हजारीबाग: कुदरत ने हजारीबाग जिले को बहुत कुछ दिया है. जिले में प्रवेश करते ही कई ऐसे खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं, जिसे लोग अपने कैमरों में कैद करने को मजबूर हो जाते हैं. इचाक प्रखंड (Ichak Block) के लोटवा गांव के पास चमेली नदी (Chameli River) के रास्ते को पत्थर माफियाओं ने उजाड़ दिया है, जहां एक झरना बन गया है. इस आकर्षक झरना को देखने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. यह झरना सुदूरवर्ती जंगली क्षेत्र में है, लेकिन उसके बावजूद भी यहां पर्यटक पिकनिक मनाने पहुंचते हैं.
इसे भी पढे़ं: लौट आई दशम फॉल की रौनक, पानी से लबालब फॉल को देखने के लिए लगा पर्यटकों का तांता
हजारीबाग में पत्थर माफिया सक्रिय
पत्थर माफिया इन दिनों हजारीबाग में काफी सक्रिय हैं. खासकर इचाक प्रखंड में कई अवैध उत्खनन के कार्य चल रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर एनएच 100 पर काली रोड से कुछ दूर पर पत्थर माफियाओं ने नदी के रास्ते को ही उजाड़ डाला. अवैध उत्खनन के कारण एक बड़े भूभाग में बड़ा गड्ढा बन गया है. इस साल मानसून अच्छा होने के कारण नदी में पानी भी है. ऐसे में नदी ने अपना रास्ता खुद बना लिया है और उस गड्ढे में पहाड़ों से झरना की तरह पानी गिरने लगा है, जो काफी आकर्षक दिखने लगा है.
इचाक प्रखंड में आकर्षक झरना
इचाक प्रखंड में स्थित इस झरने का जिक्र शायद ही कहीं सुनने को मिलेगा, क्योंकि पर्यटन विभाग के किसी भी दस्तावेज में इसका जिक्र नहीं है. पत्थर माफियाओं के काले करतूत के कारण हजारीबाग में एक आकर्षक झरना बन गया है, जो भले ही देखने में खूबसूरत लग रहा हो, लेकिन इसके पीछे कि कहानी बेहद ही खतरनाक है.
इसे भी पढे़ं: त्रिकुट पर्वत पर वर्षों से बह रही औषधीय झरना, कई बीमारियों के लिए फायदेमंद इसका पानी
झरना को विकसित करने की जरूरत
लॉकडाउन के दौरान सभी पार्क और पिकनिक स्पॉट बंद था, लेकिन उस समय भी लोग यहां घूमने पहुंचते थे. इस झरना के बारे में आस-पास के इलाके के ही कुछ लोगों पता नहीं है. ईटीवी भारत की टीम ने जब ग्रामीणों से इस झरना का जिक्र किया तो, वो लोग भी देखने पहुंचने लगे. यह झरना चमेली नदी के रास्ते पर बना है. इसलिए इसे चमेली झरना कहते हैं, लेकिन कभी यहां पत्थर माफियाओं का राज चलता था. इस कारण से कुछ लोग इसे टाइगर झरना भी कहते हैं. चमेली झरना भले ही पत्थर माफिया के कारण बना हो, लेकिन अब इसे विकसित करने की जरूरत है, साथ ही साथ पत्थर माफियाओं पर नकेल कसने की भी जरूरत है, ताकि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना हो.