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क्षिप्रा में 'तर्पण', पानी से संक्रमण की आशंका, 15 लाख की आबादी को होती है सप्लाई - bone immersion at kshipra

पिंडदान और तर्पण के बाद प्रदूषित हो रहे क्षिप्रा के जल को नर्मदा- क्षिप्रा लिंक प्रोजेक्ट के तहत पीने के पानी के बतौर 15 लाख से ज्यादा की आबादी वाले देवास में सप्लाई किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में दूषित पानी के जरिए देवास में भी संक्रमण फैलने की आशंका है. वहीं नदी किनारे के हालातों को देखते हुए इस क्षेत्र के लोग भी संक्रमण की आशंका को लेकर दहशत में हैं.

bone immersion at kshipra river
क्षिप्रा में 'तर्पण', पानी से संक्रमण की आशंका
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Published : May 19, 2021, 9:30 PM IST

देवास। कोरोना महामारी से प्रदेश में हजारों लोगों की मौत हुई. इन शवों का जैसे तैसे अंतिम संस्कार भी हो गया. अब परिजनों के सामने समस्या है मृत परिजनों के अस्थि विसर्जन, पिंडदान और तर्पण की. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक नदियों के किनारे ही पिंडदान और तर्पण किया जाता है. लोग प्रदेश में बहने वाली नदियों की ओर ही रूख कर रहे हैं. जिसका नतीजा हो रहा है नदी के किनारे ही कोरोना संक्रमित मरीजों के कपड़े और दूसरा सामान वहीं पड़ा छोड़ दिया जाता है. देवास के पास बहने वाली पवित्र नदी क्षिप्रा किनारे भी लोग बड़ी संख्या में अपने परिजनों का पिंडदान करने आते हैं. जिससे नदी के पानी में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. खास बात यह है कि क्षिप्रा का यह पानी देवास और इंदौर को सप्लाई किया जाता है. एक रिपोर्ट

क्षिप्रा में 'तर्पण', पानी से संक्रमण की आशंका

लाखों लोगों पर मंडरा रहा है संक्रमण का खतरा

कोरोना से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर प्रदूषण का संकट गहरा रहा है. शिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद सैकड़ों लोग यहां प्रतिदिन कोरोना से मारे जाने वाले लोगो का पिंडदान और तर्पण करने पहुंच रहे हैं. घाट की स्थिति यह है कि यहां संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों का तर्पण करते हैं. नदी में अस्थियां, बाल, जूते चप्पल और संक्रमितों के कपड़ों तक का विसर्जन किया जा रहा है. इससे नदी का पानी तो अशुद्ध हो ही रहा है चिंता की बात यह है कि इसी पानी की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के तौर पर शहर के लाखों लोगों को की जा रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है. देवास जिले में कोरोना के नियंत्रण और संक्रमण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी देवास जिला प्रशासन की है. लेकिन जब इस मामले में ईटीवी भारत ने कलेक्टर देवास चंद्रमौली शुक्ला को सूचना देने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका. जिसके बाद देवास नगर निगम आयुक्त से बात की गई. देवास नगर निगम के आयुक्त दावा करते हैं कि शहर को सप्लाई होने वाला पानी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है उसके बाद ही सप्लाई होती है. देवास नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.

'कोरोना घाट' का खतरा : नर्मदा में अस्थि विसर्जन करने वालों की संख्या 4 गुना बढ़ी

वाटर फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस
मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ एवं ख्यात शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक डॉ राम श्रीवास्तव के अनुसार

नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है, उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है. फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है, यदि कोरोनावायरस को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है तब ऐसी स्थिति में ज्यादा क्लोरीन होने के चलते पानी पीने योग्य नहीं रहेगा .जहां तक शिप्रा नदी का सवाल है तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है इसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

डॉ राम श्रीवास्तव ,वायरोलॉजी विशेषज्ञ ,मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी

रोजाना क्षिप्रा पर आते हैं 200-300 लोग

तर्पण और विसर्जन की परंपरा को पूरा करने के लिए इंदौर देवास के बीच के शिप्रा घाट पर सुबह 3:00 बजे से ही लोग पिंडदान और तर्पण करने पहुंचने लगते हैं. ताकि पुलिस प्रशासन को इसकी भनक ही न लगे. सामाजिक मान्यता के चलते पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में रहते हुए भी लोग चोरी छुपे शिप्रा में डुबकी लगा रहे हैं. क्षिप्रा बचाओ समिति से जुड़े एक कार्यकर्ता बताते हैं कि-

यहां 200 से ढाई सौ लोगों का तर्पण किया गया है. इसके अलावा मृतकों के कपड़े और दूसरी मेडिकल सामग्री नदी में ही विसर्जित की गई है. इतना ही नहीं मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर से लेकर दवाइयां तक नदी के पानी में बहा दी गई हैं .जो लोग तर्पण करने पहुंच रहे हैं उन्हें ना तो नदी की साफ सफाई की चिंता है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमण की.

दीपक गोयल, कार्यकर्ता शिप्रा बचाओ समिति

खुलासे के बाद जागा प्रशासन

ईटीवी भारत इस मामले का खुलासा करते हुए जब नगर निगम आयुक्त विशाल चौहान को जानकारी दी तो उनकी दलील थी कि जहां से नगर निगम पानी संप करता है वह जगह तर्पण वाली जगह से काफी दूर है. देवास शहर में ट्रीटमेंट के बाद ही पानी सप्लाई किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि नदी के घाट पर कोरोना काल में बड़ी संख्या में तर्पण हुए हैं, लेकिन अब मौतें घटने से तर्पण भी कम हुए हैं. जहां तक संक्रमित कपड़े और सामग्री के विसर्जन का सवाल है तो वहां जिला पंचायत और नगर निगम द्वारा अब कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है जिससे कि नदी के जल को संक्रमण से बचाया जा सके. उन्होंने बताया कि जो भी अब नदी में अस्थियां और अन्य अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित करता पाया जाएगा उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.

नरसिंहपुर में नर्मदा में हो रहा तर्पण

ईटीवी की भारत की टीम ने नरसिंहपुर जिले के झांसी घाट के करीब रतन धन घाट की भी व्यवस्था देखी तो यहां पर साफ-सफाई नजर आई यहां पर जागरूक लोगों द्वारा घाट को साफ़ स्वच्छ रखा जा रहा है. ग्राम पंचायत की ओर से भी घाट की साफ सफाई की जा रही है. यहां पर सैकड़ों की संख्या में सुबह से लेकर शाम तक लोग तर्पण और मुंडन कराने आते हैं, इसके बावजूद भी यहां गंदगी नजर नहीं आई इक्का-दुक्का जगह पर ही जूते चप्पल और कपड़े नजर आए. इस घाट पर साफ सफाई रखने के लिए सारे कचरे को इकट्ठा करके यहां के लोग जला देते हैं. जिससे यहां साफ-सफाई बनी रहती है.

उज्जैन में तर्पण के लिए RTPCR जरूरी

उज्जैन में क्षिप्रा में तर्पण को लेकर बीते 28 अप्रैल को कलेक्टर ने आदेश जारी किए हुए हैं शहर में पंडितों को सिर्फ उज्जैन निवासी 2 श्रद्धालुओं का पूजन करवाने के लिए छूट है. इसके अलावा दोनों श्रद्धालुओं की आरटीपीसीआर टेस्ट में निगेटिव रिपोर्ट जरुरी है. इन शर्तो के साथ पंडितों को पिंड दान कराने की छूट दी गई है.

रायसेन में नर्मदा में पूजा, स्नान पर है प्रतिबंध

रायसेन जिले में कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव को देखते हुए जिला कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी उमाशंकर भार्गव द्वारा दण्ड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत जिले में नर्मदा नदी के समस्त घाटों, अन्य नदियों तथा तालाबों पर पूजा एवं स्नान इत्यादि गतिविधियों को आगामी आदेश तक तत्काल प्रभाव से पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है.

देवास। कोरोना महामारी से प्रदेश में हजारों लोगों की मौत हुई. इन शवों का जैसे तैसे अंतिम संस्कार भी हो गया. अब परिजनों के सामने समस्या है मृत परिजनों के अस्थि विसर्जन, पिंडदान और तर्पण की. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक नदियों के किनारे ही पिंडदान और तर्पण किया जाता है. लोग प्रदेश में बहने वाली नदियों की ओर ही रूख कर रहे हैं. जिसका नतीजा हो रहा है नदी के किनारे ही कोरोना संक्रमित मरीजों के कपड़े और दूसरा सामान वहीं पड़ा छोड़ दिया जाता है. देवास के पास बहने वाली पवित्र नदी क्षिप्रा किनारे भी लोग बड़ी संख्या में अपने परिजनों का पिंडदान करने आते हैं. जिससे नदी के पानी में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. खास बात यह है कि क्षिप्रा का यह पानी देवास और इंदौर को सप्लाई किया जाता है. एक रिपोर्ट

क्षिप्रा में 'तर्पण', पानी से संक्रमण की आशंका

लाखों लोगों पर मंडरा रहा है संक्रमण का खतरा

कोरोना से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर प्रदूषण का संकट गहरा रहा है. शिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद सैकड़ों लोग यहां प्रतिदिन कोरोना से मारे जाने वाले लोगो का पिंडदान और तर्पण करने पहुंच रहे हैं. घाट की स्थिति यह है कि यहां संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों का तर्पण करते हैं. नदी में अस्थियां, बाल, जूते चप्पल और संक्रमितों के कपड़ों तक का विसर्जन किया जा रहा है. इससे नदी का पानी तो अशुद्ध हो ही रहा है चिंता की बात यह है कि इसी पानी की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के तौर पर शहर के लाखों लोगों को की जा रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है. देवास जिले में कोरोना के नियंत्रण और संक्रमण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी देवास जिला प्रशासन की है. लेकिन जब इस मामले में ईटीवी भारत ने कलेक्टर देवास चंद्रमौली शुक्ला को सूचना देने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका. जिसके बाद देवास नगर निगम आयुक्त से बात की गई. देवास नगर निगम के आयुक्त दावा करते हैं कि शहर को सप्लाई होने वाला पानी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है उसके बाद ही सप्लाई होती है. देवास नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.

'कोरोना घाट' का खतरा : नर्मदा में अस्थि विसर्जन करने वालों की संख्या 4 गुना बढ़ी

वाटर फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस
मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ एवं ख्यात शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक डॉ राम श्रीवास्तव के अनुसार

नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है, उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है. फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है, यदि कोरोनावायरस को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है तब ऐसी स्थिति में ज्यादा क्लोरीन होने के चलते पानी पीने योग्य नहीं रहेगा .जहां तक शिप्रा नदी का सवाल है तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है इसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

डॉ राम श्रीवास्तव ,वायरोलॉजी विशेषज्ञ ,मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी

रोजाना क्षिप्रा पर आते हैं 200-300 लोग

तर्पण और विसर्जन की परंपरा को पूरा करने के लिए इंदौर देवास के बीच के शिप्रा घाट पर सुबह 3:00 बजे से ही लोग पिंडदान और तर्पण करने पहुंचने लगते हैं. ताकि पुलिस प्रशासन को इसकी भनक ही न लगे. सामाजिक मान्यता के चलते पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में रहते हुए भी लोग चोरी छुपे शिप्रा में डुबकी लगा रहे हैं. क्षिप्रा बचाओ समिति से जुड़े एक कार्यकर्ता बताते हैं कि-

यहां 200 से ढाई सौ लोगों का तर्पण किया गया है. इसके अलावा मृतकों के कपड़े और दूसरी मेडिकल सामग्री नदी में ही विसर्जित की गई है. इतना ही नहीं मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर से लेकर दवाइयां तक नदी के पानी में बहा दी गई हैं .जो लोग तर्पण करने पहुंच रहे हैं उन्हें ना तो नदी की साफ सफाई की चिंता है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमण की.

दीपक गोयल, कार्यकर्ता शिप्रा बचाओ समिति

खुलासे के बाद जागा प्रशासन

ईटीवी भारत इस मामले का खुलासा करते हुए जब नगर निगम आयुक्त विशाल चौहान को जानकारी दी तो उनकी दलील थी कि जहां से नगर निगम पानी संप करता है वह जगह तर्पण वाली जगह से काफी दूर है. देवास शहर में ट्रीटमेंट के बाद ही पानी सप्लाई किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि नदी के घाट पर कोरोना काल में बड़ी संख्या में तर्पण हुए हैं, लेकिन अब मौतें घटने से तर्पण भी कम हुए हैं. जहां तक संक्रमित कपड़े और सामग्री के विसर्जन का सवाल है तो वहां जिला पंचायत और नगर निगम द्वारा अब कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है जिससे कि नदी के जल को संक्रमण से बचाया जा सके. उन्होंने बताया कि जो भी अब नदी में अस्थियां और अन्य अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित करता पाया जाएगा उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.

नरसिंहपुर में नर्मदा में हो रहा तर्पण

ईटीवी की भारत की टीम ने नरसिंहपुर जिले के झांसी घाट के करीब रतन धन घाट की भी व्यवस्था देखी तो यहां पर साफ-सफाई नजर आई यहां पर जागरूक लोगों द्वारा घाट को साफ़ स्वच्छ रखा जा रहा है. ग्राम पंचायत की ओर से भी घाट की साफ सफाई की जा रही है. यहां पर सैकड़ों की संख्या में सुबह से लेकर शाम तक लोग तर्पण और मुंडन कराने आते हैं, इसके बावजूद भी यहां गंदगी नजर नहीं आई इक्का-दुक्का जगह पर ही जूते चप्पल और कपड़े नजर आए. इस घाट पर साफ सफाई रखने के लिए सारे कचरे को इकट्ठा करके यहां के लोग जला देते हैं. जिससे यहां साफ-सफाई बनी रहती है.

उज्जैन में तर्पण के लिए RTPCR जरूरी

उज्जैन में क्षिप्रा में तर्पण को लेकर बीते 28 अप्रैल को कलेक्टर ने आदेश जारी किए हुए हैं शहर में पंडितों को सिर्फ उज्जैन निवासी 2 श्रद्धालुओं का पूजन करवाने के लिए छूट है. इसके अलावा दोनों श्रद्धालुओं की आरटीपीसीआर टेस्ट में निगेटिव रिपोर्ट जरुरी है. इन शर्तो के साथ पंडितों को पिंड दान कराने की छूट दी गई है.

रायसेन में नर्मदा में पूजा, स्नान पर है प्रतिबंध

रायसेन जिले में कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव को देखते हुए जिला कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी उमाशंकर भार्गव द्वारा दण्ड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत जिले में नर्मदा नदी के समस्त घाटों, अन्य नदियों तथा तालाबों पर पूजा एवं स्नान इत्यादि गतिविधियों को आगामी आदेश तक तत्काल प्रभाव से पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है.

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