मंडी/ कुल्लू: हिमाचल की धरती देवों की धरती है. हिम की धरा हिमाचल का सौभग्य है कि कलयुग में भी यहां देवी-देवताओं का वास है. यहां कण-कण में देव आस्था की खुशबू महकती है. ईटीवी भारत अपनी खास सीरिज अद्भुत हिमाचल में आज हम आपको देव रथ के बारे में बताएंगे. जब पूरे लाव लश्कर के साथ वाद्य यंत्रों की धुन पर जिस रास्ते से देव रथ गुजरता है, लोगों के हाथ देवता के आगे दुआ करते हैं और सिर सजदे में झुक जाता है.
पूजा अर्चना के बाद देव आज्ञा से ही देव रथ को मंदिर से निकाला जाता है. भ्रमण पर निकलने से पहले देवता अपना रास्ता खुद तय करते हैं. देवता का रथ सेवादारों को बताता है कि वो किस रास्ते से जाना पसंद करेंगे. जिस रास्ते से देवता जाना पसंद करते हैं उस रास्ते पर देवता का रथ अपने आप ही मुड़ जाता है. अगर देवता रास्ता बदलना चाहे तो उनका रथ अपने आप पीछे हट जाता है.
देवता के रथ को हमेशा चार लोग कंधों पर उठाते हैं. कंधों पर देवता के ये रथ अपने आप हिलते हैं. लोगों का मानना है कि ये देवता की अदृश्य शक्ति से हिलते हैं. खुशी में देवता का रथ अपने आप नाचता है. देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि मानों रथ कंधों पर उछल रहा हो.
यहां लोगों को देवताओं का आशीर्वाद सिर्फ मंदिर की चौखट पर ही नहीं मिलता बल्कि देवता देव रथ पर सवार होकर अपने इलाके का मुआयना भी करते हैं. सदियों से चले आ रहे मेलों और त्याहौरों में भी शामिल होते हैं. ये भक्तों के बुलावे पर उनके घर भी जाते हैं और लोगों को आशीर्वाद देते हैं. देवता समय-समय पर अपने बिरादरी के रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं और अपने आप रथ एक दूसरे से मिलते हैं. ये नजारा एक दम अद्भुत और अविश्वसनीय होता है.
हर देवी देवता का एक रथ होता है. यह रथ एक खास शैली से लकड़ी का प्रयोग करके बनाया जाता है. देवता के रथ पर कई मोहरे (मुख) होते हैं जो अष्टधातु , चांदी, से बनाये जाते हैं. इन रथों को बड़ी सुंदरता के साथ सजाया जाता है. देव रथ में सबसे ऊपर सोना, चांदी या अष्टधातु का छत्र भी होता है. इन रथों को उठा कर कहीं भी ले जाया जा सकता है. कहा जाता है कि अगर देवता नाराज हो जाए तो देवरथ एक इंच भी आगे नहीं जाता फिर चाहे इसे उठाने में पूरी कायनात लग जाए
हर देवता का एक प्रभाव क्षेत्र होता है जिसे देवता की हार कहा जाता है. बहुत से देवता समय समय पर अपनी हार में घूम कर लोगों को आशीर्वाद देते हैं. हर देवता का एक गुर और एक पुजारी होता है. गुर वो इंसान होता है जो देवता की पूजा अर्चना करता है. मान्यता अनुसार वो देवता के साथ संपर्क कर सकता है. देवता के गुर ने लम्बे बाल रखे होते हैं और खास ओवरकोट पहने रहते हैं जिसे झग्गा कहा जाता है . देवता अपना आदेश गुर के जरिए ही लोगों को सुनाते है और देव आदेश यहां के लोगों के लिए पत्थर की लकीर होती है.
न्यूटन, आर्केमिडीज, चार्ल्स डार्विन और एरिस टोटल के सिद्धांतों को मानने वाले विज्ञान के पास भी इसका कोई जवाब नहीं, लेकिन ये लोगों की आस्था है इसके आगे न तर्क चलता है न विज्ञान... ऐसे ही देवआस्थाओं से मिलकर हिमाचल देवभूमि बना है. ये भक्ति की शक्ति ही है कि आधुनिकता के दौर में भी देव परंपराओं को लोगों ने खुद से अभी तक बिसारा नहीं हैं.
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