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चीन की चालाकी पर भारत सतर्क, आत्मनिर्भरता के लिए बनाएगा तीन ड्रग पार्क - हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन

चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद का फार्मा सेक्टर पर बुरा असर पड़ रहा है. चीन ने दवाओं के कच्चे माल का दाम 20 से 30 फीसदी बढ़ा दिया है, जिस पर भारत सरकार ने आत्मनिर्भरता के तहत तीन बल्क ड्रग पार्क बनाने का एलान किया है.

Bulk drug parks to be built in India
भारत में बनेंगे बल्क ड्रग पार्क
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Published : Jul 1, 2020, 1:25 PM IST

इंदौर। गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के बाद भारत-चीन संबंधों में बने तनावपूर्ण हालातों के मद्देनजर चीन ने भारत के फार्मा सेक्टर को जोर का झटका दिया है, चीन ने भारत को निर्यात करने वाली दवाओं के कच्चे माल का दाम 20 से 30% तक बढ़ा दिया है. चीनी फार्मा कंपनियों के फैसले के बाद भारत में अब कई दवाएं न केवल महंगी होंगी, बल्कि बाजार में उनकी कमी भी होने का अनुमान है. भारत सरकार ने इस फैसले के मद्देनजर तीन बल्क ड्रग पार्क बनाने की घोषणा की है, साथ ही फार्मा सेक्टर के लिए राहत पैकेज देने पर सहमति भी जताई है.

भारत में बनेंगे बल्क ड्रग पार्क

इंदौर, पीथमपुर, उज्जैन और ग्वालियर में 300 से ज्यादा दवा कंपनियां हैं, जिन का टर्नओवर करीब 5 हजार करोड़ सालाना है. इनमें से अधिकांश कंपनियां कई जीवन रक्षक दवाएं बनाने के लिए कच्चा माल चीनी कंपनियों से खरीदती हैं. जिससे विभिन्न दवा कंपनियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले करीब 25 हजार से ज्यादा लोग दवाओं का उत्पादन करते हैं और प्रदेश में तैयार की गई दवाएं अफ्रीका, लीबिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, जापान, रसिया सहित एशिया महाद्वीप के विभिन्न देशों में निर्यात की जाती है.

कोरोना काल में दुनिया भर में की सप्लाई

प्रदेश का फार्मा सेक्टर देश के दवा निर्माण में कितना महत्व रखता है, इसका उदाहरण कोरोना काल में देखने को मिला, जब इंदौर, पीथमपुरा और रतलाम से तैयार की गई हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा कई देशों में भेजी गई. जिसका उपयोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है. अमेरिका सरकार ने इस दवा की मांग की थी तो यहीं से भारत सरकार ने दवा तैयार कर अमेरिका भिजवाया था.

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम

1990 तक ऐसी तमाम दवाओं के लिए कच्चा माल भारतीय फार्मा सेक्टर में ही तैयार होता था, लेकिन व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते चीन ने भारत में कास्ट रेट से भी कम दाम पर माल भेजना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में भारतीय दवा कंपनियां चीन के भावों से मुकाबला नहीं कर पाईं और धीरे-धीरे कई कंपनियों ने जीवन रक्षक दवाओं के लिए कच्चा माल चीन से ही खरीदना शुरू कर दिया. बीते कुछ सालों तक भारतीय फार्मा सेक्टर में कच्चे माल की निर्भरता 85 फीसदी तक थी, जो अब घटकर 65 फीसदी हो चुकी है. अब चीन की मोनोपोली खत्म करने की दिशा में मोदी सरकार ने तीन बल्क ड्रग पार्क स्थापित करने का फैसला किया है. इसके लिए 16 हजार करोड़ का अलग से आर्थिक पैकेज निर्धारित किया गया है.

महंगी होंगी कई दवाएं

चीन द्वारा कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के बाद भारतीय बाजारों में भी दवाओं के दाम 30% से 50% तक बढ़ जाएंगे. इसके अलावा कुछ दवाओं के शॉर्टेज भी फार्मा सेक्टर में हो सकता है, जिसे लेकर केमिस्ट एसोसिएशन सहित अन्य कई संगठन जल्द भारत सरकार से इस दिशा में पहल करने की मांग कर रहे हैं.

इन दवाओं के कच्चे माल के बढ़ाए दाम

  • अजित्रोमायसिन
  • पैरासिटामाल
  • एलजोलम
  • मेटाजोन
  • हाइड्रोकोटेजॉन
  • आइसोप्रोपिल अल्कोहल

इंदौर। गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के बाद भारत-चीन संबंधों में बने तनावपूर्ण हालातों के मद्देनजर चीन ने भारत के फार्मा सेक्टर को जोर का झटका दिया है, चीन ने भारत को निर्यात करने वाली दवाओं के कच्चे माल का दाम 20 से 30% तक बढ़ा दिया है. चीनी फार्मा कंपनियों के फैसले के बाद भारत में अब कई दवाएं न केवल महंगी होंगी, बल्कि बाजार में उनकी कमी भी होने का अनुमान है. भारत सरकार ने इस फैसले के मद्देनजर तीन बल्क ड्रग पार्क बनाने की घोषणा की है, साथ ही फार्मा सेक्टर के लिए राहत पैकेज देने पर सहमति भी जताई है.

भारत में बनेंगे बल्क ड्रग पार्क

इंदौर, पीथमपुर, उज्जैन और ग्वालियर में 300 से ज्यादा दवा कंपनियां हैं, जिन का टर्नओवर करीब 5 हजार करोड़ सालाना है. इनमें से अधिकांश कंपनियां कई जीवन रक्षक दवाएं बनाने के लिए कच्चा माल चीनी कंपनियों से खरीदती हैं. जिससे विभिन्न दवा कंपनियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले करीब 25 हजार से ज्यादा लोग दवाओं का उत्पादन करते हैं और प्रदेश में तैयार की गई दवाएं अफ्रीका, लीबिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, जापान, रसिया सहित एशिया महाद्वीप के विभिन्न देशों में निर्यात की जाती है.

कोरोना काल में दुनिया भर में की सप्लाई

प्रदेश का फार्मा सेक्टर देश के दवा निर्माण में कितना महत्व रखता है, इसका उदाहरण कोरोना काल में देखने को मिला, जब इंदौर, पीथमपुरा और रतलाम से तैयार की गई हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा कई देशों में भेजी गई. जिसका उपयोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है. अमेरिका सरकार ने इस दवा की मांग की थी तो यहीं से भारत सरकार ने दवा तैयार कर अमेरिका भिजवाया था.

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम

1990 तक ऐसी तमाम दवाओं के लिए कच्चा माल भारतीय फार्मा सेक्टर में ही तैयार होता था, लेकिन व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते चीन ने भारत में कास्ट रेट से भी कम दाम पर माल भेजना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में भारतीय दवा कंपनियां चीन के भावों से मुकाबला नहीं कर पाईं और धीरे-धीरे कई कंपनियों ने जीवन रक्षक दवाओं के लिए कच्चा माल चीन से ही खरीदना शुरू कर दिया. बीते कुछ सालों तक भारतीय फार्मा सेक्टर में कच्चे माल की निर्भरता 85 फीसदी तक थी, जो अब घटकर 65 फीसदी हो चुकी है. अब चीन की मोनोपोली खत्म करने की दिशा में मोदी सरकार ने तीन बल्क ड्रग पार्क स्थापित करने का फैसला किया है. इसके लिए 16 हजार करोड़ का अलग से आर्थिक पैकेज निर्धारित किया गया है.

महंगी होंगी कई दवाएं

चीन द्वारा कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के बाद भारतीय बाजारों में भी दवाओं के दाम 30% से 50% तक बढ़ जाएंगे. इसके अलावा कुछ दवाओं के शॉर्टेज भी फार्मा सेक्टर में हो सकता है, जिसे लेकर केमिस्ट एसोसिएशन सहित अन्य कई संगठन जल्द भारत सरकार से इस दिशा में पहल करने की मांग कर रहे हैं.

इन दवाओं के कच्चे माल के बढ़ाए दाम

  • अजित्रोमायसिन
  • पैरासिटामाल
  • एलजोलम
  • मेटाजोन
  • हाइड्रोकोटेजॉन
  • आइसोप्रोपिल अल्कोहल
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