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सरकारी कर्मियों के लिए खुशखबरी, अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा, हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई मुहर - himachal government employees

हिमाचल प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए गुड न्यूज है. अब अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा. बता दें कि हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई है. पढ़ें पूरी खबर...

Himachal High Court News
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया.
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Published : Aug 16, 2023, 8:28 PM IST

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिए एक खुशखबरी है. अब अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा. इस संदर्भ में हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी. सुप्रीम कोर्ट की इस मुहर के साथ ही उन सैंकड़ों कर्मचारियों को पेंशन का लाभ मिल पाएगा, जिनकी टोटल रेगुलर सर्विस न्यूनतम पेंशन के लिए भी कम थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब अनुबंध वाली सेवा को भी पेंशन के लिए गिन लिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह उन सभी कर्मचारियों से विकल्प लें जो वर्ष 2003 से पूर्व अनुबंध पर थे और 2003 के बाद नियमित किए गए. आदेश जारी किया गया है कि विकल्प लेने के तुरन्त बाद उनकी पेंशन का निर्धारण किया जाए. अदालत ने सारी प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार को चार माह का समय दिया है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 को आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी द्वारा पारिवारिक पेंशन के लिए दायर याचिका की सुनवाई के बाद अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था. वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था.

23 जनवरी 2011 को प्रार्थी शीला के पति का देहांत हो गया था. प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था, जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता. खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय की तरफ से विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है.

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि जीवन के खुशहाली के दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यवहार को दर्शाता है, जिसकी कानून अनुमति प्रदान नहीं करता है. न्यायालय ने शीला देवी के पति की अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए थे कि वह प्रार्थी द्वारा दाखिल की गई याचिका के 3 वर्ष पहले से पेंशन की अदायगी करें. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की हां के बाद अब सैंकड़ों कर्मचारियों को लाभ मिल सकेगा.

ये भी पढे़ं- Shimla Shiv Temple Landslide: एक झटके में ही मौत की मुंह में समा गए कई लोग, अपनों को खोने के दर्द में डूबे कई परिवार

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिए एक खुशखबरी है. अब अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाएगा. इस संदर्भ में हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी. सुप्रीम कोर्ट की इस मुहर के साथ ही उन सैंकड़ों कर्मचारियों को पेंशन का लाभ मिल पाएगा, जिनकी टोटल रेगुलर सर्विस न्यूनतम पेंशन के लिए भी कम थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब अनुबंध वाली सेवा को भी पेंशन के लिए गिन लिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह उन सभी कर्मचारियों से विकल्प लें जो वर्ष 2003 से पूर्व अनुबंध पर थे और 2003 के बाद नियमित किए गए. आदेश जारी किया गया है कि विकल्प लेने के तुरन्त बाद उनकी पेंशन का निर्धारण किया जाए. अदालत ने सारी प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार को चार माह का समय दिया है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 को आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी द्वारा पारिवारिक पेंशन के लिए दायर याचिका की सुनवाई के बाद अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे. याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था. वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था.

23 जनवरी 2011 को प्रार्थी शीला के पति का देहांत हो गया था. प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था, जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता. खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय की तरफ से विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के बाद यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है.

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि जीवन के खुशहाली के दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है. इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यवहार को दर्शाता है, जिसकी कानून अनुमति प्रदान नहीं करता है. न्यायालय ने शीला देवी के पति की अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए थे कि वह प्रार्थी द्वारा दाखिल की गई याचिका के 3 वर्ष पहले से पेंशन की अदायगी करें. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की हां के बाद अब सैंकड़ों कर्मचारियों को लाभ मिल सकेगा.

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