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पाकिस्तान से लौटी गीता को पैरों पर खड़ा करने के लिए शासकीय नौकरी दी जाए : गैर सरकारी संगठन

एक गैर सरकारी संगठन ने पाकिस्तान से लौटी गीता को पैरों पर खड़ा करने के लिए शासकीय नौकरी दी जानी चाहिए. अधिकारियों के मुताबिक मध्यप्रदेश के सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग ने दिव्यांगों की मदद के लिए इंदौर में चलाई जा रही आनंद सर्विस सोसायटी को गीता की देख-रेख और उसके बिछड़े परिवार की खोज का जिम्मा सौंपा है.

गीता
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Published : Mar 15, 2021, 6:51 PM IST

भोपाल : बहुचर्चित घटनाक्रम के दौरान पाकिस्तान से वर्ष 2015 में भारत लौटी गीता को समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयास कर रहे एक गैर सरकारी संगठन ने सोमवार को सुझाया कि इस मूक-बधिर महिला को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासकीय नौकरी दी जानी चाहिए.

अधिकारियों के मुताबिक मध्यप्रदेश के सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग ने दिव्यांगों की मदद के लिए इंदौर में चलाई जा रही आनंद सर्विस सोसायटी को गीता की देख-रेख और उसके बिछड़े परिवार की खोज का जिम्मा सौंपा है.

संगठन के सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ ज्ञानेंद्र पुरोहित ने मीडिया को बताया कि इन दिनों गीता महाराष्ट्र्र के परभणी की गैर सरकारी संस्था पहल फाउंडेशन के परिसर में रहकर कौशल विकास का प्रशिक्षण ले रही है.

उन्होंने कहा, 'भारत वापसी के बाद गीता कक्षा पांच की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी है और ओपन स्कूल के जरिये आठवीं की परीक्षा में बैठने की तैयारी कर रही है. केंद्र या महाराष्ट्र सरकार को उसे उसकी योग्यता के मुताबिक नौकरी देनी चाहिए ताकि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके और उसका भविष्य सुरक्षित हो सके.'

गौरतलब है कि गीता का मामला हाल ही में भारत और पाकिस्तान के मीडिया की सुर्खियों में लौटा, जब महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाली मीना (71) ने दावा किया कि गीता उनकी वह बेटी है, जो उनके पहले विवाह से पैदा हुई थी. मीना के पहले पति की कुछ साल पहले मौत हो चुकी है और अब वह अपने दूसरे पति के साथ रहती हैं.

पुरोहित ने बताया, 'मीना के मुताबिक गीता के पेट पर जलने का एक निशान है. यह बात सही पाई गई है. इसके अलावा, गीता के जन्मस्थान की पहचान के बारे में इस मूक-बधिर महिला के दिए ब्योरे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल के कुछ इलाकों से काफी हद तक मेल खाते हैं.'

उन्होंने कहा कि सरकार के पास गीता का डीएनए नमूना पहले से सुरक्षित है और इससे मीना के डीएनए नमूने का मिलान कर पता लगाया जा सकता है कि दोनों महिलाएं जैविक रूप से मां-बेटी हैं या नहीं?

पुरोहित ने यह भी बताया कि विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने उन्हें हाल ही में फोन कर गीता के मामले की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी ली है. हालांकि, उन्होंने इस बात की किसी सूचना से इनकार किया कि सरकार गीता और मीना के डीएनए नमूनों का मिलान कब कराने जा रही है?

पढ़ें - इंतजार में अब भी गीता, मां से मिलने की खबर गलत

इस बारे में पूछे जाने पर मध्य प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग की संयुक्त संचालक सुचिता तिर्की ने बताया कि दोनों महिलाओं के डीएनए नमूनों के मिलान के बारे में उन्हें अभी सरकार का कोई आदेश नहीं मिला है.

अधिकारियों ने बताया कि गुजरे साढ़े पांच साल के दौरान देश के अलग-अलग इलाकों के 20 से ज्यादा परिवार गीता को अपनी लापता बेटी बता चुके हैं, लेकिन सरकार की जांच में अब तक इनमें से किसी भी परिवार का मूक-बधिर महिला पर दावा वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं हो सका है.

भोपाल : बहुचर्चित घटनाक्रम के दौरान पाकिस्तान से वर्ष 2015 में भारत लौटी गीता को समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयास कर रहे एक गैर सरकारी संगठन ने सोमवार को सुझाया कि इस मूक-बधिर महिला को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासकीय नौकरी दी जानी चाहिए.

अधिकारियों के मुताबिक मध्यप्रदेश के सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग ने दिव्यांगों की मदद के लिए इंदौर में चलाई जा रही आनंद सर्विस सोसायटी को गीता की देख-रेख और उसके बिछड़े परिवार की खोज का जिम्मा सौंपा है.

संगठन के सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ ज्ञानेंद्र पुरोहित ने मीडिया को बताया कि इन दिनों गीता महाराष्ट्र्र के परभणी की गैर सरकारी संस्था पहल फाउंडेशन के परिसर में रहकर कौशल विकास का प्रशिक्षण ले रही है.

उन्होंने कहा, 'भारत वापसी के बाद गीता कक्षा पांच की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी है और ओपन स्कूल के जरिये आठवीं की परीक्षा में बैठने की तैयारी कर रही है. केंद्र या महाराष्ट्र सरकार को उसे उसकी योग्यता के मुताबिक नौकरी देनी चाहिए ताकि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके और उसका भविष्य सुरक्षित हो सके.'

गौरतलब है कि गीता का मामला हाल ही में भारत और पाकिस्तान के मीडिया की सुर्खियों में लौटा, जब महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाली मीना (71) ने दावा किया कि गीता उनकी वह बेटी है, जो उनके पहले विवाह से पैदा हुई थी. मीना के पहले पति की कुछ साल पहले मौत हो चुकी है और अब वह अपने दूसरे पति के साथ रहती हैं.

पुरोहित ने बताया, 'मीना के मुताबिक गीता के पेट पर जलने का एक निशान है. यह बात सही पाई गई है. इसके अलावा, गीता के जन्मस्थान की पहचान के बारे में इस मूक-बधिर महिला के दिए ब्योरे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल के कुछ इलाकों से काफी हद तक मेल खाते हैं.'

उन्होंने कहा कि सरकार के पास गीता का डीएनए नमूना पहले से सुरक्षित है और इससे मीना के डीएनए नमूने का मिलान कर पता लगाया जा सकता है कि दोनों महिलाएं जैविक रूप से मां-बेटी हैं या नहीं?

पुरोहित ने यह भी बताया कि विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने उन्हें हाल ही में फोन कर गीता के मामले की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी ली है. हालांकि, उन्होंने इस बात की किसी सूचना से इनकार किया कि सरकार गीता और मीना के डीएनए नमूनों का मिलान कब कराने जा रही है?

पढ़ें - इंतजार में अब भी गीता, मां से मिलने की खबर गलत

इस बारे में पूछे जाने पर मध्य प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग की संयुक्त संचालक सुचिता तिर्की ने बताया कि दोनों महिलाओं के डीएनए नमूनों के मिलान के बारे में उन्हें अभी सरकार का कोई आदेश नहीं मिला है.

अधिकारियों ने बताया कि गुजरे साढ़े पांच साल के दौरान देश के अलग-अलग इलाकों के 20 से ज्यादा परिवार गीता को अपनी लापता बेटी बता चुके हैं, लेकिन सरकार की जांच में अब तक इनमें से किसी भी परिवार का मूक-बधिर महिला पर दावा वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं हो सका है.

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