रांची: झारखंड का राजभवन, यहां के राज्यपालों के लिए बेहद शुभ रहा है. झारखंड में इस पद को कई ब्यूरोक्रेट्स, न्यायविद और राजनेताओं ने सुशोभित किया है. उन्हें बड़ी पहचान और बड़े काम करने के अवसर मिले हैं. लेकिन जुलाई 2022 को द्रौपदी मुर्मू के देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के बाद यहां के राजभवन की गरिमा में चार चांद लग गया. राष्ट्रपति बनने से पहले द्रौपदी मुर्मू झारखंड में छह साल तक पहली आदिवासी महिला के रूप में राज्यपाल थीं. उनकी जगह छत्तीसगढ़ के दिग्गज भाजपा नेता रहे रमेश बैस ने ली थी. वह झारखंड का राज्यपाल बनने से पहले त्रिपुरा के राज्यपाल थे. लेकिन अब वह देश के सबसे समृद्ध राज्यों में शुमार महाराष्ट्र के राज्यपाल मनोनीत किये गये हैं.
ऐसा नहीं है कि द्रौपदी मुर्मू के बाद रमेश बैस पहले शख्स हैं, जिन्हें एक छोटे राज्य के बाद बड़ी जिम्मेदारी मिली है. इससे पहले झारखंड के छठे राज्यपाल रहे के.शंकर नारायणन को 22 जनवरी 2010 को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया था. वह 24 अगस्त 2014 तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे थे. अब इस फेहरिस्त में सीपी राधाकृष्णन का नाम जुड़ा है जो पहली बार राज्यपाल मनोनीत हुए हैं. तमिलनाडु के तिरुपुर के रहने वाले हैं. कोयंबटूर से दो बार भाजपा के सांसद रहे हैं. तिरुपुर में इनका होजियरी का बड़ा कारोबार है. एक बड़ी स्पिनिंग मिल है , जिसकी देखरेख उनके टेक्सटाइल इंजीनियर पुत्र करते हैं.
कई दिग्गजों ने पद को किया सुशोभित: प्रथम राज्यपाल थे प्रभात कुमार - 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ था. उस वक्त कद्दावर ब्यूरोक्रेट रह चुके प्रभात कुमार पहले राज्यपाल बनकर झारखंड पहुंचे थे. इससे पहले वह उत्तर प्रदेश के कैबिनेट सचिव थे. प्रभात कुमार के बाद विनोद चंद्र पांडेय यहां के राज्यपाल बने थे. वह भी ब्यूरोक्रेट्स थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह के कार्यकाल में कैबिनेट सचिव थे. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बिहार के राज्यपाल बने. वहीं से झारखंड पहुंचे और यहां से अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बने. दो ब्यूरोक्रेट के बाद झारखंड के राज्यपाल के पद को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे एम.रमा.जोइस ने सुशोभित किया. उन्होंने अंग्रेजी और कन्नड़ भाषाओं में कई किताबें लिखी थी.
इनके बाद चौथे राज्यपाल बनकर आए वेद मारवाह. वह दिल्ली के कमिश्नर के अलावा एनएसजी के महानिदेशक रह चुके थे. वह झारखंड आने से पहले मिजोरम और मणिपुर के राज्यपाल रह चुके थे.
झारखंड के राजभवन में एक राजनेता की एंट्री सैयद सिब्ते रजी के रूप में हुई. वह 10 दिसंबर 2004 से 25 जुलाई 2009 तक राज्यपाल रहे. द्रौपदी मुर्मू के बाद सबसे ज्यादा वक्त तक सैयद सिब्ते रजी ही राज्यपाल रहे. साल 2005 में उन्होंने एनडीए की संख्या को नजरअंदाज कर झामुमो के शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्यौता दिया था. इसको लेकर काफी विवाद हुआ था. इस मामले में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को हस्तक्षेप करना पड़ा था. इनके बाद छठे राज्यपाल के रूप में के.शंकरनारायणन आये थे. वह भी कांग्रेस नेता थे. झारखंड आने से पहले नागालैंड के राज्यपाल थे. यहीं से उन्हें महाराष्ट्र की जिम्मेदारी मिली थी.
के. शंकरनारायणन के जाने के बाद एम.ओ.एच.फारूक ने उनकी जगह ली थी. वह करीब एक साल 8 माह तक राज्यपाल थे. इनकी अल्प अवधि के बाद कांग्रेस नेता सैयद अहमद 4 सितंबर 2011 को आठवें राज्यपाल बनकर झारखंड आए. सबसे ज्यादा समय तक पद पर रहने वाले तीसरे राज्यपाल बने. उनकी उत्तराधिकारी के दौरान पर द्रौपदी मुर्मू 18 मई 2015 को राज्यपाल बनकर आई. वह 13 जुलाई 2021 तक राज्यपाल रहीं और थोड़े दिन के बाद ही देश की राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं.