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हिमाचल के 'कालापानी' का गांधी-गोडसे कनेक्शन

जिला सोलन के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल का कालापानी के नाम से भी जाना जाता है. डगशाई छावनी देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक है. ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.

special story on  Dagshai Jail Museum solan
कालापानी' के नाम से विख्यात है हिमाचल की यह जेल,
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Published : Jan 30, 2020, 5:47 PM IST

सोलन: ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनके बारे में जानने पर रूह कांप उठती है. इन भवनों में अंग्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है.

वहीं, अगर बात सोलन में मौजूद ऐतिहासिक भवनों की करे तो जिले के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है. सोलन जिले में स्थित डगशाई छावनी देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक है.

ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं. यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोडसे भी समय व्यतीत कर चुके हैं. खास बात यह है कि महात्मा गांधी इस जेल में एक यात्री के रूप में आए थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी रहा था. महात्मा गांधी यहां मेहमान थे और गोडसे कैदी.

वीडियो रिपोर्ट

'टी' आकार की किले नुमा जेल
डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है. जेल में बनी कोठरियां इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अति अनुशासनहीन होते थे, उन्हें कैद कक्ष में डाल दिया जाता था. जिसमें हवा और रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था. जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है, इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था.

1849 में किया था जेल का निर्माण
जेल में ऊंची छत और लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे यह उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके. केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72,875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं.

जिसकी छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श और द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं, जो आज भी भी उसी स्वरूप में है.

खास लोहे से बने कैदकक्ष
यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण ढलवें के लोहे से किया गया है. इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फादकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए किया था.

महात्मा गांधी भी आए थे यहां
डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहा आ चुके हैं. उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गाधी की तस्वीर लगाई हुई हैं. आयरिश सैनिकों की होती गिरफ्तारी ने महात्मा गाधी को शीघ्र ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वह यहां आकर एकाएक इसका आंकलन कर सकें. इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था.

ये भी पढ़ें: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और CM जयराम ने दी श्रद्धांजलि

सोलन: ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनके बारे में जानने पर रूह कांप उठती है. इन भवनों में अंग्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है.

वहीं, अगर बात सोलन में मौजूद ऐतिहासिक भवनों की करे तो जिले के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है. सोलन जिले में स्थित डगशाई छावनी देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक है.

ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं. यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोडसे भी समय व्यतीत कर चुके हैं. खास बात यह है कि महात्मा गांधी इस जेल में एक यात्री के रूप में आए थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी रहा था. महात्मा गांधी यहां मेहमान थे और गोडसे कैदी.

वीडियो रिपोर्ट

'टी' आकार की किले नुमा जेल
डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है. जेल में बनी कोठरियां इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अति अनुशासनहीन होते थे, उन्हें कैद कक्ष में डाल दिया जाता था. जिसमें हवा और रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था. जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है, इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था.

1849 में किया था जेल का निर्माण
जेल में ऊंची छत और लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे यह उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके. केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72,875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं.

जिसकी छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श और द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं, जो आज भी भी उसी स्वरूप में है.

खास लोहे से बने कैदकक्ष
यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण ढलवें के लोहे से किया गया है. इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फादकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए किया था.

महात्मा गांधी भी आए थे यहां
डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहा आ चुके हैं. उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गाधी की तस्वीर लगाई हुई हैं. आयरिश सैनिकों की होती गिरफ्तारी ने महात्मा गाधी को शीघ्र ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वह यहां आकर एकाएक इसका आंकलन कर सकें. इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था.

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