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Himachal High Court: सरकारी स्कूलों में दिव्यांग छात्रों का बजट बंद करने पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार से शपथ पत्र के जरिए तलब की सारी जानकारी - हिमाचल हाईकोर्ट फैसला

हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों में दिव्यांग छात्रों का बजट बंद करने को लेकर हाईकोर्ट नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने सरकार से दिव्यांग छात्रों के लिए बजट स्वीकृत हुआ या नहीं पूछा है. साथ ही राज्य सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से 1 अगस्त तक जानकारी देने को कहा है. (Himachal High Court) (government schools differently abled students budget) (Himachal differently-abled students budget)

Himachal High Court
दिव्यांग छात्रों का बजट
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Published : Jul 25, 2023, 6:54 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों में दिव्यांग छात्रों के हित में खर्च किए जाने वाले बजट को बंद करने पर हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या दिव्यांग छात्रों के लिए बजट स्वीकृत कर दिया गया है या नहीं? यदि नहीं तो ये बजट कब तक मंजूर कर जारी किया जाएगा. राज्य सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से ये सारी जानकारी पहली अगस्त तक देनी होगी. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई अब पहली अगस्त को तय की है.

अदालत ने इसी मामले में केंद्रीय शिक्षा सचिव को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. राज्य सरकार की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि अगली सुनवाई तक सरकार की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उल्लेखनीय है कि इस मामले में पूर्व में हाईकोर्ट ने उमंग संस्था के मुखिया अजय श्रीवास्तव के पत्र पर संज्ञान लिया हुआ है. यह पत्र मुख्य न्यायाधीश के नाम लिखा गया था, जिस पर उन्होंने स्वत: संज्ञान लिया था. मामले में हाईकोर्ट ने केंद्रीय शिक्षा सचिव, राज्य सरकार के मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव सहित राज्य सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के प्रधान सचिव और निदेशक को प्रतिवादी बनाया है.

पत्र के माध्यम से अदालत को बताया गया कि हिमाचल प्रदेश के छात्रावास सुविधा वाले सरकारी स्कूलों में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए केंद्र सरकार ने बजट बंद कर दिया है. यह बजट वर्ष 2011 से मुफ्त छात्रावास और पढ़ाई की सुविधा के लिए दिया जा रहा था. हिमाचल में राजधानी शिमला के पोर्टमोर कन्या वरिष्ठ माध्यमिक, नाहन, जोगिंदर नगर और नगरोटा बगवां में करीब 47 दिव्यांग विद्यार्थियों को यह सुविधा मिल रही थी. दलील दी गई कि दिव्यांग छात्र-छात्राओं को सुविधा मुहैया करवाना और इसे जारी रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. आरोप लगाया गया है कि बजट बंद होने से अभिभावकों को छात्रावास में रहने, खाने पीने का सारा खर्च वहन करना पड़ेगा. हाईकोर्ट ने इन तथ्यों पर कड़ा संज्ञान लिया है.

CHC में डॉक्टरों की तैनाती के आदेश: वहीं, एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने राज्य में सीएचसी यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर्स की तैनाती सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं. इस मामले में सरकार से तीन अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट तलब की गई है. याचिकाकर्ता देवेंद्र शर्मा और अन्य ने घणाहट्टी सीएचसी में नियमित डॉक्टर तैनात करने के लिए गुहार लगाई थी. इस पर अदालत ने 26 सितंबर 2020 को राज्य के सभी सीएचसी में पर्याप्त चिकित्सकों की तैनाती के आदेश दिए थे. राज्य सरकार को 9 नवंबर 2020 को अदालत ने सीधी भर्ती या अन्य माध्यम से इन पदों को भरने के आदेश दिए थे.

अदालत को बताया गया था कि वर्ष 2016 में सरकार की ओर से जारी दिशा निर्देशों के तहत सभी सीएचसी में एक चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट और एक सेवादार की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है. अदालत को बताया गया था कि प्रदेश के लगभग 98 सीएचसी में 2016 के दिशा निर्देशों के विपरीत स्टाफ की तैनाती की गई है. अदालत ने पाया था कि इन केंद्रों में स्टाफ की तैनाती अपने चहेतों को समायोजित करने के लिए की गई है जिसका सीधा असर राजकीय कोष पर पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें: शिक्षकों के 6000 पद खाली इसलिए 198 बीआरसीसी शिक्षक वापस जाएंगे स्कूल, सरकार के आदेश पर हाई कोर्ट ने भी लगाई मुहर

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों में दिव्यांग छात्रों के हित में खर्च किए जाने वाले बजट को बंद करने पर हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या दिव्यांग छात्रों के लिए बजट स्वीकृत कर दिया गया है या नहीं? यदि नहीं तो ये बजट कब तक मंजूर कर जारी किया जाएगा. राज्य सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से ये सारी जानकारी पहली अगस्त तक देनी होगी. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई अब पहली अगस्त को तय की है.

अदालत ने इसी मामले में केंद्रीय शिक्षा सचिव को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. राज्य सरकार की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि अगली सुनवाई तक सरकार की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उल्लेखनीय है कि इस मामले में पूर्व में हाईकोर्ट ने उमंग संस्था के मुखिया अजय श्रीवास्तव के पत्र पर संज्ञान लिया हुआ है. यह पत्र मुख्य न्यायाधीश के नाम लिखा गया था, जिस पर उन्होंने स्वत: संज्ञान लिया था. मामले में हाईकोर्ट ने केंद्रीय शिक्षा सचिव, राज्य सरकार के मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव सहित राज्य सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के प्रधान सचिव और निदेशक को प्रतिवादी बनाया है.

पत्र के माध्यम से अदालत को बताया गया कि हिमाचल प्रदेश के छात्रावास सुविधा वाले सरकारी स्कूलों में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए केंद्र सरकार ने बजट बंद कर दिया है. यह बजट वर्ष 2011 से मुफ्त छात्रावास और पढ़ाई की सुविधा के लिए दिया जा रहा था. हिमाचल में राजधानी शिमला के पोर्टमोर कन्या वरिष्ठ माध्यमिक, नाहन, जोगिंदर नगर और नगरोटा बगवां में करीब 47 दिव्यांग विद्यार्थियों को यह सुविधा मिल रही थी. दलील दी गई कि दिव्यांग छात्र-छात्राओं को सुविधा मुहैया करवाना और इसे जारी रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. आरोप लगाया गया है कि बजट बंद होने से अभिभावकों को छात्रावास में रहने, खाने पीने का सारा खर्च वहन करना पड़ेगा. हाईकोर्ट ने इन तथ्यों पर कड़ा संज्ञान लिया है.

CHC में डॉक्टरों की तैनाती के आदेश: वहीं, एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने राज्य में सीएचसी यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर्स की तैनाती सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं. इस मामले में सरकार से तीन अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट तलब की गई है. याचिकाकर्ता देवेंद्र शर्मा और अन्य ने घणाहट्टी सीएचसी में नियमित डॉक्टर तैनात करने के लिए गुहार लगाई थी. इस पर अदालत ने 26 सितंबर 2020 को राज्य के सभी सीएचसी में पर्याप्त चिकित्सकों की तैनाती के आदेश दिए थे. राज्य सरकार को 9 नवंबर 2020 को अदालत ने सीधी भर्ती या अन्य माध्यम से इन पदों को भरने के आदेश दिए थे.

अदालत को बताया गया था कि वर्ष 2016 में सरकार की ओर से जारी दिशा निर्देशों के तहत सभी सीएचसी में एक चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट और एक सेवादार की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है. अदालत को बताया गया था कि प्रदेश के लगभग 98 सीएचसी में 2016 के दिशा निर्देशों के विपरीत स्टाफ की तैनाती की गई है. अदालत ने पाया था कि इन केंद्रों में स्टाफ की तैनाती अपने चहेतों को समायोजित करने के लिए की गई है जिसका सीधा असर राजकीय कोष पर पड़ रहा है.

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