रतलाम। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर मतदान होना है. चुनावी माहौल है, ऐसे में चाय के दुकानों पर चुनावी चौपाल भी सजने लगी है. ऐसे ही एक चाय की दुकान पर हमारे सहयोगी ने शहर के कुछ बुजुर्गों और रिटायर्ड कर्मचारियों से शहर के विकास पर चर्चा की.
चाय की चुस्कियां लेते हुए सीनियर सिटिजन जीके शर्मा कहते हैं कि रतलाम के संसदीय इतिहास में किसी जनप्रतिनिधि ने यहां की शिक्षा-व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिसकी वजह से हमारे युवाओं को शिक्षा के लिये बड़े शहरों में जाना पड़ता है. रोजगार के नाम पर उद्योग-धंधे खुलने के बजाय बंद होते जा रहे हैं.
'विकास में रतलाम की अनदेखी'
वहीं भूपेंद्र सिंह ने कहा कि रतलाम जिला 3 लोकसभा क्षेत्रों मंदसौर, उज्जैन और रतलाम-झाबुआ में बंटा हुआ है. कहने को यहां 3 सांसद रिप्रेजेंट करते हैं पर विकास के मामले में जिला हमेशा अनदेखी का शिकार हो रहा है. उन्होंने कहा कि रतलाम को अलग लोकसभा क्षेत्र बनाया जाना चाहिए.
'बेरोजगारी और पानी की समस्या'
रिटायर्ड कर्मचारी ओपी श्रीवास्तव और प्रवीण जोशी ने कहा कि जिले में बेरोजगारी और पानी की समस्या सबसे ज्यादा है. आदिवासी क्षेत्रों के लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं. 20 साल तक सांसद रहे कांतिलाल भूरिया माही नदी का पानी रतलाम लाने की बात हर चुनाव में करते हैं, लेकिन धरातल पर अब तक कुछ भी नहीं हो पाया. वहीं पेंशनर्स की मांगों और समस्याओं पर भी न तो राज्य सरकार और केंद्र सरकार ध्यान दे रही है.
बहरहाल जिले के असल मुद्दे और समस्याओं को इन वरिष्ठ नागरिकों ने उठाया है और मौजूदा जनप्रतिनिधियों और सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने के बावजूद लोकतंत्र के त्योहार में इनकी गहरी आस्था है और मतदान करने और लोगों को प्रेरित करने की शपथ भी इन सीनियर सिटिजन्स ने ली है. वहीं आने वाली सरकार और जनप्रतिनिधियों से उम्मीद भी लगाई है कि जिले का विकास, शिक्षा और उद्योग के क्षेत्र में कार्य कर यहां से हो रहे पलायन को रोका जाये.