नालंदा : बिहार शरीफ कोर्ट के न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्र (Judge Manvendra Mishra) ने एक मामले में करीब 41 साल बाद ऐतिहासिक फैसला (Historic verdict after 41 years) सुनाया है. दरअसल, कोर्ट ने करोड़ों की संपत्ति हड़पने की साजिश रचने के मामले में शख्स को दोषी करार देते हुए तीन अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाई. फैसले को जानने के लिए कोर्ट में लोगों की भीड़ देखी गई.
क्या है पूरा मामला?: मुरगावां गांव के जमींदार कामेश्वर सिंह की 7 बेटी और 1 बेटा कन्हैया था. बेटा कन्हैया 1977 में 14 वर्ष की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा देने के दौरान चण्डी हाईस्कूल से लापता हो गया था. उसका आज तक कोई पता नहीं लग सका है. चार साल बाद गांव में एक साधु आया था जो अपने आपको कामेश्वर सिंह का बेटा कन्हैया सिंह बताने लगा. जिसके बाद कामेश्वर सिंह अपने बेटे की खबर सुनकर फूले नहीं समाये और उसे गाजे-बाजे के साथ हाथी घोड़े पर बैठाकर घर ले गए, लेकिन 4 साल बाद पता चला कि साधु के वेश में आने वाला युवक कन्हैया नहीं, बल्कि बेहरूपिया है.
बहन ने किया भाई मानने से इनकार: इसका खुलासा होने का बाद कामेश्वर सिंह की बेटी रामसखी देवी ने उसे कन्हैया मानने से इनकार कर दिया था. इसके बाद वर्ष 1981 में सिलाव थाने में संपत्ति को हड़पने के ख्याल से आए इस कन्हैया पर नकली होने का आरोप लगाते हुए मुकदमा किया था. हालांकि, साल 1981 में मामला दर्ज होने के बाद अनुसंधान के क्रम में उसकी पहचान तत्कालीन मुंगेर जिले के लखई गांव निवासी दयानंद गोसाईं के रूप में की गई थी. कामेश्वर सिंह की 7 बेटियों में से 6 बहनें इस मामले में खास दिलचस्पी नहीं ले रही थी, लेकिन एक बहन रामसखी देवी उसे कन्हैया मानने से इनकार कर रही थी.
फर्जी शख्स को 3 साल की कैद : सहायक अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक ने बताया कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया था. लेकिन, फिर से इसकी सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेजा गया. इस मामले में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं. पहली बार इसकी पहचान होने पर कामेश्वर सिंह की पत्नी और बेटी रामसखी ने उसे कन्हैया मानने से इनकार किया था. इसके बाद उस पर संपत्ति हड़पने के आरोप में सिलाव थाने में FIR दर्ज कराई थी. करीब 41 साल बाद जज मानवेन्द्र मिश्र ने भारतीय दंड संहिता 420, 419 और 120 के तहत फर्जी शख्स को 3 साल कैद और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाते हुए दोषी दयानंद गोसाईं को जेल भेज दिया.
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