रांची: झारखंड में कांग्रेस की राजनीति बदल गई है. रामेश्वर उरांव की जगह राजेश ठाकुर ने ली है. आलाकमान ने सारे कयासों को दरकिनार कर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है. उनकी टीम में बंधु तिर्की, गीता कोड़ा, शहजादा अनवर और जलेश्वर महतो को बतौर कार्यकारी अध्यक्ष शामिल किया गया है.
युवाओं को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी
नई टीम को गढ़ने में जातीय और धार्मिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा गया है. लेकिन पार्टी में बहुत कम लोग हैं जो सोशल साइट पर खुलकर खुशी का इजहार कर रहे हैं. पार्टी दफ्तर में बहुत कम कार्यकर्ता दिखे. ऐसा लग रहा है जैसे अनहोनी हो गई हो. बात कुछ भी हो लेकिन राजनीति के जानकार बताते हैं कि आलाकमान ने एक सुलझा हुआ फैसला लिया है. सीधे तौर पर मैसेज दिया गया है कि निष्ठावान और युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी.
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कई बड़ी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं राजेश
दूसरा फायदा यह होगा कि कई खेमों में बंटी कांग्रेस को एक न्यूट्रल पावर के जरिए जोड़ा जा सकेगा. यानी इगो शांत होगा तो विवाद शांत होगा. इसके लिए जितनी अनुभव होनी चाहिए, उससे कहीं ज्यादा अनुभव राजेश ठाकुर के पास है. वह बोकारो में एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी के राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं. कांग्रेस प्रवक्ता के साथ-साथ प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
जानकार मानते हैं कि इस काम को करने में राजेश ठाकुर को कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि पार्टी के सभी बड़े नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं. यहां कद मैटर नहीं करेगा. ऊपर से वह प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के करीबी बताए जाते हैं. पद मिलते ही राजेश ठाकुर भी खुलकर कह चुके हैं कि वह वरिष्ठ नेता रामेश्वर उरांव के सानिध्य में पार्टी को पंचायत और गांव स्तर पर मजबूत करेंगे. रामेश्वर उरांव के पास सवाल खड़े करने के लिए कुछ नहीं बचा है. एक तो वह मंत्री हैं और ऊपर से दो साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहने के बावजूद कार्यसमिति का गठन नहीं कर पाए. दूसरे सीनियर नेताओं में आलमगीर आलम मंत्री हैं तो धीरज साहू राज्यसभा सांसद. जहां तक सुबोधकांत सहाय की बात है तो संभव है कि उन्हें केंद्रीय संगठन में कोई जिम्मेदारी मिल जाए.
नई टीम पर काम कर रही है कांग्रेस
कांग्रेस के इस फैसले से साफ है कि वह राजनीति में युवाओं को आगे लाकर राहुल गांधी की टीम खड़ी करना चाह रही है. यही वजह है कि एक झटके में प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ पांच कार्यकारी अध्यक्ष को किनारे लगा दिया गया. वैसे भी पिछले दिनों सरकार गिराने की साजिश में कांग्रेस विधायकों के नाम आने पर पार्टी की खूब किरकिरी हुई थी. अब नये नेतृत्व के साथ झारखंड में कांग्रेस अपना पांव जमाना चाहेगी. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत के लिए भी पार्टी के दरवाजे खुल सकते हैं. फिलहाल, देखना है कि आलाकमान के इस निर्णय को वरिष्ठ नेताओं का कितना साथ मिलता है.