शिमला: प्रदेश के निजी स्कूलों में आरटीई एक्ट के तहत गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. छात्रों को यह अधिकार सरकार के तय नियमों की वजह से ही नहीं मिल पा रहा है. सरकार के तय नियमों के कारण ही निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य है. प्रदेश में एक-दो जिला को छोड़ कर किसी भी निजी स्कूलों में नियम को पूरा नहीं किया जा रहा है. इस कारण अन्य राज्यों को करोड़ों की राशि केंद्र की ओर से बच्चों की शिक्षा के लिए दी जा रही है और प्रदेश को इस साल मात्र 6 लाख की राशि प्राप्त हुई है.
प्रदेश में मात्र जिला ऊना और हमीरपुर में आरटीई एक्ट के तहत छात्रों को निजी स्कूलों में दाखिला दिया गया है और बच्चों की शिक्षा पर केंद्र की ओर से 6 लाख का बजट भी मिला है. इसके अलावा अन्य जिलों में छात्रों को निजी स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल रहा है. वर्ष 2013 में लागू आरटीई नियमों के तहत निजी स्कूलों को 25 फीसदी गरीब छात्रों को दाखिला देना अनिवार्य किया गया है. प्रदेश में भी यह नियम लागू है, लेकिन इसमें संशोधन किया है और कुछ ऐसे नियम शामिल किए गए है, जिसके चलते निजी स्कूलों में बच्चों को दाखिला लेने के लिए पहले नजदीक के सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य की एनओसी लेना अनिवार्य है. एनओसी के बाद ही छात्रों को सरकारी से निजी स्कूल में दाखिला लेनी की मंजूरी मिलेगी.
सरकार ने सरकारी स्कूलों में इनरोलमेंट कम ना हो इसके लिए यह नियम लागू कर दिए, लेकिन इन नियमों में छात्रों को बेहतर और मुफ्त शिक्षा से वंचित कर दिया है. यही वजह है कि प्रदेश में निजी स्कूल यह 25 फीसदी सीटें भी दूसरे बच्चों से ही भर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैट. वहीं दूसरी ओर गरीब बच्चों के पास यह अवसर है कि वह निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. सरकार का यह नियम उनको उनका हक दिलवा रहे हैं.
सरकार हर शैक्षणिक सत्र में निजी स्कूलों को यह निर्देश जारी करती है कि 25 फीसदी सीटें गरीब वर्ग के छात्रों से भरी जाए, लेकिन निजी स्कूल यह बोल कर पल्ला झाड़ते हैं कि उनके पास ऐसे बच्चों के कोई आवेदन ही नहीं आ रहे हैं. शिक्षा विभाग ने यह बात सरकार के संज्ञान में लाई है कि सरकार अपने तय नियमों में बदलाव करे. जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सके और उन्हें अपने अधिकार से वंचित ना रहना पड़े.