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हाईकोर्ट की बड़ी व्यवस्था: आत्महत्या का प्रयास करने वाले को माना जाए मानसिक रोगी, दर्ज न हो मुकदमा - आत्महत्या का प्रयास करने पर दर्ज नहीं होगा मुकदमा

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी आदमी को अपने ही खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.अदालत ने यह भी पाया कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रार्थी के खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है.

himachal high court verdict on attempt to suicide case
हिमाचल हाईकोर्ट.
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Published : Nov 28, 2019, 8:21 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को बेहद अहम व्यवस्था दी है. अदालत ने इस व्यवस्था के तहत कहा कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले को मानसिक रोगी माना जाए और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज न किया जाए.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव को आदेश जारी किए हैं कि इस बारे में पुलिस अथॉरिटी को तुरंत प्रभाव से दिशा-निर्देश दिए जाएं.अदालत ने मुख्य सचिव को कहा कि वो पुलिस अथॉरिटी से कहें कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन करे.इस प्रावधान के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से पीड़ित रोगी माना जाएगा और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा.

न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने कहा कि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित करने को लेकर दुनिया के कई देशों ने पहले ही कदम उठा लिए हैं.आत्महत्या करने के प्रयास गैर अपराधीकरण घोषित किये जाने के मकसद से भारत सरकार पहले ही मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 अधिनियमित कर चुकी है.

अदालत ने भारत सरकार के गृह सचिव को भी आदेश दिए हैं कि वह उचित स्तर पर मामले को उठाएं, ताकि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित किया जाना तुरंत संभव हो.दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी.इस बारे में प्रतिभा शर्मा की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने ये अहम व्यवस्था व आदेश जारी किए.

याचिका में प्रार्थी ने गुहार लगाई थी कि पुलिस ने उसके खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने पर एफआईआर दर्ज की थी.यही नहीं, उसके खिलाफ सक्षम अदालत में मुकदमा चलाया गया.हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों को देखते हुए अपने निर्णय में कहा कि पुलिस ने प्रार्थी के बयानों के आधार पर ही आत्महत्या का मामला दर्ज किया है और ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3)का सरासर उल्लंघन है.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी आदमी को अपने ही खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.अदालत ने यह भी पाया कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रार्थी के खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की उक्त धारा में निहित प्रावधानों के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से ग्रसित रोगी माने जाने की व्यवस्था है.साथ ही उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा.हाई कोर्ट ने प्रार्थी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए निचली अदालत में चल रहा आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा भी रद्द कर दिया.

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को बेहद अहम व्यवस्था दी है. अदालत ने इस व्यवस्था के तहत कहा कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले को मानसिक रोगी माना जाए और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज न किया जाए.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव को आदेश जारी किए हैं कि इस बारे में पुलिस अथॉरिटी को तुरंत प्रभाव से दिशा-निर्देश दिए जाएं.अदालत ने मुख्य सचिव को कहा कि वो पुलिस अथॉरिटी से कहें कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन करे.इस प्रावधान के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से पीड़ित रोगी माना जाएगा और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा.

न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने कहा कि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित करने को लेकर दुनिया के कई देशों ने पहले ही कदम उठा लिए हैं.आत्महत्या करने के प्रयास गैर अपराधीकरण घोषित किये जाने के मकसद से भारत सरकार पहले ही मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 अधिनियमित कर चुकी है.

अदालत ने भारत सरकार के गृह सचिव को भी आदेश दिए हैं कि वह उचित स्तर पर मामले को उठाएं, ताकि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित किया जाना तुरंत संभव हो.दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी.इस बारे में प्रतिभा शर्मा की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने ये अहम व्यवस्था व आदेश जारी किए.

याचिका में प्रार्थी ने गुहार लगाई थी कि पुलिस ने उसके खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने पर एफआईआर दर्ज की थी.यही नहीं, उसके खिलाफ सक्षम अदालत में मुकदमा चलाया गया.हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों को देखते हुए अपने निर्णय में कहा कि पुलिस ने प्रार्थी के बयानों के आधार पर ही आत्महत्या का मामला दर्ज किया है और ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3)का सरासर उल्लंघन है.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी आदमी को अपने ही खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.अदालत ने यह भी पाया कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रार्थी के खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की उक्त धारा में निहित प्रावधानों के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से ग्रसित रोगी माने जाने की व्यवस्था है.साथ ही उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा.हाई कोर्ट ने प्रार्थी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए निचली अदालत में चल रहा आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा भी रद्द कर दिया.

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हाईकोर्ट की बड़ी व्यवस्था: आत्महत्या का प्रयास करने वाले को माना जाए मानसिक रोगी, दर्ज न हो मुकदमा
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को बेहद अहम व्यवस्था दी है। अदालत ने इस व्यवस्था के तहत कहा कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले को मानसिक रोगी माना जाए और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज न किया जाए। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव को आदेश जारी किए हैं कि इस बारे में पुलिस अथॉरिटी को तुरंत प्रभाव से दिशा-निर्देश दिए जाएं। अदालत ने मुख्य सचिव को कहा कि वो पुलिस अथॉरिटी से कहें कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम-2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन करे। इस प्रावधान के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से पीडि़त रोगी माना जाएगा और उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने कहा कि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित करने को लेकर दुनिया के कई देशों ने पहले ही कदम उठा लिए हैं। आत्महत्या करने के प्रयास गैर अपराधीकरण घोषित किये जाने के मकसद से भारत सरकार पहले ही मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 अधिनियमित कर चुकी है। अदालत ने भारत सरकार के गृह सचिव को भी आदेश दिए हैं कि वह उचित स्तर पर मामले को उठाएं, ताकि आत्महत्या के प्रयास को गैर अपराधीकरण घोषित किया जाना तुरंत संभव हो। दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। इस बारे में प्रतिभा शर्मा की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने ये अहम व्यवस्था व आदेश जारी किए। याचिका में प्रार्थी ने गुहार लगाई थी कि पुलिस ने उसके खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने पर एफआईआर दर्ज की थी। यही नहीं, उसके खिलाफ सक्षम अदालत में मुकदमा चलाया गया। हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों को देखते हुए अपने निर्णय में कहा कि पुलिस ने प्रार्थी के बयानों के आधार पर ही आत्महत्या का मामला दर्ज किया है और ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3)का सरासर उल्लंघन है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी आदमी को अपने ही खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी पाया कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम- 2017 की धारा-115 में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रार्थी के खिलाफ आत्महत्या का प्रयास किये जाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की उक्त धारा में निहित प्रावधानों के अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले को गंभीर तनाव से ग्रसित रोगी माने जाने की व्यवस्था है। साथ ही उसके खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा। हाई कोर्ट ने प्रार्थी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए निचली अदालत में चल रहा आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा भी रद्द कर दिया। 
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