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यहां न कोई कुंआ है न चापाकल, झरने के गंदे पानी को पीते हैं ग्रामीण - पाकुड़ में पानी

पाकुड़ के दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां के ग्रामीण पीने के पानी को भी तरस रहे हैं. इन गांवों की हालत यह है कि यहां आज तक न ही एक कुंआ बन पाया है न ही चापाकल ही है. ऐसे में ग्रामीण सैंकड़ों मीटर दूर जाकर झरने से निकले गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं.

डिजाइन फोटो
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Published : Dec 31, 2019, 7:31 PM IST

पाकुड़: 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग कर झारखंड राज्य का गठन किया गया था, यहां के आदिवासी हितों को देखते हुए. लेकिन 19 साल बाद भी इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ. जनजातीय समुदाय पहले भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे और आज भी इससे वंचित ही हैं. पाकुड़ के जनजातीय समुदायों की हालत तो कुछ ऐसी है कि इन्हें पानी तक के लिए तरसना पड़ रहा है. यहां के गांवों के ग्रामीण सैंकड़ों मीटर की दूरी तय करते हैं तब जाकर अपनी प्यास बुझाते हैं.

देखें यह स्पेशल स्टोरी

दर्जनों गांव हैं प्यासे
19 साल के झारखंड में जनजातीय समुदाय के विकास की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकुड़ के पहाड़िया, तेतुलकुड़िया, तेसोकुंडी, अमरभीटा आदि ऐसे दर्जनों गांव हैं जहां आज तक सरकार एक चापाकल या कुंआ तक नहीं बनवा पाई है. ऐसे में इन गांवों के लोग आज भी झरने का पानी पीने को मजबूर हैं. यह समस्या ग्रामीणों के सामने बस इसलिए आई क्योंकि आज तक किसी ने इनकी समस्या को दूर करने के लिए कोई जरूरी पहल ही नहीं की.

ये भी पढ़ें: सरकारी उदासीनता का शिकार है हजारीबाग वन्यजीव अभ्यारण्य, कभी जंगली जानवरों की आवाज से थर्राता था इलाका

गांवों में कुएं तक को तरसते ग्रामीण
इस बारे में सरकार-प्रशासन का यही कहना है कि ये गांव दुर्गम पहाड़ों पर बसे हैं, ऐसे में यहां खुदाई काफी मुश्किल है. वहीं जलस्तर का नीचे होना भी कुआं, चापाकल के नहीं होने का प्रमुख कारण है. इसके साथ ही यहां पर सड़कों का विकास न हो पाना भी इसका एक प्रमुख कारण है. लेकिन सवाल उठता है कि इस तरह यहां के भौगोलिक स्थिति का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारियों से हाथ धोना कितना उचित है. हालांकि पाकुड़ डीसी कुलदीप चौधरी ने कहा है कि इस दिशा में काम चालू है.

भौगोलिक स्थिति का रोना रो रही प्रशासन
दुर्गम पहाड़ों पर स्थित ग्रामीणों के समक्ष व्याप्त पेयजल समस्या को लेकर डीसी कुलदीप चौधरी ने बताया कि आवागमन की समस्या रहने के कारण इन गांवों तक पेयजल की व्यवस्था नहीं कराई जा सकी थी लेकिन अब जिले में सड़क बनाने को लेकर जो प्रस्ताव भेजा गया था वो स्वीकृत हो गया है. इसके साथ ही आईटीडीए विभाग से डीप बोरिंग के लिए भी स्वीकृति मिल गई है, ऐसे में सड़क दुरुस्त होते ही बोरिंग करा कर टंकी के माध्यम से लोगों के घरों तक शुद्ध पेयजल मुहैया करा दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें: गुमलाः सदर अस्पताल में नहीं मिल रही दवाईयां, मरीजों को बाहर से खरीदनी पड़ती है दवाई

आखिर कब होगा विकास
डीसी के इन बातों से विकास की एक उम्मीद तो जगी है लेकिन यह उम्मीद कितना ठहरती है यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि 19 साल तक जनजातीय समुदायों को सिर्फ आश्वासन ही तो मिलता आया है, लेकिन एक सच यह भी है कि जब तक इन जनजातीय समुदायों का सही मायने में विकास नहीं हो पाता, सरकार-प्रशासन इनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरते तब तक झारखंड विकास की बात बेमानी है.

पाकुड़: 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग कर झारखंड राज्य का गठन किया गया था, यहां के आदिवासी हितों को देखते हुए. लेकिन 19 साल बाद भी इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ. जनजातीय समुदाय पहले भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे और आज भी इससे वंचित ही हैं. पाकुड़ के जनजातीय समुदायों की हालत तो कुछ ऐसी है कि इन्हें पानी तक के लिए तरसना पड़ रहा है. यहां के गांवों के ग्रामीण सैंकड़ों मीटर की दूरी तय करते हैं तब जाकर अपनी प्यास बुझाते हैं.

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दर्जनों गांव हैं प्यासे
19 साल के झारखंड में जनजातीय समुदाय के विकास की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकुड़ के पहाड़िया, तेतुलकुड़िया, तेसोकुंडी, अमरभीटा आदि ऐसे दर्जनों गांव हैं जहां आज तक सरकार एक चापाकल या कुंआ तक नहीं बनवा पाई है. ऐसे में इन गांवों के लोग आज भी झरने का पानी पीने को मजबूर हैं. यह समस्या ग्रामीणों के सामने बस इसलिए आई क्योंकि आज तक किसी ने इनकी समस्या को दूर करने के लिए कोई जरूरी पहल ही नहीं की.

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गांवों में कुएं तक को तरसते ग्रामीण
इस बारे में सरकार-प्रशासन का यही कहना है कि ये गांव दुर्गम पहाड़ों पर बसे हैं, ऐसे में यहां खुदाई काफी मुश्किल है. वहीं जलस्तर का नीचे होना भी कुआं, चापाकल के नहीं होने का प्रमुख कारण है. इसके साथ ही यहां पर सड़कों का विकास न हो पाना भी इसका एक प्रमुख कारण है. लेकिन सवाल उठता है कि इस तरह यहां के भौगोलिक स्थिति का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारियों से हाथ धोना कितना उचित है. हालांकि पाकुड़ डीसी कुलदीप चौधरी ने कहा है कि इस दिशा में काम चालू है.

भौगोलिक स्थिति का रोना रो रही प्रशासन
दुर्गम पहाड़ों पर स्थित ग्रामीणों के समक्ष व्याप्त पेयजल समस्या को लेकर डीसी कुलदीप चौधरी ने बताया कि आवागमन की समस्या रहने के कारण इन गांवों तक पेयजल की व्यवस्था नहीं कराई जा सकी थी लेकिन अब जिले में सड़क बनाने को लेकर जो प्रस्ताव भेजा गया था वो स्वीकृत हो गया है. इसके साथ ही आईटीडीए विभाग से डीप बोरिंग के लिए भी स्वीकृति मिल गई है, ऐसे में सड़क दुरुस्त होते ही बोरिंग करा कर टंकी के माध्यम से लोगों के घरों तक शुद्ध पेयजल मुहैया करा दिया जाएगा.

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आखिर कब होगा विकास
डीसी के इन बातों से विकास की एक उम्मीद तो जगी है लेकिन यह उम्मीद कितना ठहरती है यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि 19 साल तक जनजातीय समुदायों को सिर्फ आश्वासन ही तो मिलता आया है, लेकिन एक सच यह भी है कि जब तक इन जनजातीय समुदायों का सही मायने में विकास नहीं हो पाता, सरकार-प्रशासन इनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरते तब तक झारखंड विकास की बात बेमानी है.

Intro:बाइट : जेठू पहाड़िया, ग्रामीण
बाइट : मेसी पहाड़िन, ग्रामीण
बाइट : कुलदीप चौधरी, डीसी पाकुड़

पाकुड़ : मूलभूत और बुनियादी सुविधाएं ग्रामीणों को मुहैया कराने और गांव की दशा और दिशा बदलने का दावा करने वाली अब तक की झारखंड की सरकारों ने आदिम जनजाति पहाड़िया गांव की समस्याएं नहीं जानी। इसलिए आज पहाड़िया ग्रामीण शुद्ध पेयजल के लिए हो रहे हैं पानी पानी।


Body:कमोबेश यही स्थिति आदिम जनजाति पहाड़िया बहुल पहाड़ पर बसे गांव में रह रहे लोगों की है। जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के आधा दर्जन से अधिक ऐसे गांव हैं जहां के लोग आज भी झरने का पानी पीने को मजबूर है। यह समस्या ग्रामीणों के सामने इसलिए है कि शासन प्रशासन में बैठे लोगों के अलावे जनप्रतिनिधियों ने गांव में रह रहे लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए पहल ही नहीं की। लिट्टीपाड़ा प्रखंड के दुर्गम पहाड़ों पर स्थित तेतुलकुड़िया, तेसोकुंडी, अमरभीटा आदि ऐसे गांव है जहां एक भी चापानल और कुआं नहीं है। चापाकल इसलिए नहीं है इसका अधिष्ठापन ही नही कराया गया और कुआं की खुदाई इसलिए नहीं हो पाई कि जलस्तर काफी नीचे है।

प्रशासन का कहना है कि गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं रहने के कारण चापानल अधिष्ठापन के लिए बोरिंग की गाड़ी नहीं पहुंच पाती थी। झारखंड अलग राज्य बनने के दो दशक बीतने के बाद भी विलुप्त के कगार पर पहुंच रही आदिम जनजाति पहाड़िया को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की दिशा में सार्थक पहल नहीं हो पाई। बहरहाल आज गांव के लोग झरना का पानी लंबी दूरी तय करने के लिए लाने को विवश है।


Conclusion:दुर्गम पहाड़ों पर स्थित ग्रामीणों के समक्ष व्याप्त पेयजल समस्या को लेकर डीसी कुलदीप चौधरी ने बताया कि आवागमन की समस्या रहने के कारण इन गांवों तक पेयजल की व्यवस्था नहीं कराया जा सका था। डीसी ने बताया कि जिला से सड़क बनाने को लेकर प्रस्ताव भेजा गया था और सड़क का काम भी शुरू हो गया है। डीसी ने बताया कि आईटीडीए विभाग से डीप बोरिंग के लिए स्वीकृति दी गई है और सड़क दुरुस्त होते ही बोरिंग करा कर टंकी के माध्यम से लोगों के घरों तक शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जाएगा।
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