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यहां दूल्हा नहीं दुल्हन जाती है बारात लेकर, आज भी निभाई जा रही कबायली संस्कृति - सिरमौर

सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के कई हिस्सों में आज भी ठीक इसके विपरीत अनूठी परंपरा को निभाया जा रहा है. यहां दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लड़के के घर बारात लेकर जाती है.

शादी के दौरान नाचते लोग
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Published : Feb 18, 2019, 10:51 AM IST

नाहनः अक्सर आपने देखा होगा कि एक दुल्हा दुल्हन के घर बारात लेकर जाता है, लेकिन सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के कई हिस्सों में आज भी ठीक इसके विपरीत अनूठी परंपरा को निभाया जा रहा है. यहां दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लड़के के घर बारात लेकर जाती है.

tribal culture
शादी के दौरान नाचते लोग
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इस परंपरा को स्थानीय भाषा में जाजड़ा कहा जाता है. उतराखंड के जौनसार बाबर की तर्ज पर आज भी गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठी परंपरा निभाई जा रही है. दरअसल उत्तराखंड की तर्ज पर गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में आज भी लड़की पक्ष के लोग बारात लेकर लड़के के घर जाते हैं, जिसे जाजड़ा परंपरा कहा जाता है.
सुनने में तो बड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह हकीकत है. इस अनूठी परंपरा का ताजा उदाहरण शनिवार को भी देखने को मिला, जहां शिलाई तहसील के गांव परली की एक लड़की उत्तराखंड की चकराता तहसील के कुवाणु गांव में बारात लेकर पहुंची. यह विवाह कबायली संस्कृति के तहत जाजड़ परंपरा से संपन्न हुआ. इस विवाह में दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन पक्ष की ओर से बारात दुल्हे के गांव पहुंची. करीब 4 दर्जन लोग दुल्हन पक्ष की ओर से बारात में शामिल हुए.

दूल्हे के घर बारात लेकर जाते लोग
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पारंपरिक कबायली अंदाज में संपन्न हुए इस विवाह समारोह में एक ओर खास बात देखने को यह मिली कि यहां पूरे गांव की करीब 120 महिलाओं को अलग भोज दिया गया, जिसे रहिंन जिमाना कहते है. कबायली संस्कृति में नारियों का उच्च स्थान माना जाता है. यह गिरिपार के लोगों के पास जनजातीय दर्जा लाने के पुख्ता सबूत हैं. भले ही फिलहाल सरकार से इन्हें उनका हक नहीं मिला दिया हो.

गिरीपार निवासी इंद्र सिंह राणा ने कहा कि जौनसार बाबर व गिरीपार क्षेत्र में जाजड़ परंपरा में समानता है. इस परंपरा के तहत लड़की पक्ष के लोग लड़के के यहां बारात लेकर जाते हैं. विवाह समारोह के दौरान रासे, हारूल, नाटी सहित गिरीपार की भिन्न-भिन्न संस्कृति के नृत्य किए जाते हैं. गिरीपार क्षेत्र में आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है. उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि जौनसार बाबर व गिरीपार की संस्कृति एक जैसी है, लेकिन आज तक गिरीपार को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा नहीं दिया गया है.

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वहीं जौनसार बाबर क्षेत्र में दुल्हा पक्ष के लोगों का कहना है कि जौनसार बाबर व हिमाचल के गिरीपार क्षेत्र में आज भी सदियों से चली आ रही रीति रिवाज कायम है. बाराती लड़की की तरफ से जाते हैं न की लड़के की तरफ से. साथ ही स्थानीय महिलाओं के सम्मान के लिए उन्हें अलग से दावत दी जाती है. उन सभी को अपनी संस्कृति पर गर्व है.

कुल मिलाकर सरकार ने भले ही जौनसार बाबत को जनजातीय दर्जा दे दिया गया, लेकिन गिरीपार क्षेत्र के लोग करीब 5 दशक से जनजातीय दर्जे की मांग कर रहे हैं, जोकि आज तक पूरी नहीं हुई है. मगर दोनों राज्यों के इन क्षेत्रों में सदियों से चली आ रही कबायली संस्कृति आज भी बरकरार है.

नाहनः अक्सर आपने देखा होगा कि एक दुल्हा दुल्हन के घर बारात लेकर जाता है, लेकिन सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के कई हिस्सों में आज भी ठीक इसके विपरीत अनूठी परंपरा को निभाया जा रहा है. यहां दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लड़के के घर बारात लेकर जाती है.

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शादी के दौरान नाचते लोग
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इस परंपरा को स्थानीय भाषा में जाजड़ा कहा जाता है. उतराखंड के जौनसार बाबर की तर्ज पर आज भी गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठी परंपरा निभाई जा रही है. दरअसल उत्तराखंड की तर्ज पर गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में आज भी लड़की पक्ष के लोग बारात लेकर लड़के के घर जाते हैं, जिसे जाजड़ा परंपरा कहा जाता है.
सुनने में तो बड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह हकीकत है. इस अनूठी परंपरा का ताजा उदाहरण शनिवार को भी देखने को मिला, जहां शिलाई तहसील के गांव परली की एक लड़की उत्तराखंड की चकराता तहसील के कुवाणु गांव में बारात लेकर पहुंची. यह विवाह कबायली संस्कृति के तहत जाजड़ परंपरा से संपन्न हुआ. इस विवाह में दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन पक्ष की ओर से बारात दुल्हे के गांव पहुंची. करीब 4 दर्जन लोग दुल्हन पक्ष की ओर से बारात में शामिल हुए.

दूल्हे के घर बारात लेकर जाते लोग
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पारंपरिक कबायली अंदाज में संपन्न हुए इस विवाह समारोह में एक ओर खास बात देखने को यह मिली कि यहां पूरे गांव की करीब 120 महिलाओं को अलग भोज दिया गया, जिसे रहिंन जिमाना कहते है. कबायली संस्कृति में नारियों का उच्च स्थान माना जाता है. यह गिरिपार के लोगों के पास जनजातीय दर्जा लाने के पुख्ता सबूत हैं. भले ही फिलहाल सरकार से इन्हें उनका हक नहीं मिला दिया हो.

गिरीपार निवासी इंद्र सिंह राणा ने कहा कि जौनसार बाबर व गिरीपार क्षेत्र में जाजड़ परंपरा में समानता है. इस परंपरा के तहत लड़की पक्ष के लोग लड़के के यहां बारात लेकर जाते हैं. विवाह समारोह के दौरान रासे, हारूल, नाटी सहित गिरीपार की भिन्न-भिन्न संस्कृति के नृत्य किए जाते हैं. गिरीपार क्षेत्र में आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है. उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि जौनसार बाबर व गिरीपार की संस्कृति एक जैसी है, लेकिन आज तक गिरीपार को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा नहीं दिया गया है.

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वहीं जौनसार बाबर क्षेत्र में दुल्हा पक्ष के लोगों का कहना है कि जौनसार बाबर व हिमाचल के गिरीपार क्षेत्र में आज भी सदियों से चली आ रही रीति रिवाज कायम है. बाराती लड़की की तरफ से जाते हैं न की लड़के की तरफ से. साथ ही स्थानीय महिलाओं के सम्मान के लिए उन्हें अलग से दावत दी जाती है. उन सभी को अपनी संस्कृति पर गर्व है.

कुल मिलाकर सरकार ने भले ही जौनसार बाबत को जनजातीय दर्जा दे दिया गया, लेकिन गिरीपार क्षेत्र के लोग करीब 5 दशक से जनजातीय दर्जे की मांग कर रहे हैं, जोकि आज तक पूरी नहीं हुई है. मगर दोनों राज्यों के इन क्षेत्रों में सदियों से चली आ रही कबायली संस्कृति आज भी बरकरार है.

गिरीपार इलाके में अनूठी परंपरा, दुल्हा नहीं दुल्हन जाती है बारात लेकर
-शिलाई तहसील की लड़की की बारात (जाजड़ा) गई लड़के के घर 
-जौनसार बाबर की तर्ज पर आज भी गिरीपार के कई इलाकों में निभाई जा रही ये परंपरा 
नाहन। अक्सर आपने देखा होगा कि एक दुल्हा ही दुल्हन के घर बारात लेकर जाता है, लेकिन सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के कई हिस्सों में आज भी ठीक इसके विपरीत अनूठी परंपरा को निभाया जा रहा है। जी हां यहां दुल्हा नहीं, बल्कि दुल्हन बारात लेकर लड़के के घर जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में जाजड़ा कहा जाता है। उत्तराखंड के जौनसार बाबर की तर्ज पर आज भी गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठी परंपरा निभाई जा रही है। 
दरअसल उत्तराखंड की तर्ज पर गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में आज भी लड़की पक्ष के लोग बारात लेकर लड़के के घर जाते हैं, जिसे जाजड़ा परंपरा कहा जाता है। सुनने में तो बड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह हकीकत है। 
इस अनूठी परंपरा का ताजा उदाहरण बीते शनिवार को भी देखने को मिला, जहां शिलाई तहसील के गांव परली की एक लड़की उत्तराखंड की चकराता तहसील के कुवाणु गांव में बारात लेकर पहुंची। यह विवाह कबीला संस्कृति के तहत जाजड़ परंपरा से संपन्न हुआ। इस विवाह में दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन पक्ष की ओर से बारात दुल्हे के गांव पहुंची। करीब 4 दर्जन लोग दुल्हन पक्ष की ओर से बारात में शामिल हुए। 
पारंपरिक काबिली अंदाज में संपन्न हुए इस विवाह समारोह में एक ओर खास बात देखने को यह मिली कि यहां पूरे गांव की करीब 120 महिलाओं को अलग भोज दिया गया, जिसे रहिंन जिमाना कहते है। कबीला संस्कृति में नारियों का उच्च स्थान माना जाता है। यह गिरिपार के लोगों के पास जनजातीय दर्जा लाने के पुख्ता सबूत है। भले ही फिलहाल सरकार ने उनको उनका हक नहीं मिला दिया हो। 
गिरीपार निवासी इंद्र सिंह राणा बताते हैं कि जौनसार बाबर व गिरीपार क्षेत्र में जाजड़ परंपरा में समानता है। इस परंपरा के तहत लड़की पक्ष के लोग लड़के के यहां बारात लेकर जाते हैं। विवाह समारोह के दौरान रासे, हारूल, नाटी सहित गिरीपार की भिन्न-भिन्न संस्कृति के नृत्य किए जाते हैं। गिरीपार क्षेत्र में आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि जौनसार बाबर व गिरीपार की संस्कृति एक जैसी है, लेकिन आज तक गिरीपार को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा नहीं दिया गया है। 
बाइट: इंद्र सिंह राणा, गिरीपार निवासी 
वहीं जौनसार बाबर क्षेत्र में दुल्हा पक्ष के लोगों का कहना है कि जौनसार बाबर व हिमाचल के गिरीपार क्षेत्र में आज भी सदियों से चले आ रही रीति रिवाज का कायम है। बाराती लड़की की तरफ से जाते हैं, न की लड़के की तरफ से। साथ ही स्थानीय महिलाओं के सम्मान के लिए उन्हें अलग से दावत दी जाती है। उन सभी को अपनी संस्कृति पर गर्व है। 
बाइट: स्थानीय निवासी, जौनसार बाबर 
कुल मिलाकर सरकार ने भले ही जौनसार बाबत को जनजातीय दर्जा दे दिया गया, लेकिन गिरीपार क्षेत्र के लोग करीब 5 दशक से जनजातीय दर्ज की मांग कर रहे हैं, जोकि आज तक पूरी नहीं हुई है। मगर दोनों राज्यों के इन क्षेत्रों में सदियों से चली आ रही काबिली संस्कृति आज भी बरकरार है। 
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