शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश बुरी तरह से कर्ज के जाल में फंस गया है. इससे निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. सुखविंदर सिंह सरकार ने 17 मार्च को अपना पहला बजट पेश किया है. अभी हिमाचल प्रदेश पर 75436 करोड़ रुपए का कर्ज है. अभी 31 मार्च 2023 तक इस वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 में हिमाचल ने 10,800 करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है. अभी 23 मार्च को सरकार के खजाने में 1500 करोड़ रुपए कर्ज के रूप में फिर से आएंगे.
इस तरह मौजूदा वित्त वर्ष का यानी एक वित्त वर्ष का कुल कर्ज 12 हजार 300 करोड़ रुपए का होगा. अगले साल एफआरबीएम एक्ट के अनुसार राज्य सरकार ने लोन लिमिट घटाई है. उस लिमिट के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार तय लिमिट में 11840 करोड़ रुपए का कर्ज ले सकेगी. वित्त वर्ष 2023-24 के अंत में राज्य पर 87 हजार करोड़ का लोन हो जाएगा. और इसी प्रकार 2024-25 तक हिमाचल का कर्ज एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा.
हिमाचल में कर्ज की हालत ये है कि बजट का 20 फीसदी हिस्सा कर्ज की किश्त और कर्ज के ब्याज को चुकाने में लग जाता है. इस साल भी राज्य सरकार कर्ज की अदायगी पर 10 फीसदी और कर्ज के ब्याज की अदायगी पर भी दस फीसदी बजट खर्च करेगी. इस तरह हाल ही में पेश बजट के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार 11068 करोड़ का कर्ज चुकाएगी. इसमें से 5562 करोड़ रुपए तो सिर्फ लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर खर्च होगा. वहीं, कर्ज की किश्तों पर 5506 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के लिए 53 हजार करोड़ रुपए से अधिक का बजट पेश किया है. इस बजट में से 42 फीसदी वेतन और पेंशन पर खर्च हो जाएगा.
अभी हिमाचल प्रदेश की दिक्कत ये है कि राज्य सरकार को केंद्र से जीएसटी का कंपनसेशन बंद हो चुका है. इसके अलावा रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में भी कटौती हुई है. जिस पर समस्या ये है कि राज्य सरकार ने ओपीएस की बहाली कर दी है. अभी कर्मचारियों और पेंशनर्स को एरियर व डीए देने के लिए 11 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम चाहिए. ऐसे में स्पष्ट है कि राज्य सरकार कर्ज के मकड़जाल में फंस चुकी है. पूर्व वित्त सचिव व रिटायर्ड आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है कि हिमाचल को आने वाले समय में आय के नए संसाधन जुटाने पर फोकस करना होगा. छोटे-मोटे उपायों से स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं आएगा. विकास कार्य न थमें, इसके लिए एक्सटर्नल एडिड प्रोजेक्ट्स की दिशा में बढ़ना होगा. केंद्र सरकार को भी इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स की डीपीआर भेज कर फंड का आग्रह करना होगा.
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