शिमला: हिमाचल में सत्ता बदलने के बाद कर्मचारी राजनीति भी बदलने लगी है. सत्ता बदलने के साथ ही प्रदेश में नए अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के गठन की भी कवायद शुरू हो गई है. अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की संयोजक कमेटी ने अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है.
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के गठन की कवायद तेज: हिमाचल प्रदेश में अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के चुनावों की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई है. इसमें मंडी सदर इकाई का गठन किया गया. यह चुनाव प्रक्रिया पूरा महीना जारी रहेगी. अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ जिला मंडी के संयोजक रजनीश ठाकुर ने जानकारी देते हुए बताया कि 15 जुलाई तक प्रदेश की सभी ब्लॉक इकाइयों के चुनावों को संपन्न करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. 31 जुलाई तक सभी जिलों के नई कार्यकारिणीयों का गठन करके नए जिलाध्यक्ष चुन लिए जाएंगे. अगस्त महीने के पहले सप्ताह में हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के नए अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा और कर्मचारियों का नया नेता चुन लिया जाएगा. उन्होंने बताया कि चुनावों को पूरी पारदर्शिता के साथ संपन्न करवाया जा रहा है और ब्लॉक स्तर की इकाइयों में सभी विभागों के कर्मचारियों को कार्यकारिणी में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है.
वहीं, मंडी सदर इकाई की कमान चंद्र कुमार को सौंपी गई. जबकि सुरेश कुमार को महासचिव और हेम राज को वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुना गया. इसके साथ ही कार्यकारिणी के लिए 21 सदस्यों का चयन भी किया गया. नवनियुक्त अध्यक्ष चंद्र कुमार ने कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान को अपनी प्राथमिकता बताया.
पूर्व जयराम सरकार ने अश्वनी ठाकुर गुट को दी थी मान्यता: प्रदेश में इससे पहले पूर्व जयराम सरकार ने अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अश्वनी ठाकुर को मान्यता दे रखी थी. जयराम सरकार ने जुलाई 2021 में यह मान्यता दी, जिसके बाद अश्वनी ठाकुर महासंघ के अध्यक्ष थे, लेकिन हिमाचल में सरकार बदलने के साथ ही अब कर्मचारी राजनीति भी बदलने लगी है. अब कर्मचारी संगठनों ने संयुक्त तौर पर संयोजक कमेटी गठित की है जो कि अब चुनाव करवाने की तैयारी है.
इससे पहले समान्तर महासंघ ने किया था चुनाव का ऐलान: मौजूदा समय में जो कमेटी चुनाव कराने जा रही है, वह उस कर्मचारी महासंघ के अलग है, जिसको पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार ने मान्यता दी थी. इस महासंघ ने बीते साल दिसंबर में ही चुनावों की घोषणा कर दी थी. लेकिन इसके लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी न होने के कारण इस महासंघ के पदाधिकारी चुनाव करवाने से पीछे हट गए. इस तरह अब अन्य संगठनों ने मिलकर चुनावी हुंकार भर दी है.
ऐसे होता है अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ का गठन: हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ का कार्यकाल तीन साल के लिए होता है. महासंघ के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया अपनाई जाती है. महासंघ के चुनाव करवाने से पहले विभागों और सरकारी उपक्रमों के कर्मचारी महासंघ की सदस्यता लेते हैं और इसके बाद ब्लॉक और विभागीय इकाइयों को चुना जाता है. यहां से प्रतिनिधि जिला इकाइयों का गठन करते हैं, जिला इकाइयों के प्रतिनिधि राज्यकारिणी का चयन करते हैं. इस तरह महासंघ के गठन की प्रक्रिया पूरी होती है.
हिमाचल की राजनीति में कर्मचारी महासंघ की बड़ी भूमिका: बता दें कि हिमाचल की राजनीति में कर्मचारियों और इसके महासंघ की बड़ी भूमिका रही है. हिमाचल में करीब 2.50 लाख कर्मचारी है, ये कर्मचारी अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के सदस्य होते हैं. इतनी बड़ी तादाद में किसी संगठन के सदस्यों का होना अपने आप में एक बड़ी बात है. कर्मचारी हिमाचल में सरकारों को बनाते आए हैं. अब जबकि हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हुआ तो कर्मचारी राजनीति में बदलाव आ गया है.
सत्तासीन सरकार अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को देती है मान्यता: किसी भी अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को सरकार ही मान्यता देती है. यही वजह है कि राज्य में सरकार बदलते ही महासंघ भी बदल जाता है. दरअसल सरकार जिस गुट को मान्यता देती है, वह असली महासंघ कहलाता है. यह महासंघ सभी विभागीय इकाइयों और पूरे कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करता है. हालांकि यह भी एक तथ्य है कि हिमाचल में सरकारें अपने आखिरी समय में ही कर्मचारी महासंघ को मान्यता देती रही है. पूर्व की जयराम सरकार ने भी जुलाई 2021 में अश्वनी ठाकुर को महासंघ के अध्यक्ष तौर पर मान्यता दी थी, जबकि सरकार का मात्र डेढ़ साल का ही कार्यकाल बाकी था.
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