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हेमंत सरकार के 3 साल: 22 में राजभवन से रही तनातनी, एटम बम फूटने की बात से मचा बवाल

हेमंत सरकार के 3 साल पूरे होने पर उपलब्धियों की चर्चा हो रही है. झारखंड की राजनीति में 2022 में जिस तरह से राजभवन सुर्खियों में रहा है वह काफी अहम है. राज्यापाल द्वारा निर्वाचन आयोग से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत भेजी गई चिट्ठी के चिपक जाने का मामला हो या फिर एटम बम के फूटने का, राजभवन बनाम झारखंड सरकार की तकरार (Clash between Raj Bhavan and government in 2022) की सियासत ने पूरे सूबे का सियासी पारा ऊपर चढ़ा रखा था. 3 साल पूरा कर रही सरकार और राजभवन के बीच क्या रहा 22 का अहम मुद्दा.

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Clash between Raj Bhavan and government in 2022
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Published : Dec 28, 2022, 10:31 PM IST

रांची: 2022 में झारखंड की राजनीति में सरकार बनाम राजभवन की चर्चा खूब रही (Clash between Raj Bhavan and government in 2022). 29 दिसंबर को हेमंत सरकार अपने कार्यकाल का तीसरा साल पूरा करने जा रही है. ऐसे में यह बात भी खूब चर्चा में है कि झारखंड की राजनीति में जिस तरह के हालात 2022 में रहे इससे पहले इस तरह की बात नहीं रही है. हेमंत सोरेन को लेकर निर्वाचन आयोग के पत्र की बात हो या फिर झारखंड में बम फोड़ने का बयान, राजभवन और हेमंत सरकार में पूरे साल नूरा कुश्ती चलती रही. ऐसा शायद पहली बार हुआ और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ऐसे पहले सीएम रहे जो राजभवन से अपने ऊपर लगे आरोप की चिट्ठी मांगने पहुंच गए. यह सारी सियासत की कहानी 22 में लिखी गई जो हेमंत सरकार के तीसरे साल के सफरनामे के साथ जुड़ा है.

ये भी पढ़ें: हेमंत सरकार के 3 साल: 2022 में 1932 की सियासत से खींच दी मजमून की नई लकीर


हेमंत कहा पत्र दीजिए: 15 सितंबर 2022 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अचानक राजभवन पहुंचे और राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राजभवन में करीब 40 मिनट तक समय बिताया. राज्यपाल से हुए मुलाकात में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल रमेश बैस को एक पत्र सौंपा. इसमे उन्होंने कहा कि पिछले 3 सप्ताह से राज्य में जो राजनीति की स्थिति बनी हुई है. बीजेपी यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म करने की अनुशंसा निर्वाचन आयोग द्वारा की गई है. इस पत्र को कृपया सार्वजनिक करें ताकि राज्य में बनी राजनीतिक अस्थिरता को खत्म किया जा सके. राज्यपाल को सौंपी गई चिट्ठी (CM Hemant Soren meet Governor Ramesh bais) राज्यपाल को सौंपी गई चिट्ठी हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम पत्थर खदान लीज पर ली थी. बीजेपी ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जन प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी. राज्यपाल ने इसे चुनाव आयोग के पास भेज कर उनका मंतव्य मांगा था.


राज्यपाल ने कहा चिट्ठी चिपक गई है: निर्वाचन आयोग से राजभवन को आए पत्र को लेकर पूरे सूबे की राजनीति 2 महीने से ज्यादा उहापोह में रही. झारखंड की राजनीति में पौने दो महीने के बाद भी लाख टके का सवाल यही रहा कि चुनाव आयोग ने सीलबंद लिफाफे में अपना जो मंतव्य राजभवन को भेजा था, उसका मजमून क्या है? सवाल यह भी कि चुनाव आयोग के मंतव्य पर राज्यपाल का फैसला क्या होगा और कब होगा? यही सवाल पत्रकारों ने राज्यपाल से दो बार पूछा. पहली बार राज्यपाल ने हल्के-फुल्के अंदाज में सवाल टालते हुए कहा कि चुनाव आयोग से जो लिफाफा आया है, वह इतनी जोर से चिपका है कि खुल ही नहीं रहा. दूसरी बार उन्होंने पत्रकारों के इस सवाल पर कहा कि यह उनका अधिकार क्षेत्र है कि वह चुनाव आयोग के मंतव्य पर कब और क्या निर्णय लेंगे? उनके अधिकार पर किसी को सवाल नहीं उठाना चाहिए.


एक एटम बम फूट सकता है: झारखंड की राजनीति में निर्वाचन आयोग से राजभवन को आए पत्र को लेकर पूरे सूबे की की नजर राजभवन के निर्णय पर टिकी थी कि राज्यपाल क्या फैसला लेंगे. शायद यह भी पहली बार ही हो रहा था कि निर्वाचन आयोग से आए पत्र को खोलने में राजभवन इतनी देरी क्यों कर रहा है. बहरहाल कानूनी प्रक्रिया का अपना स्वरूप होता है उसके लिए कानून के तहत बने पद और अधिकार तय है. यह बात चर्चा में भी तभी राज्यपाल रमेश बैस ने कह दिया कि झारखंड मे एक एटम बम फूट सकता है. राज्यपाल के इस बयान ने हेमंत सरकार और झामुमो की राजनीति को और हमलावर बना दिया.


राजभवन ने कई बिल किया वापस: राज्य सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर राज्यपाल रमेश बैस ने पिछले आठ-दस महीने में कई बार सवाल उठाए हैं. फरवरी महीने में राज्यपाल ने राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई सवाल उठाये थे. राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार की ओर से जून 2021 में बनाई गई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी. उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबंधित फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा था. महीनों बाद भी इस मामले पर राजभवन और सरकार में गतिरोध बरकरार है.


राज्यपाल की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से लौटा चुके हैं. उन्होंने सरकार की ओर से कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर पारित विधेयक को भी पुनर्विचार के लिए लौटाया है. राज्यपाल ने सरकार के आबकारी नीति को भी वापस समीक्षा के लिए सरकार के वापस भेज दिया. राज्य के पर्यटन, सांस्कृतिक विकास, खेलकूद और युवा मामलों विभाग के कामकाज के रिव्यू के दौरान राज्यपाल ने असंतोष जताते हुए यहां तक टिप्पणी की थी कि राज्य में विजन की कमी साफ दिखती है.


29 दिसम्बर को सरकार के कामकाज के 3 साल पूरे हो रहे हैं. कई विवाद 2022 में हेमंत के सियासी दामन से चिपके गए हैं. राजभवन हेमंत सरकार के विरोध वाली राजनीति को लेकर चल रही है यह आरोप झामुमो का है. बीजेपी इसे राज्यपाल का अधिकार बताती है. बहरहाल 22 में अपने 3 साल पूरा करने वाली हेमंत सरकार 23 की नई राजनीतिक चुनौती के लिए तैयर हो रही है लेकिन अहम यही है कि क्या 23 में 22 वाले विवाद पर विराम लगेगा.

रांची: 2022 में झारखंड की राजनीति में सरकार बनाम राजभवन की चर्चा खूब रही (Clash between Raj Bhavan and government in 2022). 29 दिसंबर को हेमंत सरकार अपने कार्यकाल का तीसरा साल पूरा करने जा रही है. ऐसे में यह बात भी खूब चर्चा में है कि झारखंड की राजनीति में जिस तरह के हालात 2022 में रहे इससे पहले इस तरह की बात नहीं रही है. हेमंत सोरेन को लेकर निर्वाचन आयोग के पत्र की बात हो या फिर झारखंड में बम फोड़ने का बयान, राजभवन और हेमंत सरकार में पूरे साल नूरा कुश्ती चलती रही. ऐसा शायद पहली बार हुआ और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ऐसे पहले सीएम रहे जो राजभवन से अपने ऊपर लगे आरोप की चिट्ठी मांगने पहुंच गए. यह सारी सियासत की कहानी 22 में लिखी गई जो हेमंत सरकार के तीसरे साल के सफरनामे के साथ जुड़ा है.

ये भी पढ़ें: हेमंत सरकार के 3 साल: 2022 में 1932 की सियासत से खींच दी मजमून की नई लकीर


हेमंत कहा पत्र दीजिए: 15 सितंबर 2022 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अचानक राजभवन पहुंचे और राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राजभवन में करीब 40 मिनट तक समय बिताया. राज्यपाल से हुए मुलाकात में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल रमेश बैस को एक पत्र सौंपा. इसमे उन्होंने कहा कि पिछले 3 सप्ताह से राज्य में जो राजनीति की स्थिति बनी हुई है. बीजेपी यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म करने की अनुशंसा निर्वाचन आयोग द्वारा की गई है. इस पत्र को कृपया सार्वजनिक करें ताकि राज्य में बनी राजनीतिक अस्थिरता को खत्म किया जा सके. राज्यपाल को सौंपी गई चिट्ठी (CM Hemant Soren meet Governor Ramesh bais) राज्यपाल को सौंपी गई चिट्ठी हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम पत्थर खदान लीज पर ली थी. बीजेपी ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जन प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी. राज्यपाल ने इसे चुनाव आयोग के पास भेज कर उनका मंतव्य मांगा था.


राज्यपाल ने कहा चिट्ठी चिपक गई है: निर्वाचन आयोग से राजभवन को आए पत्र को लेकर पूरे सूबे की राजनीति 2 महीने से ज्यादा उहापोह में रही. झारखंड की राजनीति में पौने दो महीने के बाद भी लाख टके का सवाल यही रहा कि चुनाव आयोग ने सीलबंद लिफाफे में अपना जो मंतव्य राजभवन को भेजा था, उसका मजमून क्या है? सवाल यह भी कि चुनाव आयोग के मंतव्य पर राज्यपाल का फैसला क्या होगा और कब होगा? यही सवाल पत्रकारों ने राज्यपाल से दो बार पूछा. पहली बार राज्यपाल ने हल्के-फुल्के अंदाज में सवाल टालते हुए कहा कि चुनाव आयोग से जो लिफाफा आया है, वह इतनी जोर से चिपका है कि खुल ही नहीं रहा. दूसरी बार उन्होंने पत्रकारों के इस सवाल पर कहा कि यह उनका अधिकार क्षेत्र है कि वह चुनाव आयोग के मंतव्य पर कब और क्या निर्णय लेंगे? उनके अधिकार पर किसी को सवाल नहीं उठाना चाहिए.


एक एटम बम फूट सकता है: झारखंड की राजनीति में निर्वाचन आयोग से राजभवन को आए पत्र को लेकर पूरे सूबे की की नजर राजभवन के निर्णय पर टिकी थी कि राज्यपाल क्या फैसला लेंगे. शायद यह भी पहली बार ही हो रहा था कि निर्वाचन आयोग से आए पत्र को खोलने में राजभवन इतनी देरी क्यों कर रहा है. बहरहाल कानूनी प्रक्रिया का अपना स्वरूप होता है उसके लिए कानून के तहत बने पद और अधिकार तय है. यह बात चर्चा में भी तभी राज्यपाल रमेश बैस ने कह दिया कि झारखंड मे एक एटम बम फूट सकता है. राज्यपाल के इस बयान ने हेमंत सरकार और झामुमो की राजनीति को और हमलावर बना दिया.


राजभवन ने कई बिल किया वापस: राज्य सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर राज्यपाल रमेश बैस ने पिछले आठ-दस महीने में कई बार सवाल उठाए हैं. फरवरी महीने में राज्यपाल ने राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई सवाल उठाये थे. राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार की ओर से जून 2021 में बनाई गई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी. उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबंधित फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा था. महीनों बाद भी इस मामले पर राजभवन और सरकार में गतिरोध बरकरार है.


राज्यपाल की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से लौटा चुके हैं. उन्होंने सरकार की ओर से कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर पारित विधेयक को भी पुनर्विचार के लिए लौटाया है. राज्यपाल ने सरकार के आबकारी नीति को भी वापस समीक्षा के लिए सरकार के वापस भेज दिया. राज्य के पर्यटन, सांस्कृतिक विकास, खेलकूद और युवा मामलों विभाग के कामकाज के रिव्यू के दौरान राज्यपाल ने असंतोष जताते हुए यहां तक टिप्पणी की थी कि राज्य में विजन की कमी साफ दिखती है.


29 दिसम्बर को सरकार के कामकाज के 3 साल पूरे हो रहे हैं. कई विवाद 2022 में हेमंत के सियासी दामन से चिपके गए हैं. राजभवन हेमंत सरकार के विरोध वाली राजनीति को लेकर चल रही है यह आरोप झामुमो का है. बीजेपी इसे राज्यपाल का अधिकार बताती है. बहरहाल 22 में अपने 3 साल पूरा करने वाली हेमंत सरकार 23 की नई राजनीतिक चुनौती के लिए तैयर हो रही है लेकिन अहम यही है कि क्या 23 में 22 वाले विवाद पर विराम लगेगा.

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