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झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर खूब होता है महिलाओं पर अत्याचार, 6 साल में 4500 से ज्यादा केस

झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर महिलाओं को खिलाफ खूब अत्याचार होता है. पिछले 6 सालों में 4,556 मामले सामने आए जिसमें 310 केस हत्या का है. इसके अलावा कई ऐसे मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचते ही नहीं. इस बारे में कोई शिकायत नहीं करता.

Witch cases in jharkhand
झारखंड में डायन बिसाही की घटनाएं
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Published : Apr 1, 2021, 5:23 PM IST

Updated : Apr 1, 2021, 9:27 PM IST

रांची: झारखंड में डायन करार देकर महिलाओं पर अत्याचार और हत्या कर देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. झारखंड पुलिस के आंकड़े यह बताते हैं कि राज्य में किसी न किसी थाने में हर हफ्ते डायन बिसाही के दो मामले जरूर आते हैं. 2021 में अब तक डायन के नाम पर झारखंड के अलग-अलग जिलों में 16 लोगों की हत्या हो चुकी है. इसमें ज्यादातर महिलाएं थी. डायन बिसाही के ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते. ऐसे में इस भयावह समस्या की असल तस्वीर क्या है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

गुमला के कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातु गांव में 22 फरवरी की रात निकोदिन टोपनो के पूरे परिवार की हत्या डायन बिसाही की आशंका के आधार पर कर दी गई थी. हत्या के आरोप में गुमला पुलिस की तरफ से गांव के ही 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. राजधानी रांची में भी डायन के नाम पर तीन हत्या के मामले इस साल सामने आए हैं.

यह भी पढ़ें: 'बाल विवाह एक अभिशाप'...बाल विवाह के दंश में फंस रहा बचपन, देश में तीसरे स्थान पर है झारखंड

6 साल में 4,556 मामले

पिछले छः साल(2015-20) के आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड में 4,556 मामले दर्ज किए गए. इसमें हत्या से संबंधित 310 मामले दर्ज हैं. डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 2015 में 818, 2016 में 688, 2017 में 668, 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किए गए हैं. 2020 में डायन बिसाही के नाम पर 30 लोगों की हत्या कर दी गई.

पिछले साल जमशेदपुर में सबसे अधिक केस

2020 में डायन बिसाही के सबसे ज्यादा मामले पश्चिमी सिंहभूम में सामने आए. इस साल डायन के आरोप में 5 लोगों की हत्या कर दी गई और 22 लोगों की बेरहमी से पिटाई की गई. डायन के नाम पर पिछले साल खूंटी में तीन, रांची, पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह और सरायकेला में दो-दो लोगों की हत्या कर दी गई. 2020 में रांची में डायन के नाम पर 5 महिलाओं के हाथ जला दिए गए थे. इसके अलावा 22 लोगों की पिटाई कर दी गई. लातेहार में 20, साहिबगंज में 19, चतरा में 18 और खूंटी में 12 लोगों की पिटाई का मामला सामने आया. रांची के बेड़ो, नामकुम, लापुंग, दशम, अनगड़ा और तुपुदाना ऐसे इलाके हैं जहां अक्सर डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने की खबरें सामने आती हैं.

क्यों लगते हैं डायन-बिसारी के आरोप

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोग किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में पहले नीम-हकीम या ओझा के पास जाते हैं. जब झोलाछाप डॉक्टरों और ओझा से कुछ नहीं हो पाता तब वह आस पड़ोस की किसी महिला को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए उसे डायन करार दे देते हैं. मौजूदा समय में गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं और ऐसी स्थिति में डॉक्टर और ओझा ही लोगों का सहारा है. ओझा की ओर से डायन करार दी गई महिला का उत्पीड़न शुरू होता है और कई बार लोग जान से भी मार देते हैं. लोग पुरानी मान्यताओं को मानते हुए किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, जानवरो की तबीयत खराब होने पर यह मान लेते हैं कि किसी की नजर लगी है.

यह भी पढ़ें: शहर को जलने के दर्द से कैसे बचाएगा हजारीबाग का अग्निशमन विभाग, खुद झेल रहा संसाधनों की कमी का दंश

संपत्ति हड़पने की साजिश के तहत भी होती है हत्याएं

झारखंड के एडीजी सीआईडी अनिल पलटा के मुताबिक डायन हत्या के पीछे आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और दूसरी निजी और सामाजिक संघर्ष प्रमुख कारण है. अधिकतर आदिवासी समुदाय में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में जमीन पर ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं. इस संपत्ति पर अधिकार जमाने के लिए उन्हें डायन साबित करने की कवायद शुरू की जाती है. खासकर उन महिलाओं को निशाने पर रखा जाता है जिनके परिवार में कोई नहीं होता. ग्रामीण इलाकों में संपत्ति हड़पने या आपसी रंजिश के लिए भी इस कुप्रथा की आड़ ली जाती है. खासकर किसी विधवा को डायन करार देकर मारने के बाद उसकी संपत्ति हड़पना आसान है. ऐसे मामलों में पुलिस या जिला प्रशासन की तरफ से भी कुछ खास एक्शन नहीं लिया जाता.

गिरफ्तारी के बाद भी नहीं थमते मामले

डायन बिसारी के मामले में गांव के लोग ही हत्या में शामिल होते हैं. रांची के मांडर में 7 साल पहले एक फौजी के पूरे परिवार को डायन बिसाही के आरोप में मार डाला गया था. पुलिस ने इस मामले में 32 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया था और सभी को जेल भेज दिया था. बाकी मामलों में भी 99% गिरफ्तारी पुलिस करती है लेकिन इसके बावजूद डायन बिसाही के मामले थमते नजर नहीं आते हैं. डायन के नाम पर मारपीट करने वाले या फिर हत्या करने वाले लोग अंधविश्वास में इतने जकड़े होते हैं कि उन्हें सही और गलत की समझ जेल जाने के बाद भी नहीं होती.

ऐसे मामले रोकने के लिए क्या उपाय हो रहे

2019 के दिसंबर में यह निर्णय लिया गया था कि डायन बिसाही के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार कर ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाई जाएगी. हालांकि, कोरोना संक्रमण की वजह से योजनाएं धरी रह गईं. कुछ जगह पर पुलिस गांव के मुखिया के साथ लोगों को जरूर जागरूक कर रहे हैं. लेकिन, इससे ज्यादा सुधार की उम्मीद नहीं है.

चौकीदार को विशेष आदेश

झारखंड के सभी ग्रामीण थानों में चौकीदार की भूमिका बेहद अहम होती है. डायन बिसाही के मामले को बढ़ता देख सभी चौकीदारों को आदेश दिया गया है कि अगर उनके गांव में किसी तरह का मामला डायन बिसाही को लेकर है तो तुरंत इसकी जानकारी स्थानीय थाना को दे. पुलिस के प्रयास से ऐसे मामले रोकना बेहद मुश्किल है. इसके लिए गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होनी जरूर है. लोगों को यह बताना होगा कि कोई बीमारी होती है तो उसका इलाज डॉक्टर ही कर सकते हैं. कहीं और गए जान पर भी आफत आ सकती है.

रांची: झारखंड में डायन करार देकर महिलाओं पर अत्याचार और हत्या कर देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. झारखंड पुलिस के आंकड़े यह बताते हैं कि राज्य में किसी न किसी थाने में हर हफ्ते डायन बिसाही के दो मामले जरूर आते हैं. 2021 में अब तक डायन के नाम पर झारखंड के अलग-अलग जिलों में 16 लोगों की हत्या हो चुकी है. इसमें ज्यादातर महिलाएं थी. डायन बिसाही के ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते. ऐसे में इस भयावह समस्या की असल तस्वीर क्या है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

गुमला के कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातु गांव में 22 फरवरी की रात निकोदिन टोपनो के पूरे परिवार की हत्या डायन बिसाही की आशंका के आधार पर कर दी गई थी. हत्या के आरोप में गुमला पुलिस की तरफ से गांव के ही 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. राजधानी रांची में भी डायन के नाम पर तीन हत्या के मामले इस साल सामने आए हैं.

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6 साल में 4,556 मामले

पिछले छः साल(2015-20) के आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड में 4,556 मामले दर्ज किए गए. इसमें हत्या से संबंधित 310 मामले दर्ज हैं. डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 2015 में 818, 2016 में 688, 2017 में 668, 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किए गए हैं. 2020 में डायन बिसाही के नाम पर 30 लोगों की हत्या कर दी गई.

पिछले साल जमशेदपुर में सबसे अधिक केस

2020 में डायन बिसाही के सबसे ज्यादा मामले पश्चिमी सिंहभूम में सामने आए. इस साल डायन के आरोप में 5 लोगों की हत्या कर दी गई और 22 लोगों की बेरहमी से पिटाई की गई. डायन के नाम पर पिछले साल खूंटी में तीन, रांची, पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह और सरायकेला में दो-दो लोगों की हत्या कर दी गई. 2020 में रांची में डायन के नाम पर 5 महिलाओं के हाथ जला दिए गए थे. इसके अलावा 22 लोगों की पिटाई कर दी गई. लातेहार में 20, साहिबगंज में 19, चतरा में 18 और खूंटी में 12 लोगों की पिटाई का मामला सामने आया. रांची के बेड़ो, नामकुम, लापुंग, दशम, अनगड़ा और तुपुदाना ऐसे इलाके हैं जहां अक्सर डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने की खबरें सामने आती हैं.

क्यों लगते हैं डायन-बिसारी के आरोप

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोग किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में पहले नीम-हकीम या ओझा के पास जाते हैं. जब झोलाछाप डॉक्टरों और ओझा से कुछ नहीं हो पाता तब वह आस पड़ोस की किसी महिला को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए उसे डायन करार दे देते हैं. मौजूदा समय में गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं और ऐसी स्थिति में डॉक्टर और ओझा ही लोगों का सहारा है. ओझा की ओर से डायन करार दी गई महिला का उत्पीड़न शुरू होता है और कई बार लोग जान से भी मार देते हैं. लोग पुरानी मान्यताओं को मानते हुए किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, जानवरो की तबीयत खराब होने पर यह मान लेते हैं कि किसी की नजर लगी है.

यह भी पढ़ें: शहर को जलने के दर्द से कैसे बचाएगा हजारीबाग का अग्निशमन विभाग, खुद झेल रहा संसाधनों की कमी का दंश

संपत्ति हड़पने की साजिश के तहत भी होती है हत्याएं

झारखंड के एडीजी सीआईडी अनिल पलटा के मुताबिक डायन हत्या के पीछे आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और दूसरी निजी और सामाजिक संघर्ष प्रमुख कारण है. अधिकतर आदिवासी समुदाय में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में जमीन पर ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं. इस संपत्ति पर अधिकार जमाने के लिए उन्हें डायन साबित करने की कवायद शुरू की जाती है. खासकर उन महिलाओं को निशाने पर रखा जाता है जिनके परिवार में कोई नहीं होता. ग्रामीण इलाकों में संपत्ति हड़पने या आपसी रंजिश के लिए भी इस कुप्रथा की आड़ ली जाती है. खासकर किसी विधवा को डायन करार देकर मारने के बाद उसकी संपत्ति हड़पना आसान है. ऐसे मामलों में पुलिस या जिला प्रशासन की तरफ से भी कुछ खास एक्शन नहीं लिया जाता.

गिरफ्तारी के बाद भी नहीं थमते मामले

डायन बिसारी के मामले में गांव के लोग ही हत्या में शामिल होते हैं. रांची के मांडर में 7 साल पहले एक फौजी के पूरे परिवार को डायन बिसाही के आरोप में मार डाला गया था. पुलिस ने इस मामले में 32 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया था और सभी को जेल भेज दिया था. बाकी मामलों में भी 99% गिरफ्तारी पुलिस करती है लेकिन इसके बावजूद डायन बिसाही के मामले थमते नजर नहीं आते हैं. डायन के नाम पर मारपीट करने वाले या फिर हत्या करने वाले लोग अंधविश्वास में इतने जकड़े होते हैं कि उन्हें सही और गलत की समझ जेल जाने के बाद भी नहीं होती.

ऐसे मामले रोकने के लिए क्या उपाय हो रहे

2019 के दिसंबर में यह निर्णय लिया गया था कि डायन बिसाही के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार कर ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाई जाएगी. हालांकि, कोरोना संक्रमण की वजह से योजनाएं धरी रह गईं. कुछ जगह पर पुलिस गांव के मुखिया के साथ लोगों को जरूर जागरूक कर रहे हैं. लेकिन, इससे ज्यादा सुधार की उम्मीद नहीं है.

चौकीदार को विशेष आदेश

झारखंड के सभी ग्रामीण थानों में चौकीदार की भूमिका बेहद अहम होती है. डायन बिसाही के मामले को बढ़ता देख सभी चौकीदारों को आदेश दिया गया है कि अगर उनके गांव में किसी तरह का मामला डायन बिसाही को लेकर है तो तुरंत इसकी जानकारी स्थानीय थाना को दे. पुलिस के प्रयास से ऐसे मामले रोकना बेहद मुश्किल है. इसके लिए गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होनी जरूर है. लोगों को यह बताना होगा कि कोई बीमारी होती है तो उसका इलाज डॉक्टर ही कर सकते हैं. कहीं और गए जान पर भी आफत आ सकती है.

Last Updated : Apr 1, 2021, 9:27 PM IST
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