कांग्रेस के अभेद्य गढ़ को भेदने वाले भाजपा के वीरेंद्र कश्यप इस बार चुनावी रण से बाहर हो गए हैं. प्रदेश की एकमात्र रिजर्व संसदीय क्षेत्र में इस बार दो फौजियों के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. 17 विधानसभा वाली शिमला संसदीय सीट पर भाजपा-कांग्रेस के पास आठ-आठ विधायक है, जबकि एक माकपा के पास है.
शिमला संसदीय सीट पर 1952 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो अब तक कांग्रेस 15 बार जीत चुकी है. जबकि भाजपा अभी तक इस सीट से दो बार जीत दर्ज कर पाई है. इसके साथ ही भारतीय लोक दल और हिविकां ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
जातीय समीकरण की बात करें तो शिमला संसदीय सीट पर 35 प्रतिशत राजपूत, 20 प्रतिशत ब्राह्मण, 24 प्रतिशत एससी और 31 प्रतिशत एसटी और ओबीसी मतदाता है. सत्ता की कुर्सी का फैसला करने में राजपूत मतदाता अहम भूमिका निभाते आए हैं. इसके साथ ही लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग करे रहे सिरमौर के गिरीपार के करीब 2 लाख वोटर्स भी इस चुनाव में अहम रोल निभाने वाले हैं.
भाजपा ने कांग्रेस से दिग्गज नेता गंगूराम मुसाफिर को विधानसभा चुनाव में दो बार हराने वाले पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप पर दांव खेला है. पांच विधानसभा वाले सिरमौर में तीन भाजपा और दो सीटें कांग्रेस के पास है. वहीं 1999 के लोकसभा चुनाव में हिविकां से पहली बार संसद पहुंचने वाले धनी राम शांडिल को कांग्रेस ने टिकट दिया है. आपको बता दें कि शांडिल इसके बाद 2004 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े थे और दूसरी बार संसद पहुंचे थे.
शिमला संसदीय सीट पर 1980 से 1998 तक लगातार 6 बार कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी ने जीत दर्ज की. हालांकि के डी सुल्तानपुरी की जीत का सेहरा वीरभद्र सिंह के सिर सजता रहा है.
इस बार ये देखना रोचक रहेगा की दो बार लोकसभा चुनाव जीत कर कांग्रेस के विजय रथ को रोकने वाले वीरेंद्र कश्यप के बिना क्या भाजपा जीत की हैट्रिक लगा पाएगी और दिग्गज नेता शांडिल क्या कांग्रेस को इस सीट पर फिर से जीत दिला पाएंगे. वहीं, इस सीट पर वीरभद्र फैक्टर कितना चलता है ये आने वाला वक्त ही बताएगा.