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कहानी बनकर रह गया हिमाचल का 'हरिद्वार' , कोल डैम में ली जल समाधि

सतलुज नदी में बने 800 मेगावाट के कोल डैम प्रोजेक्ट ने अब सब कुछ तबाह कर दिया. डैम के कारण यहां सब कुछ जलमग्न हो गया. अब यहां से गुजरने वाले लोगों को कई किलोमीटर तक फैली एक बड़ी सी झील नजर आती है. तत्तापानी तीर्थ स्थल ने भी कोल डैम में जल समाधि ले ली है

etv bharat Story of Tattapani Tirtha, ततापानी तीर्थ की कहानी
तत्तापानी झील.
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Published : Jan 13, 2020, 7:53 PM IST

करसोग: सात से आठ साल पहले सतलुज के किनारे सर्दियों में निकलने वाले प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मों के इर्द गिर्द तट पर बिछी रेत और पत्थरों पर लोहड़ी और मकर सक्रांति का बहुत बड़ा मेला लगता था.

चारों ओर पहाड़ों से घिरे गर्म पानी के प्राकृतिक चश्मों में कड़ाके की ठंड में भी लोग दूर-दूर से यहां मकर सक्रांति पर स्नान करते थे. मेले में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए यहां लोहड़ी से 15 दिन पहले ही दुकानें सजनी शुरू हो जाती थी जो पूरा महीना लगती थीं. तत्तापानी को हिमाचल के हरिद्वार माने जाने के कारण यहां तुला दान के लिए पंडित भी पूरा महीना डेरा डालते थे.

etv bharat Story of Tattapani Tirtha, ततापानी तीर्थ की कहानी
तत्तापानी झील.

प्राकृतिक चश्मों में स्नान के बाद श्रद्धालु ग्रहों की शांति के लिए तुलादान करने के बाद फिर से गर्म पानी के चश्मों में स्नान करते थे. प्रदेश भर से लोगों की भीड़ सतलुज नदी के तट पर स्नान करने के लिए जुटती थी. लोहड़ी और मकर सक्रांति को यहां बड़ी भीड़ लगती थी. सतलुज नदी के तट पर लगने वाले मेला स्थल के साथ ही तत्तापानी-शाकरा सड़क के साथ ही पीपल का विशाल पेड़ और भगवान परशुराम का मंदिर भी था.

इसके अतिरिक्त यहां टूरिज्म विभाग की छोटी सी बिल्डिंग थी, जहां मकर सक्रांति में तत्तापानी आने वाले पर्यटक रुकते थे. यहीं सड़क की ऊपर की ओर एक बड़ा ग्राउंड था, जहां लोहड़ी और मकर सक्रांति मेले के अवसर पर क्रिकेट मैच होते थे.

etv bharat Story of Tattapani Tirtha, ततापानी तीर्थ की कहानी
स्नान करते श्रद्धालु.

सतलुज नदी में बने 800 मेगावाट के कोल डैम प्रोजेक्ट ने अब सब कुछ तबाह कर दिया. डैम के कारण यहां सब कुछ जलमग्न हो गया. अब यहां से गुजरने वाले लोगों को कई किलोमीटर तक फैली एक बड़ी सी झील नजर आती है. तत्तापानी में शिमला-करसोग मार्ग पर ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है. इसके अतिरिक्त सतलुज नदी पर बनी झील से साथ भी ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है. यहां पर महिलाओं के लिए अब स्नानागार और पुरुषों के लिए कृत्रिम चश्में नहाने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इसमें वो सतलुज नदी के किनारे प्राकृतिक चश्मों वाली बात नहीं है. लोहड़ी और मकर सक्रांति में कई महीनों तक लगने वाला मेला भी अब चार दिनों तक सिमट कर रह गया है.

वीडियो.

ततापानी में गर्म पानी के चश्मों की उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं. पंडित टेक चंद शर्मा का कहना है कि ततापानी के बारे में एक किंवदंती ये है कि प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ने तपस्या की थी. इसलिए इसे ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली भी कहा जाता है. ये भी मान्यता है कि यहां पर जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम स्नान किया था.

ये भी पढ़ें- बर्फबारी की चेतवानी के बाद CM ने उपायुक्तों को दिए निर्देश, कहा- पर्यटकों को ऊपरी क्षेत्रों में न जाने दें

करसोग: सात से आठ साल पहले सतलुज के किनारे सर्दियों में निकलने वाले प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मों के इर्द गिर्द तट पर बिछी रेत और पत्थरों पर लोहड़ी और मकर सक्रांति का बहुत बड़ा मेला लगता था.

चारों ओर पहाड़ों से घिरे गर्म पानी के प्राकृतिक चश्मों में कड़ाके की ठंड में भी लोग दूर-दूर से यहां मकर सक्रांति पर स्नान करते थे. मेले में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए यहां लोहड़ी से 15 दिन पहले ही दुकानें सजनी शुरू हो जाती थी जो पूरा महीना लगती थीं. तत्तापानी को हिमाचल के हरिद्वार माने जाने के कारण यहां तुला दान के लिए पंडित भी पूरा महीना डेरा डालते थे.

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तत्तापानी झील.

प्राकृतिक चश्मों में स्नान के बाद श्रद्धालु ग्रहों की शांति के लिए तुलादान करने के बाद फिर से गर्म पानी के चश्मों में स्नान करते थे. प्रदेश भर से लोगों की भीड़ सतलुज नदी के तट पर स्नान करने के लिए जुटती थी. लोहड़ी और मकर सक्रांति को यहां बड़ी भीड़ लगती थी. सतलुज नदी के तट पर लगने वाले मेला स्थल के साथ ही तत्तापानी-शाकरा सड़क के साथ ही पीपल का विशाल पेड़ और भगवान परशुराम का मंदिर भी था.

इसके अतिरिक्त यहां टूरिज्म विभाग की छोटी सी बिल्डिंग थी, जहां मकर सक्रांति में तत्तापानी आने वाले पर्यटक रुकते थे. यहीं सड़क की ऊपर की ओर एक बड़ा ग्राउंड था, जहां लोहड़ी और मकर सक्रांति मेले के अवसर पर क्रिकेट मैच होते थे.

etv bharat Story of Tattapani Tirtha, ततापानी तीर्थ की कहानी
स्नान करते श्रद्धालु.

सतलुज नदी में बने 800 मेगावाट के कोल डैम प्रोजेक्ट ने अब सब कुछ तबाह कर दिया. डैम के कारण यहां सब कुछ जलमग्न हो गया. अब यहां से गुजरने वाले लोगों को कई किलोमीटर तक फैली एक बड़ी सी झील नजर आती है. तत्तापानी में शिमला-करसोग मार्ग पर ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है. इसके अतिरिक्त सतलुज नदी पर बनी झील से साथ भी ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है. यहां पर महिलाओं के लिए अब स्नानागार और पुरुषों के लिए कृत्रिम चश्में नहाने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इसमें वो सतलुज नदी के किनारे प्राकृतिक चश्मों वाली बात नहीं है. लोहड़ी और मकर सक्रांति में कई महीनों तक लगने वाला मेला भी अब चार दिनों तक सिमट कर रह गया है.

वीडियो.

ततापानी में गर्म पानी के चश्मों की उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं. पंडित टेक चंद शर्मा का कहना है कि ततापानी के बारे में एक किंवदंती ये है कि प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ने तपस्या की थी. इसलिए इसे ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली भी कहा जाता है. ये भी मान्यता है कि यहां पर जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम स्नान किया था.

ये भी पढ़ें- बर्फबारी की चेतवानी के बाद CM ने उपायुक्तों को दिए निर्देश, कहा- पर्यटकों को ऊपरी क्षेत्रों में न जाने दें

Intro:विकास की राह में हिमाचल का मशहूर तीर्थ स्थल तत्तापानी अब स्मृतियों में कहानी बनकर रह गया है। कुछ साल पहले कोल डैम बनने बाद तीर्थ स्थल तत्तापानी की रौनक भी कोल डैम के कारण बनी झील में ठहरे पानी की की तरह अब शांत है। Body:
ये कोई अधिक पुरानी बात नहीं है। सात से आठ साल पहले सतलुज के किनारे सर्दियों में निकलने वाले प्राकृतिक गर्न पानी के चश्मों के इर्द गिर्द तट पर बरसात के बाद नदी का पानी उतरने के बाद बिछी रेत और पथ्थरों पर लोहड़ी और मकर सक्रांति का बहुत बड़ा मेला लगता था। चारों और पहाड़ों से गिरे इन प्राकृतिक चश्मों में कड़ाके की ठंड पड़ने के बाद लोग दूर दूर से यहां स्नान का मजा लेने के लिए जुटते थे। मेले में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए यहां लोहड़ी से 15 दिन पहले ही दुकानें सजनी शुरू हो जाती थी।, जो पूरा महीने लगती थी। तत्तापानी को हिमाचल के हरिद्वार माने जाने के कारण यहां तुला दान के लिए पंडित भी पूरा महीना डेरा डालते थे। प्राकृतिक चश्मों में स्नान के बाद श्रद्धालु ग्रहों की शांति के लिए तुलादान करने के बाद फिर से गर्म पानी के चश्मों में स्नान करते थे। प्रदेश भर से लोगों की भीड़ सतलुज नदी के तट पर स्नान करने के लिए जुटती थी। लोहड़ी और मकर सक्रांति को यहां बड़ी भीड़ लगती थी, तत्तापानी के आसपास के इलाकों सांविधार, शाकरा, थली, माहोटा, किंदर, शकरोड़ी, चाबा, बिंदला आदि क्षेत्रों से लोग पैदल की मेले में पहुंचते थे, जबकि ऊपरी शिमला ठियोग, चौपाल, कोटखाई, सहित शिमला, धामी, मशोबरा, नालदेहरा, सहित मंडी जिला के विभिन्न क्षेत्रों से लोग गाड़ियां लेकर पवित्र स्नान करने आते थे। सतलुज नदी के तट पर लगने वाले मेला स्थल के साथ ही तत्तापानी - शाकरा सड़क के साथ ही पीपल का विशाल पेड़ और भगवान परशुराम का मंदिर भी था। इसके अतिरिक्त यहां टूरिज्म विभाग की छोटी सी बिल्डिंग थी, जहां मकर सक्रांति में तत्तापानी आने वाले पर्यटक रुकते थे। यहीं सड़क की ऊपर की ओर एक बड़ा ग्राउंड था, जहां लोहड़ी और मकर सक्रांति मेले के अवसर पर क्रिकेट मैच होते थे। इस मैचों में हिस्सा लेने के दूर दूर से टीमें आती थी। इस सड़क में तत्तापानी बस स्टैंड की तरफ दोनों ओर दुकानें सजती थी। बड़ी संख्या में लोगों के मेले में आने के कारण यहां सुन्नी और ठोगी तक घन्टों लम्बा जाम लगा रहता, लेकिन अब विकास की चाह ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है। पर्यावरण और सांस्कृतिक घरोहर की बलि चढ़ाकर सतलुज नदी में बने 800 मेगावाट के कोल डैम प्रोजेक्ट ने अब सब कुछ तबाह कर दिया। डैम के कारण यहां सब कुछ जलमग्न हो गया। अब यहां से गुजरने वाले लोगों को कई किलोमीटर तक फैली एक बडी सी झील नजर आती है। सरकार ने तत्तापानी के खोए अस्तित्व को नई पहचान दिलाने के लिए यहां जरूर कुछ प्रयास किए हैं। तत्तापानी में शिमला- करसोग मार्ग पर ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है। इसके अतिरिक्त सतलुज नदी पर बनी झील से साथ भी ड्रिल करके गर्म पानी निकाला गया है। यहां पर महिलाओं के लिए अब स्नानागारऔर पुरुषों के लिए कृत्रिम चश्में नहाने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इसमें वो सतलुज नदी के किनारे प्राकृतिक चश्मों वाली बात नहीं है। लोहड़ी और मकर सक्रांति में कई महीनों तक लगने वाला मेला भी अब फो चार दिनों तक सिमट कर रह गया है।



Conclusion:ततापानी में गर्म पानी के चश्मों की उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। जाने-माने पंडित टेक चंद शर्मा का कहना है कि ततापानी के बारे में एक किंवदंती ये है कि प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि तपस्या की थी। इसलिए इसे ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली भी कहा जाता है। ये भी मान्यता है कि यहां पर जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम स्नान किया था और उन्होंने यहां अपनी धोती निचोडी थी। जिसके बाद यहां खुद व खुद गर्म पानी निकल गया।
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