निकोसिया: यूक्रेन में जैसे ही युद्ध जारी हुआ यूरोपीय देशों के नेताओं विशेष रूप से जर्मनी को यह एहसास हो गया है कि उन्होंने रूसी ऊर्जा पर इतना निर्भर होकर एक गंभीर गलती की है. वर्तमान में यूरोप अपनी प्राकृतिक गैस जरूरतों के लगभग 40 प्रतिशत के लिए रूस पर निर्भर है और यूरोपीय नेताओं ने अपनी निर्भरता को दो-तिहाई कम करने की कसम खाई है.
इसलिए यूरोपीय देश मध्य पूर्व और भूमध्यसागर से आपूर्ति सुनिश्च करने की कोशिश कर रहे हैं. ऊर्जा सुरक्षा यूरोप की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक बन गई है. यह मुद्दा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की लड़ाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. बेशक, यूरोपीय देश जब रूस पर अपनी निर्भरता कम करेंगे तो गैस और तेल-समृद्ध खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सदस्य देशों से इसकी आपूर्ति का अनुरोध करेंगे. हालांकि, जीसीसी देशों का कहना है कि वे उत्पादन बाधाओं के कारण यूरोप में अपने हाइड्रोकार्बन निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि करने में असमर्थ हैं. साथ ही उनका कहना है कि उनके भविष्य के अधिकांश उत्पादन का एशिया के ग्राहकों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध हो चुका है.
पिछले कुछ हफ्तों में जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में वरिष्ठ प्रतिनिधियों को भेजा गया था. प्रतिनिधियों ने ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने को लेकर बातचीत की लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख हाइड्रोकार्बन उत्पादक हैं. कतर एकमात्र ऐसा देश है जिसने कुछ मदद की पेशकश की. उसने ब्रिटेन और बेल्जियम को छह एलएनजी टैंकरों प्रदान करने का भरोसा दिया. ये टैंकर मूल रूप से एशिया के लिए थे और संकेत दिया कि कमी को पूरा करने के लिए अपने गैस उत्पादन में वृद्धि करेगा.
कतर का अमीरात वर्तमान में अपनी तरलीकृत गैस का लगभग 30 प्रतिशत यूरोपीय संघ को आपूर्ति करता है, लेकिन इसमें से कोई भी जर्मनी को नहीं जाता है, क्योंकि उसके पास एलएनजी टर्मिनल नहीं है. इस स्थिति को ठीक करने के लिए जर्मनी दो एलएनजी टर्मिनलों के निर्माण में तेजी ला रहा है, ये तीन साल के समय में चालू हो जाएंगे. पिछले महीने जर्मन वित्त मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने दोहा की यात्रा के दौरान कहा कि उनके देश और कतर के बीच एक दीर्घकालिक गैस आपूर्ति सौदा हो गया है. उन्होंने कहा, 'हमें इस साल अभी भी रूसी गैस की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन भविष्य में नहीं.' उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पिछली जर्मन सरकार ने रूसी गैस आपूर्ति पर इतना निर्भर होकर गलती की थी.
यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन ने पिछले महीने मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस के रूप में जाना जाता है) को सऊदी अरब से अपनी तेल आपूर्ति बढ़ाने की बात कहने की कोशिश की. क्योंकि, अमेरिका ने औपचारिक रूप से रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन एमबीएस ने बाइडेन को अनसूना कर दिया क्यों दोनों देशों के बीच संबंध ठंडे रहे हैं. शायद एमबीएस को स्पष्ट रूप से याद है कि बाइडेन ने सऊदी अरब को एक 'अछूत राज्य' बनाने का वादा किया था और असंतुष्ट पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की थी. इसलिए बाइडेन की पहल को गंभीरता से नहीं लिया.
बाइडेन को नज़रअंदाज करने का एक और कारण यह है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों का मानना है कि यमन में तेल प्रतिष्ठानों के खिलाफ हौतियों के मिसाइल हमले होने पर अमेरिका उनका साथ नहीं देंगे. वे इसलिए भी नाराज़ हैं क्योंकि बाइडेन ने हौतियों को आतंकवादी संगठन की सूची से हटा दिया है. 21 मार्च को सऊदी अरामको प्रतिष्ठानों पर तीन ड्रोन हमलों के बाद सऊदी अरब ने घोषणा की कि उसे वैश्विक ऊर्जा बाजार में कमी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा क्योंकि हौती मिसाइल हमलों से आपूर्ति बाधित होगी.
(एएनआई)