ग्वालियर। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों को लेकर घमासान मचा हुआ है और इस समय सबसे ज्यादा नजर ग्वालियर नगर निगम पर है. बीजेपी जहां नगर निगम पर अपना 55 साल पुराना कब्जा बनाए रखने के लिए ऐड़ी और चोटी का जोर लगा रही है तो (Gwalior Mayor Election 2022) वहीं कांग्रेस मेयर पद पर कभी न जीत पाने का कलंक दूर करने की कोशिश में जुटी हुई है. इसी कड़ी में आज हम आपको सिंधिया महल और इससे जुड़े मेयर पद को लेकर कहानी बताएंगे. मेयर पद को लेकर सिंधिया परिवार का इतिहास है कि 55 साल से जय विलास समर्थक एक भी नेता मेयर की गद्दी पर नहीं बैठ सका है, मतलब सिंधिया परिवार की दखल होने के बावजूद उनका कोई भी समर्थक 55 साल से मेयर के पद पर नहीं पहुंच पाया. इसलिए इस बार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर है कि वे अपनी किसी समर्थक को जितवाकर इस इतिहास को पलट पाते हैं और नहीं.
55 साल से मेयर की कुर्सी पर नहीं बैठा सिंधिया समर्थक: सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के निधन के बाद कांग्रेस के पार्टी में महल की तरफ से उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतारा गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी के एक बड़े कद्दावर नेता थे और ग्वालियर चंबल अंचल की राजनीति को वह अपने महल से चलाते थे. हालात ये थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने महल से ही पार्षद, मेयर और विधायकों तक की टिकट फाइनल करते थे, लेकिन वह भी कभी ग्वालियर नगर निगम में मेयर पद की कुर्सी नहीं दिला सके. कांग्रेस में रहते हुए कई बार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक नेता को मेयर पद का टिकट दिलाया, लेकिन उन्हें हर बार करारी हार का सामना करना पड़ा. हालात ये है कि 55 साल से ग्वालियर नगर निगम पर कांग्रेस का मेयर कुर्सी पर नहीं बैठ पाया है.
इन्हें मिल सकता है टिकट: अब सिंधिया परिवार और मेयर पद से जुड़ा इतिहास टूट सकता है, इसकी वजह है कि इस बार सिंधिया भाजपा दल में है जो मेयर पद को लेकर ग्वालियर में अपराजेय बनी हुई है. इसलिए उस दल का मेयर बनने का मिथक तो टूटने की संभावना है, लेकिन महल का समर्थक मेहरबानी इस मिथक को टूटने के लिए सिंधिया को अपने कट्टर समर्थक को टिकट दिलाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. अभी तक की स्थिति है कि भाजपा यहां अपने कैडर से ही उम्मीदवार देती रही और वह जीतता रहा हैं, लेकिन अबकी बार किसी सिंधिया समर्थक को टिकट मिल पाएगा ऐसा नहीं लगता. हां अगर विवाद बढ़ता है तो भाजपा शीर्ष नेतृत्व कोई बीच का रास्ता निकाल सकता है. मसलन इस पद के लिए माया सिंह को टिकट दिया जाए, माया सिंह भाजपा की वरिष्ठ नेता है और उनके पति ध्यानेंद्र सिंह दोनों ही विधायक और मंत्री रह चुके हैं.
सिंधिया नहीं कर सकेंगे विरोध: माया सिंह राज्यसभा सदस्य और भाजपा के संगठन में राष्ट्रीय पदाधिकारी भी रह चुकी है, दिवंगत माधवराव सिंधिया की मामी यानी राजमाता विजयराजे सिंधिया की भाभी लगती हैं, वह विजय विलास पैलेस के एक हिस्से में बने क्वाटर में रहती हैं. भाजपा उनका नाम आगे बढ़ा कर विवाद को कम कर सकती है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सहमत हो, लेकिन माया सिंह के नाम पर सिंधिया विरोध नहीं कर सकेंगे.
बदल सकता है इतिहास: फिलहाल अब देखना होगा कि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया क्या अपने समर्थक नेता को टिकट दिला कर उस मेयर पद की कुर्सी तक ले पाएंगे या नहीं. क्योंकि पिछले 55 साल से कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया परिवार कभी भी मेयर नहीं बना पाया, अगर ऐसा होता है तो अबकी बार सिंधिया परिवार का यह मिथक टूट सकता है.