पलामूः जिस इलाके में माओवादी लोगों को लाल आतंक का पाठ पढ़ाते थे, आज उस इलाके में सुरक्षा बलों के सानिध्य में बच्चे लोकतंत्र की भाषा सीख रहे हैं. ये बदलाव एक दिन की कहानी नहीं है. एक दो नहीं तीन दशक की तपस्या, अथक परिश्रम और चट्टानी इरादों की बदौलत ये संभव हुआ है. जहां के बच्चे कभी माओवादियों का सामान ढोते थे आज वो स्कूल का बस्ता उठा रहे हैं. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से जानिए, बूढ़ा पहाड़ के बदलाव की कहानी.
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नक्सली इलाके में बदलाव से जुड़ी हुई कई खबरों को आपने पढ़ी होगी और बदलाव को जाना भी होगा. लेकिन कुछ खबरें यह बताती है कि देश और समाज किस तरह बदल रहा है. हम आपको उस इलाके की बदलाव की कहानी बता रहे है जहां लाल क्रांति (माओवाद) का पाठ पढ़ाया जाता था और इसके नीति और सिद्धान्तों को तय किया जाता था. अब उस इलाके में बदलाव की शुरुआत हुई है. बदलाव के वाहक बने है सीआरपीएफ और पुलिस के जवान.
बूढ़ा पहाड़ के नाम से आज लोग खासे परिचित हैं, देश के अधिकांश हिस्से में लोग इस स्थान को भली भांति जान चुके हैं. बूढ़ा पहाड़ के इलाके से तस्वीरें जो निकल कर सामने आ रही हैं, वह बेहद सुखद है और भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाली है. बूढ़ा पहाड़ के इलाके में तैनात सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व बल) और झारखंड पुलिस मिलकर लोगों के जीवन में बदलाव ला रही है.
इसी कड़ी में सबसे पहले इलाके के लोगों को शिक्षित किया जा रहा है. सीआरपीएफ के जवान बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के गांव के बच्चों को पढ़ा रहे हैं. सीआरपीएफ कैंप में बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्हें पाठ्य सामग्री के साथ-साथ स्कूली ड्रेस भी उपलब्ध करवाया है. आसपास के ग्रामीणों के बच्चे प्रतिदिन सीआरपीएफ के कैंप में पहुंचते हैं और पढ़ाई करते हैं. बच्चों को सीआरपीएफ के कैंप में कंप्यूटर समेत कई विषयों की पढ़ाई करायी जा रही है.
12 किलोमीटर के दायरे में मात्र दो स्कूल, छत्तीसगढ़ के बच्चे भी पहुंच रहे कैंपः बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के 12 किलोमीटर के दायरे में मात्र दो सरकारी स्कूल है. बूढ़ा पहाड़ झारखंड का नजदीकी गांव बहेराटोली का स्कूल है जो करीब 18 किलोमीटर दूर है जबकि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के पुंदाग इलाके में एक स्कूल है. छत्तीसगढ़ के इलाके का स्कूल बंद रहता है. बूढ़ा पहाड़ पर मौजूद सीआरपीएफ कैंप में बूढ़ा गांव जबकि छत्तीसगढ़ के पुंदाग, भुताही इलाके के करीब 50 बच्चे पढ़ाई के लिए आ रहे हैं. छत्तीसगढ़ के बच्चे करीब दो किलोमीटर का पैदल सफर तय करके पढ़ाई के लिए यहां पहुंचते हैं. कैंप में तैनात असिस्टेंट कमांडेंट, इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी बच्चों को पढ़ाते हैं.
नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा- आईजीः पलामू जोन आईजी राजकुमार लकड़ा बताते हैं कि बूढ़ा पहाड़ का इलाका दशकों से उपेक्षित रहा है लेकिन अब इस इलाके में शिक्षा की अलख जगायी जा रही है. उन्होंने कहा कि जब बच्चों को यूनिफॉर्म, किताब दी गई थीं उस दौरान उनके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी. आईजी बताते हैं बूढ़ा पहाड़ के इलाके से माओवादी लोगों और बच्चों को देश के खिलाफ बातें सिखाते थे. लेकिन आज यहां के बच्चों को उचित शिक्षा के साथ साथ सकारात्मक पाठ पढ़ाया जा रहा है.
कई बच्चे रहे माओवादी दस्ते का सदस्यः झारखंड छत्तीसगढ़ सीमा पर बूढ़ा पहाड़ करीब 52 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. तीन दशक के नक्सली इतिहास में दर्जनों बच्चे नक्सल कैडर के सदस्य रहे. बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के दर्जनों ग्रामीणों पर आज भी नक्सली मामले को लेकर एफआईआर दर्ज हैं. 2013 से 2018 के बीच बूढ़ा पहाड़ के इलाके से माओवादियों द्वारा बच्चों को उठाने की खबरें निकल कर सामने आई थीं. 2018-19 में माओवादी बूढ़ा पहाड़ के नजदीकी गांव बहेराटोली से पांच बच्चों को उठाकर ले गए थे. परिजनों के दबाव के बाद उन्होंने बच्चों को छोड़ दिया था. माओवादी बच्चों से अपनी सामग्री को ढुलवाने के लिए भी इन बच्चों का इस्तेमाल करते थे.
बूढ़ा पहाड़ पर 1990 से था माओवादियों का कब्जाः झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य में फैला, गढ़वा और लातेहार जिला में स्थित बूढ़ा पहाड़ घना और दुर्गम होने के कारण नक्सलियों के ठिकाने के रूप में काफी मुफीद जगह रही. 1990 के दशक में बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों ने कब्जा जमाया और यहां से उन्होंने अपने कई नापाक मंसूबों को अंजाम दिया. उस वक्त तो हालत और गंभीर थी क्योंकि इलाका दुर्गम, घने जंगल और घनी आबादी से दूर होने के कारण सेंट्रल कमेटी के आला कमांडर्स का ये अड्डा हुआ करता था. इस बीच पुलिस ने कई ऑपरेशन चलाए लेकिन कभी भी इस पहाड़ पर सुरक्षा बलों का कब्जा नहीं हो सका. इसके बाद रणनीति के तहत सुरक्षा बलों के विभिन्न बटालियन और फोर्स की मदद से ऑपरेशन ऑक्टोपस, ऑपरेशन थंडर और ऑपरेशन बुलबुल चलाकर साल 2021-22 में बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों के कब्जे से मुक्त कराया.
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