शिमला: देवभूमि हिमाचल का देवताओं और प्रकृति से गहरा रिश्ता है. यही वजह है कि यहां कई परंपरा से जुड़े रीति रिवाज के पीछे प्रकृति को बचाने के उद्देश्य छिपा था. मान्यता है कि हिमाचल में अधिकत स्थानों पर पेड़ों पर देवताओं के वास होने के कारण लोग पेड़ों की पूजा-आराधना करते हैं. लेकिन इन दिनों प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ के कारण लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है.
झील पर निर्भर है यहां के लोगों की जिंदगी, देव परंपरा की अनदेखी से लोगों को करना पड़ा था अकाल का सामना
इस झील का पानी इतना पवित्र है कि दैविक पूजा में इसका उपयोग किया जाता था और इस स्थान पर देवता स्नान करते थे. साथ ही साथ लोग भी तीर्थ यात्रा से वापस लौट कर इस झील में स्नान कर के ही घर में प्रवेश करते थे.
झील पर निर्भर है यहां के लोगों की जिंदगी
शिमला: देवभूमि हिमाचल का देवताओं और प्रकृति से गहरा रिश्ता है. यही वजह है कि यहां कई परंपरा से जुड़े रीति रिवाज के पीछे प्रकृति को बचाने के उद्देश्य छिपा था. मान्यता है कि हिमाचल में अधिकत स्थानों पर पेड़ों पर देवताओं के वास होने के कारण लोग पेड़ों की पूजा-आराधना करते हैं. लेकिन इन दिनों प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ के कारण लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है.
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From: Suresh Sharma <journalist.suresh86@gmail.com>
Date: Wed, Jun 5, 2019, 4:26 PM
Subject: गड़ाकुफर झील विश्व पर्यावरण दिवस स्पेशल
To: <rajneeshkumar@etvbharat.com>
From: Suresh Sharma <journalist.suresh86@gmail.com>
Date: Wed, Jun 5, 2019, 4:26 PM
Subject: गड़ाकुफर झील विश्व पर्यावरण दिवस स्पेशल
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झील से छेड़छाड़ ओर देव परम्पराओं की अनदेखी से तीन पंचायतो को करना पड़ा था अकाल का सामना।
देव भूमि हिमाचल में देवताओं और प्रकृति का गहरा रिश्ता रहा है।देव परम्परा से जुड़े रीति रिवाज प्रकृति को बचाने और उनका रखरखाव करने से जुड़े होते थे।आज भी हिमाचल के अधिकतर स्थानों पर पेड़ो में देवताओं का वास होता है और लोग उन पेड़ो की आज भी पूजा करते है।लेकु प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ ओर दैविक रीति रिवाजों को अनदेखा कर आज मानव जाति को बाढ़,तूफान,पानी की कमी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से झुझना पड़ रहा है। आज भी हमारे पास ऐसी धरोहरें है जिनकी देखभाल करना हम सब का दायित्व बन जाता है।ऐसी ही एक प्राकृतिक धरोहर राष्ट्रीय राजमार्ग 5 पर स्थित मतियाना से 11 किलोमीटर दूर गड़ाकुफर में स्थित झील है।जिसका उल्लेख हिमाचल की प्रमुख प्राकृतिक झीलों में आता है।गड़ाकुफर झील का अपना एक दैविक एतिहास रहा है प्राचीन समय से इस झील को पवित्र माना जाता रहा है।इस झील का पानी इतना पवित्र है कि दैविक पूजा में इसका उपयोग किया जाता था।ओर इस स्थान पर देवता स्नान करते थे।और लोग भी तीर्थ यात्रा से वापिस लौट कर इस झील में स्नान कर ही घर मे प्रवेश करते थे। इस झील की एक ओर सुंदरता झील के पानी मे तैरने वाली रंग बिरंगी मछलियों से भी बनी है लोग इस झील में मछलियों को आटा देना शुभ मानते थे।यही नही इस झील का जलस्तर लोगों के पीने के पानी का भी अच्छा जलस्त्रोत आज भी बना हुआ है। इस झील के पानी का रिसाव निचले इलाकों में नालो के रुप मे बहता है।जिससे लोग पीने के पानी के साथ सिंचाई के लिए भी उपयोग करते है।इस झील का पानी तीन पंचायतो भराना,केलवी ओर धर्मपुर की जनता का प्रमुख स्रोत है।आधुनिकता के दौर में लोग देव परम्पराओं के रीति रिवाज भूल गए लेकिन इस झील की अनदेखी से लोग इसके प्रकोप से बच नही पाए कुछ सालों पूर्व ये झील बिल्कुल सुख गयी और पानी के लिए लोगों में हाहाकार मच गया।तीनों पंचायते सूखे की चपेट में आ गयी। उसके बाद लोगों ने देव परम्पराओं के रीति रिवाजों का माना।और उसके बाद अब ये झील पुनः अपने अस्तित्व में आ रही है। केलवी ओर भराना के लोगों ने अब इस झील को सवारने का काम शुरू कर दिया है।हालांकि सरकार जी तरफ से अभी तक इस झील को सवारने में कोई खासी मदद नही मिल पायी है। लेकिन पंचायत स्तर पर इसकी देखभाल के लिए लोगों ने इसका जिम्मा ले लिया है।स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पानी को फिर से साफ करके देव कार्य के लिए प्रयोग किया जाएगा ।और इसको गंदा करने वालों को दण्डित किया जाएगा।
बाईट,,, नंदराम
स्थानीय निवासी
बाईट,, कमलेश शर्मा
प्रधान केलवी पंचायत
आपको बता दे की सर्दियों में बर्फ गिरने का बाद इसकी सुंदरता पर चार चांद लग जाते है।पूरी झील 2 महीने तक सफेद चादर से ढक जाती है।जिससे इसकी सुंदरता देखते ही बनती है।सर्दियों में प्राक्रतिक रूप से जमने वाली झील पर स्केटिंग की जा सकती है।लेकिन इस झील की तरफ सरकार और पर्यटन विभाग ने कभी कोई ध्यान नही दिया।जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक मुख्य केंद्र बनकर उभर सकती है।ओर इससे स्थनीय युवाओं को रोजगार के भी अच्छे अवसर मिल सकते है।
Last Updated : Jun 5, 2019, 8:16 PM IST