रांचीः पेरिस वर्ल्ड कप तीरंदाजी प्रतियोगिता 2021 की गोल्ड मेडलिस्ट आर्चर अंकिता भगत (Gold Medalist Ankita Bhagat) का कहना है कि झारखंड में तीरंदाजी में प्रतिभा की कमी नहीं है, सरकार मदद करे तो झारखंड एक से बढ़कर एक तीरंदाज दुनिया को दे सकता है. क्योंकि एक सामान्य परिवार के बच्चे के लिए तीरंदाजी एक महंगा गेम है. इसका एक धनुष ही कम से कम दो लाख का आता है. अपने अगले लक्ष्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि एशियन गेम्स में देश के लिए तीरंदाजी में सोना जीतना ही उनका अगला लक्ष्य है.
फ्रांस की राजधानी पेरिस में 2021 में हुई तीरंदाजी की वर्ल्ड कप प्रतियोगिता में महिला तीरंदाजी की टीम इवेंट में ओलंपियन दीपिका कुमारी और कोमालिका के साथ मिलकर गोल्ड मेडल जीतने वाली झारखंड की तीरंदाज अंकिता भगत तीरंदाजी के क्षेत्र में लगातार अपना नाम रोशन कर रही हैं. गुजरात में हुए 36वें राष्ट्रीय खेल में झारखंड के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाली तीरंदाजी टीम का हिस्सा भी रहीं. अंकिता ने इस वर्ष भी तीरंदाजी के विश्व कप प्रतियोगिता जो पेरिस और दक्षिण कोरिया में हुई उसमें क्रमशः सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीता. रांची में ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत (Etv Bharat Exclusive Interview) में अंकिता ने बताया कि अब उसकी नजर एशियन गेम्स पर है और वह पूरी कोशिश करेंगी कि वह तीरंदाजी में एशिया में भारत को सरताज बनाने में अपनी भूमिका निभाए. इसके लिए वह लगातार और गंभीरता से अभ्यास भी कर रही हैं.
साधारण परिवार के लिए महंगा गेम है आर्चरीः एक सवाल के जवाब में (Interview with Archer Ankita Bhagat) अंकिता कहता हैं कि प्रतिभा होने के बावजूद साधारण आदमी चाहकर भी अपने बच्चों को तीरंदाजी में नहीं भेजता, क्योंकि इसका एक धनुष ही दो लाख का आता है, जिसे अफोर्ड करना किसी भी सामान्य परिवार के लिए मुश्किल है. भले ही इसके लिए सरकार मदद करती है लेकिन नई पौध कैसे पल्लवित और पोषित हों उस पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है. अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज अंकिता भगत ईटीवी भारत से कहती हैं कि राज्य सरकार अब खेल को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की मदद देती है पर ज्यादातर यह तब होता है जब कोई खिलाड़ी एक मुकाम पा लेता है. वो कहती हैं कि जरूरत है स्कूल और स्थानीय स्तर पर तीरंदाजी को प्रमोट किया जाए, जो अत्याधुनिक तीर-धनुष हम प्रतियोगिता में इस्तेमाल करते हैं वह उपलब्ध हो, अच्छे कोच की व्यवस्था हो. ग्रासरूट लेवल पर ऐसी व्यवस्था होने से झारखंड में तीरंदाजी के एक दो खिलाड़ी नहीं बल्कि कई प्रतिभाएं निखर कर दुनिया के पटल पर छाएंगी. अंकिता ने कहा कि गुजरात, हरियाणा जैसे राज्य तीरंदाजी में अपने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिये बेहतर योजना के साथ काम कर रही हैं, हम लोगों को भी वैसा करना चाहिए.
एशियन गेम्स पर अंकिता की नजरः तीरंदाज अंकिता भगत ने कहा कि पिछले एक साल से वह इंज्यूरी से परेशान रहीं, जिसका असर उनके परफॉर्मेंस पर पड़ा है. लेकिन अब वो ठीक हैं और अपने अलगे लक्ष्य की तैयारी में हैं. अंकिता ने कहा कि उनका पूरी कोशिश और पूरा ध्यान अगले साल होने वाले एशियन गेम्स पर केंद्रित कर दिया है. जिससे इस प्रतियोगिता में गोल्ड जीतकर वो विश्व मानचित्र पर एक फिर से अपने देश और राज्य का परचम लहरा सके.
कोलकाता की अंकिता ने झारखंड को बनाया कर्मभूमिः अंकिता भगत का जन्म कोलकाता में हुआ है. लेकिन तीरंदाजी में वो झारखंड टीम का हिस्सा रही हैं. 2014 में तीरंदाजी के क्षेत्र में कदम रखने वाली अंकिता कहती हैं कि पूर्णिमा महतो, दीपिका दीदी की सफलता को देखकर उनका आकर्षण भी तीरंदाजी की ओर हुआ. इसके बाद जमशेदपुर में टाटा आर्चरी एकेडमी ने उनके हौसलों को उड़ान दी. जमशेदपुर में ही को-ऑपरेटिव कॉलेज से स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा अंकिता भगत एक साधारण परिवार से आती हैं. माता पिता की अकेली संतान अंकिता के पिता की कोलकाता में दूध का स्टॉल है तो मां हाउस वाइफ हैं.
माता-पिता, टाटा एकेडमी और कोच का अहम योगदानः तीरंदाजी के क्षेत्र में देश और झारखंड का नाम रोशन कर रहीं अंकिता इसका श्रेय अपने माता-पिता, टाटा एकेडमी और कोच को देती हैं. अंकिता कहती हैं कि पिछले 08 वर्षों में तीरंदाजी में जो उपलब्धि रही, उसमें मेरे माता पिता, टाटा आर्चरी अकादमी के अलावा कोच शिशिर महतो का भी योगदान अहम रहा है.