शिमला: हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में तैनात मिड डे मील वर्कर ने अपनी मांगों को लेकर मोर्चा खोल दिया है. शुक्रवार को प्रदेश भर के मिड डे मील वर्करों ने सीटू के वेनर तले विधानसभा के बाहर जोर दार प्रदर्शन किया. सैंकड़ों की तादात में मिड डे मील वर्कर पंचायत भवन में इक्क्ठा हो कर रैली निकालते हुए विधानसभा के बाहर पहुंचे, जहां उन्होंने सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया. इस दौरान सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा कि देश की मोदी सरकार मजदूर वर्ग पर तीखे हमले जारी रखे हुए है. केंद्र सरकार 45वें श्रम सम्मेलन की शर्त के अनुसार योजना मजदूरों को मजदूर का दर्जा देने, पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य आदि सुविधा को लागू नहीं कर रही है.
विजेंद्र मेहरा ने कहा कि केंद्र में रही सरकारों ने वर्ष 2009 के बाद मिड डे मील कर्मियों के वेतन में एक रुपये की बढ़ोतरी भी अभी तक नहीं की है बल्कि मोदी सरकार तो इस योजना को कॉरपोरेट कम्पनियों के हवाले करना चाहती है. यही कारण है कि इस योजना के बजट में लगातार कटौती की जा रही है. मोदी सरकार ने मिड डे मील योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण योजना करके इसे खत्म करके सुनियोजित साजिश रची है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि मिड डे मिल वर्कर का न्यूनतम वेतन 11250 रुपये किया जाए. मिड डे मील मजदूरों को हिमाचल हाई कोर्ट के 31 अक्टूबर 2019 के निर्णय अनुसार दस महीने के बजाए बारह महीने का वेतन दिया जाए. पांच महीने का बकाया वेतन तुरंत दिया जाए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रद्द की जाए.
विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि स्कूल मर्ज होने या बंद होने की स्थिति में मिड डे मील वर्करों को प्राथमिकता के आधार पर अन्य सरकारी स्कूलों में समायोजित किया जाए. मिड डे मील योजना का किसी भी रूप में नीजिकरण न किया जाए. केन्द्रीय रसोईघरों व योजना को ठेके पर देने पर रोक लगाई जाए. डीबीटी के जरिए मिड डे मील योजना को खत्म करने की कोशिश बन्द की जाए और 12वीें कक्षा तक के सभी बच्चों (प्रवासी मजदूरों के बच्चों को भी) को मिड डे मील योजना के दायरे में लाया जाए. इसके लिए अधिक पोषित सामग्री तैयार करके वितरित की जाए. स्वयं सहायता समूह की बाध्यता बंद की जाए. दोपहर के भोजन के अलावा स्कूलों में नाश्ते का भी प्रावधान किया जाए. नई शिक्षा नीति लागू न की जाए. मिड डे मील वर्कर्स को कर्मचारी घोषित किया जाए.