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झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले ने राज्य के विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों को दी है बड़ी राहत, जानिए कैसे

झारखंड के विश्वविद्यालयों में संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर को हटाए जाने के मामले में हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों को संविदा पर नियुक्ति के लिए हटाया नहीं जा सका है.

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संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों को हटाया नहीं जा सकता
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Published : Aug 24, 2021, 1:37 PM IST

रांचीः विश्वविद्यालयों में संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर के मामले में झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) ने अहम फैसला सुनाया है. न्यायाधीश डॉ एसएन पाठक की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर को नई नियुक्ति के नाम पर नहीं हटाया जा सकता है. बता दें कि अदालत ने इस मामले में पहले सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिसको मंगलवार को सुनाया गया है.

यह भी पढ़ेंःतीन विश्वविद्यालयों में सहायक रजिस्ट्रार नियुक्ति मामले में झारखंड हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, नियुक्ति पर लगाई रोक

याचिकाकर्ता डॉ पवन पांडे, प्रभाष गोरई सहित सात लोगों ने झारखंड हाई कोर्ट में इस मामले में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार बनाम प्यारा सिंह के मामले में आदेश पारित है कि संविदा के आधार पर हुई नियुक्ति को संविदा के आधार पर होने वाली नई नियुक्ति से नहीं हटाया जा सकता है. इसके साथ ही झारखंड हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2018 में रितेश कुमार बनाम झारखंड सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया है.

जानकारी देते अधिवक्ता

229 याचिका अब भी लंबित

वहीं, सरकार और विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि पूर्व में संविदा पर बहाल सहायक प्रोफेसर को हटाया नहीं जाएगा. इसके बाद अदालत ने कोल्हान विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय और बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालयों में संविदा पर बहाल सहायक प्रोफेसर को नहीं हटाने का आदेश पारित किया है. हालांकि, इस मामले में अब भी झारखंड हाई कोर्ट में 229 याचिकाएं सुनवाई के लिए लंबित हैं.

2020 में दाखिल की गई थी याचिका

वर्ष 2017 में राज्य सरकार के आदेश पर सभी विश्वविद्यालयों में संविदा के आधार पर सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति की गई थी. लेकिन, मार्च 2020 में सरकार ने फिर से संविदा पर ही सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए बहाली निकाली थी. इसमें पहले से नियुक्त सहायक प्रोफेसर को दोबारा आवेदन करने के लिए कहा गया था. इसी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती गई थी, जिसपर फैसला आया है.

रांचीः विश्वविद्यालयों में संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर के मामले में झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) ने अहम फैसला सुनाया है. न्यायाधीश डॉ एसएन पाठक की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर को नई नियुक्ति के नाम पर नहीं हटाया जा सकता है. बता दें कि अदालत ने इस मामले में पहले सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिसको मंगलवार को सुनाया गया है.

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याचिकाकर्ता डॉ पवन पांडे, प्रभाष गोरई सहित सात लोगों ने झारखंड हाई कोर्ट में इस मामले में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार बनाम प्यारा सिंह के मामले में आदेश पारित है कि संविदा के आधार पर हुई नियुक्ति को संविदा के आधार पर होने वाली नई नियुक्ति से नहीं हटाया जा सकता है. इसके साथ ही झारखंड हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2018 में रितेश कुमार बनाम झारखंड सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया है.

जानकारी देते अधिवक्ता

229 याचिका अब भी लंबित

वहीं, सरकार और विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता ने पक्ष रखते हुए कहा था कि पूर्व में संविदा पर बहाल सहायक प्रोफेसर को हटाया नहीं जाएगा. इसके बाद अदालत ने कोल्हान विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय और बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालयों में संविदा पर बहाल सहायक प्रोफेसर को नहीं हटाने का आदेश पारित किया है. हालांकि, इस मामले में अब भी झारखंड हाई कोर्ट में 229 याचिकाएं सुनवाई के लिए लंबित हैं.

2020 में दाखिल की गई थी याचिका

वर्ष 2017 में राज्य सरकार के आदेश पर सभी विश्वविद्यालयों में संविदा के आधार पर सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति की गई थी. लेकिन, मार्च 2020 में सरकार ने फिर से संविदा पर ही सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए बहाली निकाली थी. इसमें पहले से नियुक्त सहायक प्रोफेसर को दोबारा आवेदन करने के लिए कहा गया था. इसी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती गई थी, जिसपर फैसला आया है.

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