भोपाल। हर साल 1 जुलाई के दिन नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctor's Day) मनाया जाता है, इस दिन को मनाने का मकसद बेहतर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना और डॉक्टरों को उनकी समर्पित सेवा के लिए शुक्रिया अदा करने का दिन है. कोरोना महामारी के दौर में डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा कर रहे हैं. ताकि मरीजों की जान बचाई जा सके.
कब मनाया गया था पहली बार Doctor's Day ?
नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctor's Day) पहली बार मार्च 1933 में अमेरिकी राज्य जॉर्जिया में मनाया गया था, चिकित्सकों को एक कार्ड भेजकर और दिवंगत डॉक्टरों की कब्रों पर फूल चढ़ाकर इस दिन को मनाया गया, डॉक्टर्स डे (Doctor's Day) अलग-अलग देशों में अलग तारीखों पर मनाया जाता है, अमेरिका में यह 30 मार्च, क्यूबा में 3 दिसंबर और ईरान में 23 अगस्त को मनाया जाता है.
भारत में 1991 में पहली बार मनाया गया Doctor's Day
भारत में पहली बार 1991 में डॉक्टर्स डे मनाया गया, बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में यह दिन भारत में मनाया जाता है. डॉ बिधान चंद्र राय का मानवता की सेवा में बड़ा योगदान रहा है, डॉक्टर रॉय एक महान चिकित्सक थे. उनका जन्म 1 जुलाई, 1882 को हुआ था और इसी तारीख को 1962 में उनका निधन हो गया था. उन्हें 4 फरवरी, 1961 को भारत रत्न मिला था. उन्होंने जाधवपुर टीबी जैसे मेडिकल संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्हें भारत के उपमहाद्वीप में पहला चिकित्सा सलाहकार भी कहा जाता था.
ब्लड कैंसर के बावजूद रीवा के डॉक्टर निभा रहे अपना फर्ज
रीवा जिले के मऊगंज स्थित सिविल अस्पताल में पदस्थ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रामानुज शर्मा खुद पिछले 15 वर्षों से ब्लड कैंसर के मरीज हैं, लेकिन जोश जज्बा और जुनून ऐसा है कि उन्होंने समाज की सेवा को अपना धर्म मानते हुए अपनी स्वास्थ सेवाओं को जारी रखा. डॉक्टर रामानुज शर्मा वर्ष 1981 में पहली बार मऊगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात किए गए, जिसके बाद वह 6 महीने की सेवाएं देने के बाद पीजी की पढ़ाई के लिए चले गए, बाद में पढ़ाई के बाद मऊगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर के रूप में भेजा गया. तब से तकरीबन 40 वर्ष बीत गए, डॉक्टर के रूप में उन्होंने मऊगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ही अपनी सेवाएं दी.
National Doctors Day: जिंदगी बचाने वाले धरती पर भगवान का अवतार हैं डॉक्टर्स
40 वर्षों से लोगों को दे रहे रहे स्वास्थ सेवाएं
वर्ष 2003 में डॉक्टर रामानुज शर्मा को ब्लड कैंसर की बीमारी हो गई, जिसके बाद मुंबई से लेकर देश के अलग-अलग कोनों में उनका इलाज कराया, जिसके बाद वह स्वस्थ होकर अपनी नौकरी के लिए तैयार हो गए. बीमारी की हालत में ही वर्ष 2004 के बाद से डॉक्टर रामानुजन मऊगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अपनी सेवाएं प्रारंभ रखी, इसके बाद वर्ष 2009 में वह फिर बीमार पड़ गए, मगर फिर भी उन्होंने अपने जोश को ठंडा नहीं होने दिया, फिर समाज की सेवा के लिए तैयार हो गए, 40 वर्षों से लगातार मऊगंज के लोगों के इलाज के लिए हर परिस्थिति में खुद खड़े रहे. डॉक्टर शर्मा खुद कैंसर पीड़ित होने के बावजूद इस कोरोना काल मे कोरोना योद्धा की भूमिका निभाई और डटकर लोगो का इलाज किया, इस दौरान वह भी कोरोना की चपेट में आये, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और स्वस्थ होकर दोबारा अपने धर्म कार्य मे जुट गए.