वस्तु विनिमय प्रणाली को भी जिंदा रखी हैं. वे अपनी जमीन में गेहूं की फसल उगाती हैं और उसे घर की चक्की में ही पीस कर उपयोग करती है, बचे हुए गेहूं के बदले पड़ोसी किसानों से दालें और अन्य सामग्री ले लेती हैं.
ड्रेनेज के पानी से फलोद्यान
जनक और जिमी के घर के ड्रेनेज से जिस पानी की निकासी होती है, वो सेफ्टी टैंक से खाद के रूप में परिवर्तित कर ड्रिप इरिगेशन पाइप के जरिए फलोद्यान के काम आता है, जिससे यहां तरह-तरह के फलों की पैदावार साल भर होती है, इन्हीं फलों को सुखाकर जैम और सूखे मेवे भी तैयार किए जाते हैं. वहीं दूध-घी के लिए जनक मगिलिगन ने घर में गायों को भी पाल रखा है, जिससे साल भर शुद्ध दूध, दही और घी की आपूर्ति होती है. गायों की देखभाल जनक के साथ सहयोगी के रूप में सपरिवार रहने वाले मंगला और राजेंद्र करते हैं.
जनक पलटा मगिलिगन को मिले सम्मान
वर्ष 2001 में उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार, राष्ट्रीय अम्बेडकर साहित्य सम्मान और ग्रामीण एवं जनजातीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार मिला
वर्ष 2005 में महिला समाजसेवी सम्मान मिला
वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार मिला
वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश सरकार ने 'राजमाता विजयराजे सिंधिया समाजसेवा पुरस्कार' मिला
2010 में लक्ष्मी मेनन साक्षरता पुरस्कार मिला
2011 में नवोन्मुखी सामाजिक शिक्षक पुरस्कार मिला
2012 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला
2013 में सौहार्द पुरस्कार के साथ-साथ वूमन ऑफ सब्सटेंस अवॉर्ड भी मिल चुका है.
26 वर्षों तक बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान के निदेशक के रूप में सेवाएं देने वाली जनक विश्व शांति और विश्व एकता के लिए कार्य कर रही हैं. इसके अलावा मगिलिगन पर्यावरण पर भी अच्छा काम कर रहे हैं. मगिलिगन को समाज सेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार दिया है, साथ ही मध्यप्रदेश सरकार ने भी उन्हें मध्यप्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित किया है. इसके अलावा मगिलिगन को समय-समय पर कई अवार्ड और सम्मान मिल चुके हैं.