रांची: देश में लगातार तेजी से बढ़ती जनसंख्या समाज के लिए चिंता का विषय है. आज लोग जहां पर्यावरण संरक्षण की बात कर रहे हैं, पेड़-पौधे लगा रहे हैं. लेकिन एक तरफ से लोग अपनी शौक-सुविधा के लिए पर्यावरण को प्रदूषित भी कर रहे हैं. राजधानी में तेजी से बढ़ती मोटर-गाड़ी और तेज हॉर्न-स्पीकर वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं.
भारत गणराज्य के बत्तीसवें वर्ष में संसद द्वारा एक अधिनियम 'प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट 1981' के सेक्शन 2A में ध्वनि को वायु प्रदूषक तत्व (एयर पोल्यूटेंट) भी माना गया है. जिसके तहत कई नियम-कानून बनाए गए हैं. इसीलिए ध्वनि प्रदूषण को कम करके इस दिशा में अप्रत्यक्ष रूप से वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है.
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ऐसे समझें ध्वनि प्रदूषण को
अमूमन 2 लोगों की बातचीत में 50 से 55 डेसीबल तक का साउंड प्रयोग किया जाता है. बढ़ती आबादी और आधुनिकरण के कारण लोगों के द्वारा 100 से 160 डेसीबल तक की आवाज सुनी जाती है. जो अगर सीधे लोगों की कानों तक पहुंच जाए तो कान के परदे भी फट जाए. ध्वनि प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ापन, ब्लड प्रेशर, नींद की कमी, तनाव जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.
क्या कहते हैं डॉक्टर
बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से हो रही बीमारियों को लेकर रिम्स के डॉक्टर अजीत बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण, एक अनछुआ प्रदूषण है. जिससे लोगों को बचने की जरूरत है. वह बताते हैं कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से इंसानों को सुनने के लिए 85 डेसीबल तक के साउंड को ही मानक रखा गया है. जबकि इससे ज्यादा आवाज होती है तो वह ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती है. वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि राजधानी में लगातार बढ़ रहे ध्वनि प्रदूषण से लोगों की श्रवण शक्ति भी कम होती जा रही है.
ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय
ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए लोगों को कान ढकने वाले यंत्र का प्रयोग करना चाहिए. वाहनों के हॉर्न की साउंड लिमिट में भी कमी लानी चाहिए. इसका कम इस्तेमाल करना चाहिए. वहीं मकानों को भी इस तरह से बनाना चाहिए, ताकि बाहर की आवाज घरों के अंदर कम से कम प्रवेश हो सके.
बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए सभी प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक्शन प्लान तैयार करने के भी दिशा निर्देश दिए हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ये कदम प्रदूषित शहरों के वातावरण को ठीक करने के लिए एक बेहतर पहल है.