सिरमौर: आज के डिजिटल युग में साइबर ठगी का मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. शातिर ऑनलाइन लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. वहीं, अब साइबर ठगों ने डिजिटल अरेस्ट का अपना हथियार बनाया है. देश में डिजिटल अरेस्ट के मामले में इन दिनों तेजी से बढ़ रहे हैं और कई लोग इसका शिकार भी बन चुके हैं. ऐसे मामले हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से भी सामने आ रहे हैं.
डिजिटल अरेस्ट मामले में फिलहाल पुलिस के पास इनका रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जानकारों की मानें तो डिजिटल अरेस्ट मामलों में ठग कभी पुलिस अफसर बनकर, तो कभी किसी सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल कर लगातार डराने की कोशिश में रहते हैं. अगर आसानी से समझा जाए तो डिजिटल अरेस्ट ऐसा मामला है, जिसमें परिवार के किसी एक सदस्य को किसी झूठे केस में फंसाकर उससे ठगी की कोशिश की जाती है और उसे बचाने के लिए पैसों का भुगतान करने का दबाव बनाया जाता है. लिहाजा ऐसे मामलों में लगातार सावधान रहना चाहिए, क्योंकि साइबर ठगों का ये नया पैंतरा है, जिससे हर कोई उनकी चाल में फंसकर ठगी का शिकार हो जाता है.
क्या हैं डिजिटल अरेस्ट?
सिरमौर जिला पुलिस ने डिजिटल अरेस्ट को लेकर लोगों को आगाह किया और इससे बचने के सुझाव दिए है. पुलिस के अनुसार सावधानी और सतर्कता से ही ऐसे शातिरों से बचा जा सकता है. डिजीटल अरेस्ट में किसी व्यक्ति को शातिर अनजान नंबर से कॉल करते हैं. उसके बाद पर पीड़ित को पुलिस और एजेंसी में उनके खिलाफ केस होने की बात कहकर झांसे में ले लेते हैं. इतना ही नहीं शातिर शख्स को डरा धमकार उनकी पर्सनल जानकारियां लेकर उनके खाते से पैसों को उड़ा लेते हैं. शातिर वीडियो कॉल के जरिए पीड़ित को वीडियो कॉल पर कई घंटों और एक से दो दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रखते हैं. शख्स को ऑनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से अरेस्ट हो गया है और उसे पेनल्टी या जुर्माना देना होगा.
ऐसे झांसे में लेते हैं शातिर
पुलिस के अनुसार डिजिटल अरेस्ट के मामले में लोगों कई तरह से फंसाया जाता है. जैसे किसी कूरियर का नाम लेकर कि इसमें गलत सामान आया है. कुरियर में ड्रग्स है, जिसकी वजह से आप फंस जाएंगे. आपके बैंक खाते से इस तरह के ट्रांजेक्शन हुए हैं, जो फाइनेंशियल फ्रॉड रिलेटेड हैं. मनी लॉन्ड्रिंग, एनडीपीएस का भय दिखाकर अधिकतर उन लोगों को फंसाया जाता है.
लोगों से मांगी जाती हैं फिरौती
पुलिस के अनुसार जो पढ़े-लिखे होते हैं. ऐसे लोगों को डराकर उनसे डिजिटल माध्यम से फिरौती मांगी जाती है. अगर उनके खातों में पैसे नहीं हैं, तो उनको लोन दिलवाया जाता है. कई बार उनके पास लोन लेने वाले एप्स नहीं होते हैं, तो उन एप्स को भी डाउनलोड कराया जाता है. कई बार दो से तीन दिन तक डिजिटल अरेस्ट रखा जाता है.
इस तरह से बचा जा सकता है
पुलिस के अनुसार डिजिटल अरेस्ट के मामले से कुछ सावधानियां बरतने से बचा जा सकता है. जिन लोगों को ठगी का शिकार बनाया जाता है, उनके पैन कार्ड, आधार कार्ड समेत कई अन्य डेटा को गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा किया जाता है. उनके खाते से पैसे ट्रांसफर करवाए जाते हैं. कई बार क्रिप्टो या गेमिंग एप के माध्यम से हवाला के जरिये पैसे को बाहर भेजा जाता है. लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी ऑनलाइन तरीके से पूछताछ नहीं करती है. सरकारी एजेंसी सिर्फ फिजिकल तरीके से पूछताछ करती है.
पीड़ित दो तरह से कर सकता है रिपोर्ट
यदि किसी के साथ इस तरीके की घटना होती है, तो वह दो तरीके से इसे रिपोर्ट कर सकता है. साइबर फ्रॉड के हैल्पलाइन नंबर या फिर ईमेल के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. इसके अलावा स्थानीय पुलिस को भी शिकायत दे सकते हैं.
ऐसे मामलों में कई तरह की हो सकती है सजा
पुलिस के अनुसार इस तरह के मामले में बहुत तरह की सजा हो सकती है. गलत डॉक्यूमेंट बनाने, लोगों से ठगी करने, सरकारी एजेंसी को गुमराह करने की सजा हो सकती है. इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग हो रही है. उसकी सजा, आईटी एक्ट के तहत सजा, ट्राई के कानून के तहत गलत सिम कार्ड लेने की सजा का प्रावधान है.
पकड़े गए आरोपी सिर्फ प्यादे
हालांकि इसमें दिक्कत यह है कि जो लोग पकड़े जाते हैं, वह निचले स्तर के प्यादे होते हैं और जो मुखिया होते हैं वह विदेश में बैठे होते हैं. सरकारी एजेंसी उन्हें पकड़ नहीं पाती है.
मोबाइल और फोन पर कॉल आने पर क्या करें?
- ऐसे मामलों में कॉल करने वाले की पुष्टि करें.
- अगर आपको लगता है कि यह कोई धोखाधड़ी है, तो फोन काट दें.
- नजदीकी पुलिस स्टेशन/साइबर पुलिस स्टेशन से संपर्क करें और मामले की रिपोर्ट करें.
- राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर 1930 पर ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी की रिपोर्ट करें.
- साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर लॉग ऑन करें और शिकायत दर्ज करें.
- जागरकता बढ़ाने के लिए अपना अनुभव साझा करें.
ये बिल्कुल भी न करें
- इस तरह के मामलों में किसी को व्यक्तिगत जानकारी न दें.
- अनजान या संदिग्ध नंबर पर ज्यादा बातचीत न करें.
- किसी अनजान के कहने पर पैसे न भेजें.
- किसी से कोई भी ओटीपी को साझा न करें.
- अनजान नंबर से कॉल करने वाले पर भरोसा बिल्कुल न करें.
ये सही है कि इन दिनों हर जगह डिजिटल अरेस्ट के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे मामलों में लोगों को कड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि शातिर किसी भी सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल कर परिवार के किसी एक सदस्य को फंसाने का प्रयास करते हैं. मामला किसी भी तरह का हो सकता है. जरूरी है कि जिसके पास भी लेन-देन संबंधी फोन कॉल आएं, तो सबसे पहले ठगों की बातों में न आकर जांच पड़ताल कर लें. इसके बाद ही अगला कदम उठाए:- रमन कुमार मीणा, एसएसपी, सिरमौर
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