भोपाल। सरकार के तमाम दावों और कोशिश के बाद भी मध्यप्रदेश में पिछले 3 साल से सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर बनी हुई है. प्रदेश में हर दिन 38 नवजात बच्चे दम तोड़ देते हैं. शिशु मृत्यु की यह दर देश में सबसे ज्यादा है. मध्यप्रदेश में पिछले 3 साल में लगभग 41 हजार नवजात बच्चे दम तोड़ चुके हैं. शिशु मृत्यु दर के ताजा आंकड़े हाल में केंद्र सरकार ने सदन में रखे हैं. उधर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले सालों के मुकाबले आंकड़ों में सुधार आ रहा है. पहले प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 43 थी, जिसमें गिरावट आई है.
हर दिन 38 नवजात तोड़ देते हैं दम: प्रदेश के आदिवासी जिले शहडोल के अर्जिला गांव की रहने वाली संगीता कोल ने पिछले दिनों अपने पहले नवजात बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बच्चा मुश्किल से 4 माह की जिंदगी गुजार सका और उसकी मौत हो गई. बच्चे की कमजोर शारीरिक स्थिति और शहडोल की कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते बच्चे को बचाया नहीं जा सका. यहां स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट तो थी, लेकिन डॉक्टर की कमी थी. 9 साल पहले शहडोल में 27 नवंबर से 3 दिसंबर के बीच करीब 13 बच्चों ने दम तोड़ दिया. यह स्थिति सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि प्रदेश में हर रोज इस तरह करीबन 38 नवजात दम तोड़ देते हैं.
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शिशु मृत्यु दर देश में टॉप पर मध्य प्रदेश: बीजेपी की शिवराज सिंह सरकार वाले प्रदेश में 2019- 20 से लेकर 2021-22 के 3 सालों के दौरान 41551 नवजात बच्चे दम तोड़ चुके हैं. हाल में यह तस्वीर केंद्र सरकार ने राज्यसभा में आंकड़ों के साथ पेश की है. नवजात बच्चों की मौत के मामले में मध्यप्रदेश देश में टॉप पर है. दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, यहां 3 साल में 40378 बच्चों की मौत हुई है. राजस्थान में 29199 और उत्तर प्रदेश में 26623 बच्चों की मौत बीते 3 साल में हो चुकी है.
प्रदेश में संसाधन बढ़े, रिजल्ट में सुधार धीमा: मध्य प्रदेश में पिछले सालों में इस दिशा में सुधार के कई कदम उठाए गए. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश में करीब 1 एसएनसीयू संचालित किए जा रहे हैं. भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा में एक से ज्यादा एसएनसीयू स्थापित किए गए हैं. जिसमें बेड की संख्या भी अच्छी है, क्योंकि यहां आस-पास के कई जिलों से माताएं आती है. प्रदेश के 43 जिलों में संचालित एसएनसीयू में करीब 30 बेड हैं. हालांकि एसएनसीयू में डॉक्टर की कमी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है.
स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी बोले, आंकड़ों में हो रहा सुधार: शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी कहते हैं कि, 'इस मामले में लगातार सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं, रिजल्ट बेहतर भी हुए हैं. पूर्व में शिशु मृत्यु दर के आंकड़े साल 2020 में 1000 बच्चों पर 43 थे, जो अब 38 पर आ गए हैं. वैसे देखा जाए तो आंकड़ों में सुधार की स्थिति काफी धीमी है, इस को लेकर मुख्यमंत्री भी इसे प्रदेश के माथे पर कलंक मानकर दिशा में तेजी से काम करने की नसीहत दे चुके हैं'.
बच्चों की मौत की यह है वजह: बच्चों के स्वास्थ्य पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत दुबे कहते हैं कि, 'कई जिलों में एसएनसीयू तो बने, लेकिन डॉक्टर की कमी बनी हुई है. शहडोल जिले के 10 बेड के एसएनसीयू में सिर्फ एक डॉक्टर है. इसी तरह ऑपरेशन से प्रसव की सुविधा प्रदेश के सिर्फ 120 हॉस्पिटल में मौजूद है. समय पर ऑपरेशन से प्रसव ना होने पर मां और बच्चे दोनों को खतरा होता है. नवजात बच्चों की मौत का सीधा मतलब है कि, बच्चा गर्भ में ही कमजोर था. गर्भ में पल रहे शिशु के कुपोषित होने पर जन्म के बाद उनका बचना मुश्किल होता है, जाहिर है सरकार को कई दिशाओं में एक साथ काम करने की जरूरत है.