रांची: प्रवासी के लौटने का सिलसिला जारी है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अब तक साढ़े सात लाख से ज्यादा मजदूर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के जरिए घर लौटने की इच्छा जता चुके हैं. अब तक ट्रेन और बस के अलावा अलग-अलग माध्यम से एक लाख के करीब मजदूर झारखंड में अपने-अपने गृह जिला पहुंच चुके हैं, लेकिन सच यह है कि घर लौटने के दौरान मजदूरों को बेइंतेहा तकलीफ उठानी पड़ रही है. रांची-खूंटी सीमा पर कुछ प्रवासी श्रमिकों से ईटीवी भारत की टीम ने बातचीत की, जिसमें उन्होंने अपने दर्द को बताया.
रांची-खूंटी सीमा पर ओवरब्रिज की छांव में जीपनुमा दो यात्री गाड़ी रुकी, जिसमें कई प्रवासी मजदूर बैठे हुए थे, उनमें से लगभग 14 प्रवासी मजदूर थोड़ी देर सुस्ताने के लिए गाड़ी से बाहर निकले. उसी जगह एक स्वयंसेवी संस्था की तरफ से मजदूरों को नाश्ता दिया गया. नाश्ता मिलते ही सभी मजदूर एक कोने में जमा हो गए. उनकी आंखों में ना तो कोरोना वायरस का कोई खौफ था और ना ही जुबान पर इस हालात के लिए किसी से शिकायत के शब्द थे. बस एक जुनून था कि किसी भी हाल में घर लौटना है. अब वापस कब काम पर जाएंगे इसका जवाब भी उनके पास नहीं था.
ईटीवी भारत से महाराष्ट्र के औरंगाबाद से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जानेवाले शिवनाथ कर्मकार ने बताया कि वह प्लाई की एक फैक्ट्री में काम करते थे, जो बंद हो गई है, जिसके कारण उनके पास खाने को कुछ नहीं बचा. इसलिए जमा पैसों के सहारे गाड़ी बुक कर वो घर लौट रहे हैं.
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60 हजार में बुक की दो छोटी गाड़ी
मजदूरों ने कहा कि 10 रु प्रति किलोमीटर के हिसाब से कुल 14 लोगों ने 2 गाड़ी बुक की और उसी के सहारे अपने घर लौट रहे हैं. एक गाड़ी का किराया लगभग 30 हजार है. किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं बचने के कारण इन्हें घर लौटना पड़ रहा है.
ईटीवी भारत की टीम ने प्रवासी मजदूरों को बताया कि झारखंड के कई जिलों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि सरकारी क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहने के बाद ही गांव में प्रवेश करने दिया जा रहा है, अगर ऐसा व्यवहार उनके गांव में भी हुआ तो क्या करेंगे? इस पर सभी प्रवासी मजदूरों का एक ही जवाब था कि जैसा गांव के लोग कहेंगे वैसा ही करेंगे. ईटीवी भारत के पास सवालों की लंबी फेहरिस्त थी, लेकिन प्रवासी मजदूर अपनी धुन में खोए हुए थे, नाश्ता खत्म होते ही सभी अपनी गाड़ियों में बैठकर अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े. जाते जाते उन्होंने कहा कि झारखंड में जगह-जगह उन्हें पानी और नाश्ता मिलता रहा है. इसके लिए झारखंड के लोगों का शुक्रिया.