भोपाल। मप्र की राज्यसभा की 3 सीटों के आज आए चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में जरूर हैं, लेकिन कांग्रेस जीती हुई नजर आ रही है. बीजेपी के 3 विधायकों ने पार्टी के व्हिप के खिलाफ मतदान कर संकेत दे दिए हैं कि 3 महीने से असंतोष से जूझ रही शिवराज सरकार में अब कलह और बढ़ेगी. राज्यसभा चुनाव तक असंतोष थामने के लिए बीजेपी मंत्रिमंडल विस्तार को टालती रही और चुनाव में बगावत ना हो, केंद्रीय नेतृत्व के आला नेता भोपाल में डेरा डाले रहे. लेकिन चुनाव परिणाम ने बीजेपी नेतृत्व के माथे पर बल ला दिया है. आगामी उपचुनाव भाजपा के लिए कितना कठिन होगा, यह भी साफ हो गया है. इसके अलावा बीजेपी को सिंधिया और उनके समर्थकों से किए वादों को निभाना भी कठिन होगा. कुल मिलाकर बीजेपी का आने वाला वक्त चुनौती भरा होगा.
जैसा पहले कहा जा रहा था कि राज्यसभा चुनाव शिवराज सरकार और सिंधिया का भविष्य तय करेंगे, तो चुनाव परिणाम ने यही संकेत दिए हैं. साफ हो गया है कि शिवराज सरकार सुरक्षित नहीं है. जिस तरह बीजेपी के 3 विधायकों ने मतदान किया, उससे भाजपा से नाराज विधायकों की सूची में तीन नए नाम जुड़ गए हैं. ये वो नाम हैं जो अभी तक चर्चा में नहीं थे. ऐसे में जो पहले से ही बगावती सुर दिखा रहे हैं. उनके सुरों को मजबूती मिली है और बीजेपी को खतरा बढ़ा है. गोपीलाल जाटव, जुगल किशोर बागरी और नागेंद्र सिंह गुड़ के कदम से साफ है कि बीजेपी की मुश्किलें अब कम होने वाली नहीं, बल्कि बढ़ने वाली हैं. क्योंकि मंत्रिमंडल में सीमित स्थान होने के कारण सिंधिया समर्थकों, बीजेपी के वरिष्ठ विधायकों और पूर्व मंत्रियों को एडजस्ट करना मुश्किल होगा.
बीजेपी- कांग्रेस का दम
कांग्रेस प्रवक्ता अजय सिंह यादव कहते हैं कि राज्यसभा चुनाव के साथ भाजपा का भानुमति का कुनबा बिखरता हुआ दिखाई देने लगा है. जिस तरह से भाजपा के वरिष्ठ विधायकों द्वारा व्हिप का उल्लंघन कर भाजपा प्रत्याशियों को वोट नहीं दिए गए. इससे भाजपा की बगावत स्पष्ट तौर पर सामने आ गई है. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव जीतते ही उनके समर्थकों द्वारा मंत्री बनाने के लिए दबाव बनाना शुरू हो गया है. वहीं भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि राज्यसभा चुनाव संपन्न हो गया. लेकिन आज भी सवाल जस का तस है, कि फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार क्यों बनाया. जब संख्या बल ही नहीं था, तो केवल दिखावटी तौर पर अनुसूचित जाति के नेता को राजनीति चमकाने और राजनीतिक स्वार्थ के लिए उम्मीदवार बनाया. यदि आप उनको प्रतिनिधित्व देना चाहते थे तो प्रथम वरीयता पर फूल सिंह बरैया को क्यों नहीं रखा गया.
ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहेंगे केंद्र में मंत्री बनना
सिंधिया ने जिस तरह अपने भविष्य को ताक पर रखकर बीजेपी का दामन थामा और मप्र में सरकार बनाने के लिए बगावत की, अब सिंधिया चाहेंगे कि उनको और उनके समर्थकों को इसका प्रतिसाद मिले. ज्योतिरादित्य सिंधिया के राज्यसभा सांसद चुने जाने के साथ ही उनके समर्थक केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की मांग करने लगे हैं. वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार जिन परिस्थितियों से जूझ रही है. उन हालातों में सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए मंत्रिमंडल विस्तार करना आसान नहीं होगा.
सिंधिया समर्थक शिवराज मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए बेताब
शिवराज सरकार बने 3 महीने हो चुके हैं, जिन सिंधिया समर्थकों ने कांग्रेस से बगावत की थी. उनमें से छह कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, जिनमें से सिर्फ दो लोग मंत्री बन सके हैं. चर्चा है कि उपचुनाव के मद्देनजर ज्योतिरादित्य सिंधिया 10 और समर्थकों को मंत्री बनाना चाहते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया के ज्यादा समर्थकों को शिवराज मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाता है, तो सीधी सी बात है कि बीजेपी के वरिष्ठ विधायकों की उपेक्षा होगी और असंतोष बढ़ेगा. कुल मिलाकर बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सरकार तो बना ली, लेकिन अब बीजेपी अपने ही कुनबे को संभालने में नाकाम नजर आ रही है.