कुल्लू: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का अपना महत्व है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने का विधान है. हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का होता है और ज्येष्ठ का पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के चलते बुधवार 17 मई को है. उसी दिन पंचक और भद्रा भी है. वहीं, प्रदोष व्रत के दिन आयुष्मान और सौभाग्य योग भी बन रहे हैं.
बुध प्रदोष का मुहूर्त- ज्येष्ठ मास का कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 मई मंगलवार रात को 11:36 पर शुरू हो रही है और बुधवार 17 मई को रात 10:28 पर इसका समापन होगा. ऐसे में उदया तिथि के आधार पर प्रदोष व्रत 17 मई बुधवार को होगा. 17 मई को बुध प्रदोष की पूजा का समय शाम 7:06 बजे से रात 9:10 बजे तक होगा. इस शुभ समय में भगवान शिव की विधि पूर्वक पूजा करें.
शुभ योग का संयोग- आचार्य दीप कुमार का कहना है कि प्रदोष व्रत के दिन आयुष्मान और सौभाग्य दो शुभ योग बन रहे हैं. 17 मई को सुबह से ही आयुष्मान योग प्रारंभ है जो रात 9:18 बजे तक रहेगा. उसके बाद सौभाग्य योग प्रारंभ हो जाएगा. यह दोनों ही योग पूजा-पाठ और शुभ कार्यों के लिए उत्तम माने जाते हैं.
वही बुध प्रदोष के दिन पंचक और भद्रा भी है. पंचक सुबह 5:29 बजे से लेकर सुबह 7:39 तक है. वहीं भद्रा रात 10:28 बजे से लेकर अगले दिन प्रातः 5:29 बजे तक है. इस भद्रा का वास स्वर्ग में है. मान्यता है कि भद्रा और पंचक के समय में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.
आचार्य दीप कुमार का कहना है कि प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का अच्छा अवसर है. इस दिन व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करनी चाहिए. जिससे भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. भगवान शिव जीवन के संकट को दूर करते हैं और धन सुख समृद्धि में बढ़ोतरी करते हैं. वही असाध्य रोगों को भी भगवान शिव अपनी कृपा से खत्म करते हैं.
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