रांचीः झारखंड कांग्रेस के नये प्रभारी अविनाश पांडे के बनते ही राज्य की राजनीति में सीएमपी यानि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (न्यूनतम साझा कार्यक्रम) शब्द गुंजने लगा है. राज्य में हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार दिसंबर 2019 में बनी. गठबंधन सरकार बनने के बाद से जनवरी तक हेमंत सोरेन की सरकार में किसी ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का जिक्र नहीं किया. लेकिन आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद से कांग्रेस नेताओं ने जोर शोर से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय करने की बात शुरू कर दी है.
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कांग्रेस के नेताओं की मानें तो चुनावी घोषणाओं में कुछ वादे जनता से की है. इस वादे को कांग्रेस प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना चाहती है. कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहते हैं कि राज्य में ओबीसी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण, किसानों की कर्ज माफी और किसानों से किये वादे शत प्रतिशत धरातल पर उतारना हमारी प्राथमिकता है. इस प्राथमिकता को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में शामिल कर काम शुरू करना होगा. उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को कर्ज माफ करने की दिशा में कदम बढ़ाई है और 50 हजार तक के कर्ज माफ किए भी जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि शीघ्र ही तीनों दलों के नेता एक साथ बैठकर अपनी-अपनी घोषणा पत्र के तहत न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय कर काम शुरू करेंगे.
वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति के सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्या ने कहा कि सरकार का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम चुनाव से पहले ही तय हो गया था. उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले गठबंधन बनी और सरकार बनाई. सीट शेयरिंग के साथ साथ नीतिगत एजेंडे भी तय हो गए थे. उन्होंने कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता झारखंड की पहचान और जनभावना के अनुरूप सरकार चल रही है. इसके बावजूद कांग्रेस सीएमपी चाहती है तो दोनों दलों के केंद्रीय नेतृत्व इस पर बैठ लेंगे.
झारखंड में महागठबंधन की सरकार में सबसे छोटा पार्टनर है. राजद नेता सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि राज्य में जातिगत जनगणना होना चाहिए. केंद्र सरकार जनगणना नहीं कराती है तो राज्य सरकार कराएं. इसके साथ ही ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण और स्थानीय नीति लागू होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार घोषणपत्र के अनुसार चल रही है. अगर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनता है तो राजद अपनी बात रखेगी.