शिमला: एचपीयू के एमटीए विभाग के प्रोफेसर डॉ. चंद्रमोहन परशीरा ने लाहौल स्पीति की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए एक पर्यटन मॉडल तैयार किया है. इस पर्यटन मॉडल को लेकर प्रदेश की सरकार गंभीरता नहीं दिखा रही है.
डॉ. चंद्रमोहन परशीरा ने हिमाचल की तरह ही पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के लिए भी एक पर्यटन नीति तैयार की थी. उत्तराखंड सरकार ने 2013 में इसे लागू कर दिया था. लाहौल स्पीति का पर्यटन मॉडल भूटान में पर्यटन संचालन के लिए बनाए गए मॉडल पर आधारित है.
1974 में भूटान के लिए उच्चतम मूल्य और न्यूनतम प्रभाव पर आधारित मॉडल पर्यटन के लिए स्थापित किया था. इस मॉडल के तहत भूटान में पर्यटकों की आमद को नियंत्रित किया जाता है. भूटान में आने वाले पर्यटकों में से 25% से अधिक लोग धार्मिक पर्यटन यानी बौद्ध धर्म को देखने आते हैं.
वहीं, 12 फीसदी लोग साहसिक पर्यटन के लिए आते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए भूटान और लाहौल स्पीति की बौद्ध संस्कृति में समानता को देखते हुए डॉ. परशीरा ने यह पर्यटन मॉडल तैयार किया गया है.वर्तमान समय में लाहौल स्पीति में शत प्रतिशत बौद्ध समाज है.
ऐसे में इस बौद्ध समाज की संस्कृति को बचाकर रखने के लिए जो मॉडल तैयार किया गया है, उसमें घाटी की संस्कृति, सभ्यता, ग्लेशियर और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए पर्यटन को नियंत्रित करने का भी प्रावधान है. इसके साथ ही पर्यटन को विदेशी, भारतीय और क्षेत्रीय स्तर पर बांटने का भी प्रावधान किया गया है.
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डॉक्टर परशीरा चाहते हैं कि इस पर्यटन मॉडल को प्रदेश सरकार लाहौल स्पीति और रोहतांग के लिए अपनाए. यहां तक ही वर्ल्ड बैंक भी इस मॉडल को लेकर डॉ परशीरा से चर्चा कर चुका है लेकिन सरकार ने अभी तक इस ओर कोई पहल नहीं की है.
डॉ.परशीरा का कहना है कि यह मॉडल लाहौल स्पीति की 28 पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर तैयार किया है. उनका कहना है कि रोहतांग टनल के खुलने के बाद लाहौल स्पीति के लिए जाने वाले पर्यटकों की संख्या भीड़ में बदल जाएगी. लाहौल स्पीति को शिमला और मनाली बनने से बचाने के लिए यह मोडिफाइड भूटान पर्यटन मॉडल कारगर है.