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आपराधिक मामलों में सुबूतों से जुड़ी याचिका पर हाईकोर्ट सख्त, स्टेट फॉरेंसिक लैब को दिए कई अहम निर्देश

विभिन्न आपराधिक मामलों में सबूतों से छेड़छाड़ के मुद्दे को उजागर करने वाले मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एसएफएसएल), जुन्गा और रेंज फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं धर्मशाला और मंडी में लंबित नमूनों की कुल संख्या बताने का (High court strict on tampering of evidence)निर्देश दिया.

High court strict on tampering of evidence
छेड़छाड़ याचिका पर हाईकोर्ट सख्त
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Published : Mar 3, 2022, 7:58 PM IST

Updated : Mar 3, 2022, 8:59 PM IST

शिमला : विभिन्न आपराधिक मामलों में सबूतों से छेड़छाड़ के मुद्दे को उजागर करने वाले मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एसएफएसएल), जुन्गा और रेंज फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं धर्मशाला और मंडी में लंबित नमूनों की कुल संख्या बताने का (High court strict on tampering of evidence)निर्देश दिया. अदालत ने सरकार को इन प्रयोगशालाओं द्वारा जांच एजेंसियों से प्राप्त नमूनों की रिपोर्टिंग के लिए लगने वाले औसत समय का उल्लेख करने का भी निर्देश दिया है.

सरकार को उक्त प्रयोगशालाओं के कर्मचारियों की संख्या व रिक्त पड़े पदों की संख्या के बारे में अदालत को सूचित करने का निर्देश भी दिया गया. प्रयोगशालाओं में खराब पड़ी मशीनों की संख्या बताने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने पूछा है कि उच्च न्यायालय द्वारा इससे सम्बधित जारी किए कितने निर्देशों व डॉ एम.एस. राव, तत्कालीन निदेशक-सह-मुख्य फोरेंसिक वैज्ञानिक, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा जारी की गई सिफारिशो की अनुपालना की गई और शेष निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने नेहा स्कॉट द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के पश्चात यह आदेश पारित किए. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अपराध स्थल पर एकत्र किए गए भौतिक साक्ष्यों को एकत्र करने और सील करने की प्रक्रिया वर्तमान में आधुनिक समय के अनुसार उच्च स्तर की नहीं है.

कपड़े और मोम में साक्ष्य भेजना पुरातन तरीका है. इसे समाप्त करने की आवश्यकता है. याचिकाकर्ता के अनुसार किसी भी आपराधिक मामले की जांच समाज में आपराधिक न्याय की रीढ़ है, इसलिए सबूत हासिल करने और एकत्र करने के लिए उचित रूप से पैक, सील और लेबल किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि ऐसे कई आपराधिक मामले हुए, जिनमें मामले से जुड़े अधिकारियों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ किए जाने के कारण मामले की भावना कम हुई है.

जैसे, कानून के रक्षक कानून के अपराधी बन जाते हैं. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि मोम और स्टाम्प सील के माध्यम से साक्ष्य को सील करने के पुराने तरीकों के बजाय, छेड़छाड़ प्रूफ पैकेजिंग को अपनाया जाए और पूरे प्रदेश में आपराधिक मामलों में कार्डिनल सिद्धांत के रूप में बनाया जाए. याचिकाकर्ता ने आगे प्रार्थना की है कि पुलिस अधिकारियों को साक्ष्यों के संग्रह, लेबलिंग नई वैज्ञानिक पद्धति से अग्रेषित करने के संबंध में कुछ दिशा निर्देश जारी किए जाए. मामले को आगामी सुनवाई के लिए 30 मार्च निर्धारित की गई.

ये भी पढ़ें : कांग्रेस विधायक आशा कुमारी का बड़ा बयान, सरकार बनने पर सबसे पहले ओल्ड पेंशन स्कीम को मिलेगी स्वीकृति


शिमला : विभिन्न आपराधिक मामलों में सबूतों से छेड़छाड़ के मुद्दे को उजागर करने वाले मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एसएफएसएल), जुन्गा और रेंज फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं धर्मशाला और मंडी में लंबित नमूनों की कुल संख्या बताने का (High court strict on tampering of evidence)निर्देश दिया. अदालत ने सरकार को इन प्रयोगशालाओं द्वारा जांच एजेंसियों से प्राप्त नमूनों की रिपोर्टिंग के लिए लगने वाले औसत समय का उल्लेख करने का भी निर्देश दिया है.

सरकार को उक्त प्रयोगशालाओं के कर्मचारियों की संख्या व रिक्त पड़े पदों की संख्या के बारे में अदालत को सूचित करने का निर्देश भी दिया गया. प्रयोगशालाओं में खराब पड़ी मशीनों की संख्या बताने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने पूछा है कि उच्च न्यायालय द्वारा इससे सम्बधित जारी किए कितने निर्देशों व डॉ एम.एस. राव, तत्कालीन निदेशक-सह-मुख्य फोरेंसिक वैज्ञानिक, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा जारी की गई सिफारिशो की अनुपालना की गई और शेष निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने नेहा स्कॉट द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के पश्चात यह आदेश पारित किए. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अपराध स्थल पर एकत्र किए गए भौतिक साक्ष्यों को एकत्र करने और सील करने की प्रक्रिया वर्तमान में आधुनिक समय के अनुसार उच्च स्तर की नहीं है.

कपड़े और मोम में साक्ष्य भेजना पुरातन तरीका है. इसे समाप्त करने की आवश्यकता है. याचिकाकर्ता के अनुसार किसी भी आपराधिक मामले की जांच समाज में आपराधिक न्याय की रीढ़ है, इसलिए सबूत हासिल करने और एकत्र करने के लिए उचित रूप से पैक, सील और लेबल किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि ऐसे कई आपराधिक मामले हुए, जिनमें मामले से जुड़े अधिकारियों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ किए जाने के कारण मामले की भावना कम हुई है.

जैसे, कानून के रक्षक कानून के अपराधी बन जाते हैं. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि मोम और स्टाम्प सील के माध्यम से साक्ष्य को सील करने के पुराने तरीकों के बजाय, छेड़छाड़ प्रूफ पैकेजिंग को अपनाया जाए और पूरे प्रदेश में आपराधिक मामलों में कार्डिनल सिद्धांत के रूप में बनाया जाए. याचिकाकर्ता ने आगे प्रार्थना की है कि पुलिस अधिकारियों को साक्ष्यों के संग्रह, लेबलिंग नई वैज्ञानिक पद्धति से अग्रेषित करने के संबंध में कुछ दिशा निर्देश जारी किए जाए. मामले को आगामी सुनवाई के लिए 30 मार्च निर्धारित की गई.

ये भी पढ़ें : कांग्रेस विधायक आशा कुमारी का बड़ा बयान, सरकार बनने पर सबसे पहले ओल्ड पेंशन स्कीम को मिलेगी स्वीकृति


Last Updated : Mar 3, 2022, 8:59 PM IST
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