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रिपन अस्पताल को डेडिकेटेड कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने के विरोध में दायर याचिका खारिज

हाईकोर्ट ने रिपन अस्पताल शिमला को डेडिकेटेड कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने के विरोध में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के डीडीयू अस्पताल को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित करने के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती क्योंकि यह सरकार के नीतिगत फैसले के तहत आता है.

Ripon Hospital as Kovid Hospital Petition
रिपन अस्पताल पर हाईकोर्ट का फैसला
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Published : May 21, 2020, 5:49 PM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल शिमला को डेडिकेटेड कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने के विरोध में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलीलों पर सहमति जताई है. हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सभी संभव कदम व पर्याप्त तरीके अपनाए हैं. कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के डीडीयू अस्पताल को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित करने के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती क्योंकि यह सरकार के नीतिगत फैसले के तहत आता है.

सरकार ने यह फैसला विशेषज्ञों की राय व अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए लिया है. इसलिए बिना किसी ठोस आधार के इसे गलत ठहराना उचित नहीं होगा. गौरतलब है कि सुषमा कुठियाला की दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि राजधानी शिमला के क्षेत्रीय अस्पताल दिन दयाल अस्पताल रिपन को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाए जाने से न केवल राज्य व केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि डब्ल्यूएचओ के मानकों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है.

याचिका में आरोप लगाया गया था कि सरकार के इस फैसले का स्थानीय दुकानदार और लोग भी विरोध कर रहे हैं. लोगों का कहना था कि कोरोना वायरस के लिए सरकार ने शिमला शहर के बीचों बीच डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाया है, वह सही नहीं है.

डीडीयू अस्पताल में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज अपना उपचार करवाने आते हैं, लेकिन अब इसे कोविड सेंटर बनाया गया है. ऐसे में लोगों को मजबूरन निजी अस्पतालों व आईजीएमसी की ओर रुख करना पड़ेगा. इससे आईजीएमसी में भीड़ बढ़ने से सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन नहीं हो पायेगा.

याचिका में कहा गया था कि डीडीयू के परिसर से रोजाना हजारों लोगों आते जाते हैं. अस्पताल के ठीक नीचे स्थानीय बस स्टैंड है. यहां से शहर व जिला के अन्य हिस्सों के लिए दूध, ब्रेड, अखबार जैसी मूलभूत सेवाओं का संचालन किया जाता है. हॉस्पिटल के साथ ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा भी है, जहां रोजाना सैकडों जरूरत मंद लोगों के लिए लंगर लगाया जाता है.

साथ ही याचिका में सुझाव दिया गया था कि शिमला में ही इंडस हॉस्पिटल, वॉकर हॉस्पिटल के नाम से मशहूर मिलिट्री हॉस्पिटल, आईजीएमसी हॉस्पिटल या तारा देवी के पास पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस को कोविड अस्पताल बनाया जा सकता है. इससे न केवल लोगों को महामारी के खौफ से बचाया जा सकेगा, बल्कि बीमारी के संक्रमण को रोकने में भी मदद मिलेगी.

वहीं, सरकार की ओर से दलील दी गयी थी कि डीडीयू को सोच समझ कर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित किया गया है. आइजीएमसी को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित करने पर प्रदेश के सबसे बड़े हॉस्पिटल में सुपर स्पेशियलिटी सेवाएं बुरी तरह से प्रभावति हो जाएंगी.

इसके अलावा डीडीयू में कोरोना संक्रमण के मरीजों के इलाज से किसी को कोई खतरा नहीं है. मरीजों को पूरी सुरक्षा से लाया जाता है और उनका इलाज भी पूरी सुरक्षा से किया जाता है. इसलिए यह संभावना जताना की डीडीयू में कोरोना मरीजों के इलाज से आसपास के क्षेत्रों में संक्रमण फैलेगा, यह ठीक नहीं है. वहीं, कोर्ट ने भी सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए याचिका को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें: इसी महीने रिटायर होंगे एसआर मरडी, नए डीजीपी की दौड़ में ये नाम सबसे आगे

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल शिमला को डेडिकेटेड कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने के विरोध में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलीलों पर सहमति जताई है. हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सभी संभव कदम व पर्याप्त तरीके अपनाए हैं. कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के डीडीयू अस्पताल को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित करने के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती क्योंकि यह सरकार के नीतिगत फैसले के तहत आता है.

सरकार ने यह फैसला विशेषज्ञों की राय व अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए लिया है. इसलिए बिना किसी ठोस आधार के इसे गलत ठहराना उचित नहीं होगा. गौरतलब है कि सुषमा कुठियाला की दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि राजधानी शिमला के क्षेत्रीय अस्पताल दिन दयाल अस्पताल रिपन को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाए जाने से न केवल राज्य व केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि डब्ल्यूएचओ के मानकों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है.

याचिका में आरोप लगाया गया था कि सरकार के इस फैसले का स्थानीय दुकानदार और लोग भी विरोध कर रहे हैं. लोगों का कहना था कि कोरोना वायरस के लिए सरकार ने शिमला शहर के बीचों बीच डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाया है, वह सही नहीं है.

डीडीयू अस्पताल में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज अपना उपचार करवाने आते हैं, लेकिन अब इसे कोविड सेंटर बनाया गया है. ऐसे में लोगों को मजबूरन निजी अस्पतालों व आईजीएमसी की ओर रुख करना पड़ेगा. इससे आईजीएमसी में भीड़ बढ़ने से सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन नहीं हो पायेगा.

याचिका में कहा गया था कि डीडीयू के परिसर से रोजाना हजारों लोगों आते जाते हैं. अस्पताल के ठीक नीचे स्थानीय बस स्टैंड है. यहां से शहर व जिला के अन्य हिस्सों के लिए दूध, ब्रेड, अखबार जैसी मूलभूत सेवाओं का संचालन किया जाता है. हॉस्पिटल के साथ ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा भी है, जहां रोजाना सैकडों जरूरत मंद लोगों के लिए लंगर लगाया जाता है.

साथ ही याचिका में सुझाव दिया गया था कि शिमला में ही इंडस हॉस्पिटल, वॉकर हॉस्पिटल के नाम से मशहूर मिलिट्री हॉस्पिटल, आईजीएमसी हॉस्पिटल या तारा देवी के पास पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस को कोविड अस्पताल बनाया जा सकता है. इससे न केवल लोगों को महामारी के खौफ से बचाया जा सकेगा, बल्कि बीमारी के संक्रमण को रोकने में भी मदद मिलेगी.

वहीं, सरकार की ओर से दलील दी गयी थी कि डीडीयू को सोच समझ कर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित किया गया है. आइजीएमसी को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल घोषित करने पर प्रदेश के सबसे बड़े हॉस्पिटल में सुपर स्पेशियलिटी सेवाएं बुरी तरह से प्रभावति हो जाएंगी.

इसके अलावा डीडीयू में कोरोना संक्रमण के मरीजों के इलाज से किसी को कोई खतरा नहीं है. मरीजों को पूरी सुरक्षा से लाया जाता है और उनका इलाज भी पूरी सुरक्षा से किया जाता है. इसलिए यह संभावना जताना की डीडीयू में कोरोना मरीजों के इलाज से आसपास के क्षेत्रों में संक्रमण फैलेगा, यह ठीक नहीं है. वहीं, कोर्ट ने भी सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए याचिका को खारिज कर दिया.

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