हैदराबाद: तेलंगाना की राजधानी और औद्योगिक नगरी हैदराबाद में 18 साल बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक (BJP National Executive Meeting) हो रही है. पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर के अंदर पहुंच चुके हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ( BJP National President JP Nadda) भी 9 बजकर 56 मिनट पर बैठक में शामिल होने के लिए पहुंचे और मीडिया के सवाल से बचते हुए अंदर चले गए.
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बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू: अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने भी बैठक में शामिल होने के दौरान मीडिया से दूरी बनायी रखी. दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने जरूर मीडिया से खुल कर बात की. इनके अलावा जितने बड़े नेता हैं, सभी राजनीतिक सवालों से मुंह फेरते दिखे. दरअसल, बीजेपी का एजेंडा हमेशा की तरह सधा हुआ और दक्षिण की राजनीति पर केंद्रित है. वह इसके जरिये कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) और असदुद्दीन ओवैसी को स्पष्ट संदेश देना चाह रही है कि अब दक्षिण में उसका कारवां निकल पड़ा है.
शाम को पीएम मोदी करेंगे बैठक में शिरकत: पार्टी के अधिकांश बड़े और सक्रिय नेता यहां आमंत्रित हैं. 345 आमंत्रित राजनेताओं में से 300 के करीब हैदराबाद पहुंच चुके हैं और शाम की बैठक से पहले प्रधानमंत्री मोदी भी पहुंच जाएंगे. इसलिए इसकी गंभीरता आसानी से समझी जा सकती है. भाजपा इस आयोजन के माध्यम से दक्षिण के राज्यों में पैर जमा लेना चाहती है, जहां उसकी उपस्थिति बहुत ही कम है.
दक्षिण में पकड़ मजबूत करने की कोशिश: आंकड़ों में देखें तो तेलंगाना को छोड़कर दक्षिण के चार अन्य राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से लोकसभा में उसका प्रतिनिधित्व शून्य है. पिछले चुनाव में तेलंगाना ने इसे चार सीटें दी हैं. इतना ही नहीं, हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में पार्टी को जबरदस्त जीत मिली और इससे शहरी क्षेत्रों में उसका जनाधार समझ में आया. यही कारण है कि शहरी लोकसभा सीटों पर भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है.
बैठक में लिया जा रहा फीडबैक: इस बैठक के आयोजन से वह उन सीटों को चिह्नित करना चाहती है, जहां उसे जोर लगाने की जरूरत है. तेलंगाना में अगले साल चुनाव होने हैं. हालांकि, यह भाजपा का अगला लक्ष्य जरूर है, मगर इस आयोजन का यह अंतिम लक्ष्य नहीं है. इस आयोजन का अंतिम लक्ष्य केरल, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की लगभग 90 लोकसभा सीटें हैं, जहां बीजेपी पूरी ताकत लगाने जा रही है.
बीजेपी का बड़ा संदेश: तेलंगाना के साथ ही भाजपा, झारखंड से लेकर तमिलनाडु तक को संदेश देना चाहती है कि परिवारवाद की जड़ें अधिक मजबूत नहीं होंगी. कार्यक्रम स्थल पर पार्टी के बड़े नेताओं से चर्चा में एक बात साफ तौर पर पता चली कि उत्तर भारत में पार्टी सेचुरेशन पर है. अगले लोकसभा चुनाव में 2019 की जीत दोहरानी है तो दक्षिणी राज्यों का रुख करना ही पड़ेगा, क्योंकि अगर उत्तर के राज्यों में मामूली भी एंटी इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) हुई तो उसकी भरपाई दक्षिण से ही होगी.
नब्ज टटोलने की कोशिश: हैदराबाद में सभी राज्यों के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. ऐसे में तमाम राज्यों के नेताओं को यहां बुलाकर उसने उनका मन टटोलने की कोशिश की है. पार्टी के बड़े नेताओं से बातचीत में स्पष्ट लगा कि कर्नाटक के बाद तंलंगाना उसका अगला लक्ष्य है. इसी को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की यह बैठक बुलाई गई है. अधिकांश नेता 48 घंटे से यहां रहकर यूं ही समय नहीं बिता रहे हैं. उनकी कोशिश यहां के नब्ज को टटोलने की है, जिसमें वे अपने को कामयाब मान रहे हैं.
अपने अपने क्षेत्र के लोगों से बीजेपी नेताओं की मुलाकात: बिहार-झारखंड, दिल्ली सहित सभी राज्यों के नेताओं ने यहां अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से मुलाकात की है और उनसे जमीनी सच्चाई जानी है. निश्चित रूप से इसका उद्देश्य राजनीतिक ही है, जिसे केसीआर भी समझ रहे हैं और शहर में पोस्टरों से उन्होंने भाजपा को अपना संदेश देने की कोशिश की है कि- 'चाहे जितनी कोशिश कर लो, हम डरने वाले नहीं'. यही नहीं, यहां से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी अंग्रेजी और तेलुगू समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर केसीआर सरकार का विज्ञापन भरा है. बीजेपी को दूसरे पन्ने और सप्लीमेंट पर ही जगह मिली है.
बीजेपी का मिशन झारखंड: हालांकि, भाजपा का यहां मामला तेलंगाना तक ही सीमित नहीं है. भाजपा की नजर आंध्र प्रदेश और केरल पर भी लगी है. इतना ही नहीं, महाराष्ट्र फतेह के बाद अगला नंबर झारखंड का हो सकता है. जहां कुछ महीने में ऐसे ही चमत्कारी परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं, जैसे महाराष्ट्र में हुए हैं. हालांकि, इसकी रूपरेखा क्या होगी? इसका खुलासा नहीं हो पाया है.
राजनीतिक और आर्थिक दोनों एजेंडों पर चर्चा: बिहार पर बीजेपी का विशेष ध्यान है. वहां दो दिन पहले तक उसे सबसे बड़ी पार्टी का तमगा हासिल था, जो ओवैसी की पार्टी में टूट के बाद आरजेडी के पास चला गया. इसको लेकर पार्टी में चिंतन होना है लेकिन वह यह नहीं चाहती कि उसपर आरोप लगे कि वह लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारों को यूं ही गिरा देती है. इसलिए अब अगला कदम महाराष्ट्र से अधिक पुख्ता होगा. मीटिंग में राजनीतिक और आर्थिक दोनों एजेंडे पर चर्चा की जा रही है.