शिमला: हिमाचल सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है. प्रदेश में मौजूद चाय बागान जो लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर हैं, अब पिछले दरवाजे से बागान की भूमि का सौदा नहीं कर पाएंगे.
सोमवार को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट मीटिंग में सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट 1972 के सेक्शन 6-ए व सेक्शन 7-ए को निरस्त कर दिया है. एक्ट में सेक्शन 6-ए के तहत चेंज इन यूज ऑफ लैंड अंडर टी एस्टेट का प्रावधान था.
सरकार ने अब सेक्शन 6-ए व 7-ए को संशोधित कर निरस्त करने को मंजूरी दी. अब ये मामला विधानसभा के अगले सत्र में लाया जाएगा और फिर सदन की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. कारण ये है कि ये एक्ट देश के संविधान के शैड्यूल 9 का हिस्सा है, इसलिए इसे सदन से मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेजा जाना संवैधानिक आवश्यकता है.
प्रदेश हित में बड़ा फैसला
एक्ट में हिमाचल में ये संशोधन वर्ष 2000 में हुआ था. अब जयराम सरकार ने प्रदेश हित में ये बड़ा फैसला लिया है. दरअसल, हिमाचल प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट के तहत कोई भी व्यक्ति 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं रख सकता. यदि इस सीलिंग से अधिक जमीन हो तो वो सरकार में वेस्ट यानी निहित हो जाती है.
केवल चाय बागानों व धार्मिक संस्था राधास्वामी सत्संग ब्यास को इस सीलिंग से छूट मिली हुई है. चाय बागान वाला मामला सोमवार को कैबिनेट में लगा था और सरकार ने हिमाचल प्रदेश लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में वर्ष 2000 में धूमल सरकार के समय किए गए संशोधन को निरस्त करने की मंजूरी दी.
चाय बागानों को बैक डोर से बेचने का एक रास्ता था
हिमाचल में वर्ष 2000 में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी. धूमल सरकार ने चाय बागानों को लेकर एक्ट में सेक्शन 6-ए व सेक्शन 7-ए संशोधन के जरिए जोड़ा था. इसके अनुसार चाय बागानों को बैक डोर से बेचने का एक रास्ता बन गया था.
प्रदेश में चाय बागानों को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया गया था. बताया जा रहा है कि उस समय कांगड़ा के पालमपुर में कुछ चाय बागानों को बेचने के सौदे हुए थे. इसी तरह पूर्व में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय वर्ष 2014 में डेरा ब्यास को सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति देने का मामला कैबिनेट में आ गया था, लेकिन मंजूर नहीं हुआ.
डेरा ब्यास के पास इस समय करीब 10 हजार बीघा जमीन है और वो सरप्लस जमीन बेचना चाहता है. आलम ये है कि पहले तो उक्त धार्मिक संस्था को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया गया, यानी वे 150 बीघा से अधिक जमीन रख सकते हैं, लेकिन शर्त ये थी कि उसका उपयोग सामाजिक कार्य में ही होगा. बाद में संस्था उसका कमर्शियल यूज करने का दबाव बना रही थी. फिलहाल, ये मामला भी अब टल गया है.
वर्ष 2000 में चाय बागानों को भी एक छूट मिली थी
बताया जा रहा है कि कैबिनेट में इस मामले पर गंभीर चर्चा हुई और सरकार के कुछ मंत्री इस पक्ष में कतई नहीं थे कि धार्मिक संस्था को सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति दी जाए. इसी तरह वर्ष 2000 में चाय बागानों को भी एक छूट मिली थी.
भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद जब महेंद्र सिंह के पास राजस्व विभाग आया तो उन्होंने सभी मामलों की समीक्षा के लिए बैठकों को दौर शुरू किया. उसी दौरान वर्ष 2000 के चाय बागानों के लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़े संशोधन का मसला उठा.
सारे खेल पर विराम
पूर्व की धूमल सरकार के समय जो संशोधन हुआ था उसमें ये रास्ता खुल गया था कि चाय बागानों को मालिक सरकार की अनुमति व कुछ शर्तों के साथ जमीन बेच सकते हैं. हालांकि पिछली वीरभद्र सिंह सरकार के समय और उसके बाद से अब जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौर में चाय बागानों से जुड़ी कोई परमिशन नहीं दी गई. अब कैबिनेट मीटिंग में जयराम सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़े इस सारे खेल पर विराम लगा दिया है.
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