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जब चरवाहा बन गए दुमका के बास्कीचक गांव के लोग! जानिए, आपसी सहभागिता से किस समस्या का निकाला हल

सूझबूझ और आपसी सहभागिता हो तो हर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया बास्कीचक के ग्रामीण. दुमका के बास्कीचक गांव के ग्रामीण चरवाहा बन मवेशी और फसल को बचा रहे हैं. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए, क्या है उनकी तरकीबें.

As shepherds people saving cattle and crops at Baschichak village in Dumka
दुमका
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Published : May 2, 2022, 5:38 PM IST

दुमकाः कहते हैं एकता में बल है और आपसी सूझबूझ से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है. इस बात को चरितार्थ किया है दुमका जिला के सदर प्रखंड के बास्कीचक गांव के लोगों ने. बास्कीचक गांव के लोग आपसी सूझबूझ के बाद चरवाहा बनकर एक बड़ी समस्या का समाधान ढूंढ निकाला है.

मवेशियों को चराने के दौरान चरवाहे को शिक्षा भी प्राप्त हो इस उद्देश्य से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में चरवाहा विद्यालय की बात कही थी. हालांकि यह कांसेप्ट ज्यादा सफल नहीं हुआ पर इसकी चर्चा काफी हुई. अब लालू प्रसाद यादव भले ही मवेशी चराने के क्रम में शिक्षा देने में सफल नहीं हुए. लेकिन दुमका के बास्कीचक गांव के ग्रामीण चरवाहा बन मवेशी और फसल को बचा रहे हैं. ग्रामीणों ने जो प्रयोग किया वह सफल साबित हुआ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

मवेशियों द्वारा फसल बर्बाद होने से ग्रामीणों का प्रयोगः दुमका जिला के बास्कीचक गांव के लोग प्रमुख रूप से सब्जी की खेती करते हैं. गांव के मवेशियों को जब चरने के लिए छोड़ा जाता तो वो अक्सर फसलों को बर्बाद कर देते थे. अगर मवेशियों को घर में रखा जाता तो चारे की समस्या उत्पन्न होती. फसल बर्बाद होने की वजह से प्रतिदिन आपस में विवाद होता, जिससे गांव का माहौल खराब हो रहा था. ऐसे में पूरे गांव के लोगों ने एक बैठक की. इसमें आपसी सहमति बनी कि गांव के सभी घर से एक-एक लोग चरवाहा बनेंगे और सबों को सभी के मवेशियों को चराना होगा.

लिखित तौर पर बना मसौदाः पूरा मसौदा लिखित रूप से तैयार किया गया है, जिसमें पूरे गांव के लोगों की सूची बनाई गयी है. इसके बाद दो-दो लोगों की जोड़ी बनाई गयी, एक जोड़ी को महीने में दो बार गांव के सभी 500 से अधिक गाय, बैल, बकरी, भैंसों को चराने की ड्यूटी दी गयी है. साथ ही यह नियम भी बना कि अगर किसी दिन मवेशी फसल को बर्बाद कर देते हैं तो जिसकी उस दिन की ड्यूटी होगी वही उसका हर्जाना भरेंगे.

इसका हर्जाना कितना होगा, इसके लिए भी एक कमिटी का गठन हुआ है. इसके साथ ही अगर कोई गाय, बैल, बकरी खो जाती है तो वह भी ड्यूटी करने वालों की जिम्मेदारी होगी. आपसी एकता और सूझबूझ से तैयार की गई इस योजना को धरातल पर उतारा गया है जो काफी सफल साबित हो रहा है. अब गांव के लोगों के बीच ना फसल बर्बाद होने का खतरा है और ना मवेशियों के खो जाने की समस्या है.

क्या कहते हैं ग्रामीणः बास्कीचक गांव के कई लोगों से ईटीवी भारत की टीम ने बात की. ग्रामीणों ने इस बात की खुशी जताई कि उनकी समस्या का समाधान आपसी सूझबूझ से हुआ है. वो कहते हैं पहले उन लोगों को किसी काम से बाहर जाने में परेशानी होती थी. मवेशी चराना और इस बात की निगरानी करना कि कोई गाय, बैल किसी के खेत में ना चले जाएं अब लोग 15 दिन में एक दिन ड्यूटी कर निश्चिंत हो जाते हैं. वो कहते अगर दूसरे गांव के मवेशी हमारे खेतों में आ जाता है तो हमलोग उसे पकड़ कर जुर्माना तो करते ही है साथ ही साथ उन्हें सीख देते हैं कि आप भी एसी ही सिस्टम तैयार कर लें.

दूसरों के लिए अनुकरणीयः यह पंक्ति हम अक्सर सुनते आए हैं कि संगठन में शक्ति है. मिल-जुलकर कोई काम को किया जाए तो निश्चित रूप से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान चुटकी में हो जाता है. बास्कीचक गांव के लोगों का यह सिस्टम दूसरों के लिए अनुकरणीय है. ये सोच और ग्रामीणों की ये पहल अपने आप में एक मिसाल है. इससे आपसी सहभागिता भी बनी रहती है और किसी का खेत या उनके मवेशियों पर भी किसी प्रकार का खतरा नहीं रहता है.

दुमकाः कहते हैं एकता में बल है और आपसी सूझबूझ से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है. इस बात को चरितार्थ किया है दुमका जिला के सदर प्रखंड के बास्कीचक गांव के लोगों ने. बास्कीचक गांव के लोग आपसी सूझबूझ के बाद चरवाहा बनकर एक बड़ी समस्या का समाधान ढूंढ निकाला है.

मवेशियों को चराने के दौरान चरवाहे को शिक्षा भी प्राप्त हो इस उद्देश्य से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में चरवाहा विद्यालय की बात कही थी. हालांकि यह कांसेप्ट ज्यादा सफल नहीं हुआ पर इसकी चर्चा काफी हुई. अब लालू प्रसाद यादव भले ही मवेशी चराने के क्रम में शिक्षा देने में सफल नहीं हुए. लेकिन दुमका के बास्कीचक गांव के ग्रामीण चरवाहा बन मवेशी और फसल को बचा रहे हैं. ग्रामीणों ने जो प्रयोग किया वह सफल साबित हुआ है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

मवेशियों द्वारा फसल बर्बाद होने से ग्रामीणों का प्रयोगः दुमका जिला के बास्कीचक गांव के लोग प्रमुख रूप से सब्जी की खेती करते हैं. गांव के मवेशियों को जब चरने के लिए छोड़ा जाता तो वो अक्सर फसलों को बर्बाद कर देते थे. अगर मवेशियों को घर में रखा जाता तो चारे की समस्या उत्पन्न होती. फसल बर्बाद होने की वजह से प्रतिदिन आपस में विवाद होता, जिससे गांव का माहौल खराब हो रहा था. ऐसे में पूरे गांव के लोगों ने एक बैठक की. इसमें आपसी सहमति बनी कि गांव के सभी घर से एक-एक लोग चरवाहा बनेंगे और सबों को सभी के मवेशियों को चराना होगा.

लिखित तौर पर बना मसौदाः पूरा मसौदा लिखित रूप से तैयार किया गया है, जिसमें पूरे गांव के लोगों की सूची बनाई गयी है. इसके बाद दो-दो लोगों की जोड़ी बनाई गयी, एक जोड़ी को महीने में दो बार गांव के सभी 500 से अधिक गाय, बैल, बकरी, भैंसों को चराने की ड्यूटी दी गयी है. साथ ही यह नियम भी बना कि अगर किसी दिन मवेशी फसल को बर्बाद कर देते हैं तो जिसकी उस दिन की ड्यूटी होगी वही उसका हर्जाना भरेंगे.

इसका हर्जाना कितना होगा, इसके लिए भी एक कमिटी का गठन हुआ है. इसके साथ ही अगर कोई गाय, बैल, बकरी खो जाती है तो वह भी ड्यूटी करने वालों की जिम्मेदारी होगी. आपसी एकता और सूझबूझ से तैयार की गई इस योजना को धरातल पर उतारा गया है जो काफी सफल साबित हो रहा है. अब गांव के लोगों के बीच ना फसल बर्बाद होने का खतरा है और ना मवेशियों के खो जाने की समस्या है.

क्या कहते हैं ग्रामीणः बास्कीचक गांव के कई लोगों से ईटीवी भारत की टीम ने बात की. ग्रामीणों ने इस बात की खुशी जताई कि उनकी समस्या का समाधान आपसी सूझबूझ से हुआ है. वो कहते हैं पहले उन लोगों को किसी काम से बाहर जाने में परेशानी होती थी. मवेशी चराना और इस बात की निगरानी करना कि कोई गाय, बैल किसी के खेत में ना चले जाएं अब लोग 15 दिन में एक दिन ड्यूटी कर निश्चिंत हो जाते हैं. वो कहते अगर दूसरे गांव के मवेशी हमारे खेतों में आ जाता है तो हमलोग उसे पकड़ कर जुर्माना तो करते ही है साथ ही साथ उन्हें सीख देते हैं कि आप भी एसी ही सिस्टम तैयार कर लें.

दूसरों के लिए अनुकरणीयः यह पंक्ति हम अक्सर सुनते आए हैं कि संगठन में शक्ति है. मिल-जुलकर कोई काम को किया जाए तो निश्चित रूप से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान चुटकी में हो जाता है. बास्कीचक गांव के लोगों का यह सिस्टम दूसरों के लिए अनुकरणीय है. ये सोच और ग्रामीणों की ये पहल अपने आप में एक मिसाल है. इससे आपसी सहभागिता भी बनी रहती है और किसी का खेत या उनके मवेशियों पर भी किसी प्रकार का खतरा नहीं रहता है.

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