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ऊर्जा राज्य हिमाचल के 3 गांवों में आज भी अंधेरा, आज तक नहीं पहुंची बिजली

राज्य को ऊर्जा राज के नाम से जाना जाता है, लेकिन कुल्लू के तीन गांवों के लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं. यह तीनों गांव ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के तहत आते हैं. अब कुछ संगठन विरोध जताकर सरकार तक आवाज पहुंचाने की बात कर रहे हैं.

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Published : Jun 27, 2020, 6:15 PM IST

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3 गांव में नही पहुंच पाई बिजली

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश को ऊर्जा राज्य के नाम से जाना जाता है, लेकिन कुल्लू के तीन गावों में अभी भी अंधेरा छाया हुआ है. यहां के बाशिंदों को मोमबत्ती या लालटेन के सहारे जीवन गुजारन पड़ रहा है. जानकारी के मुताबिक बंजार उपमंडल की सैंज घाटी के तीन गांवों शाक्टी, मरौड़ व शुघाड़ में बिजली नहीं है. इस कारण 200 लोगों की आबादी वाले इन गांवों में न तो टीवी चलता है न ही मोबाइल फोन काम करता है.

शाक्टी, मरौड़ और शुघाड़ गांव के लिए कुछ समय पूर्व सोलर पैनल कनेक्शन दिए गए, लेकिन विद्युत विभाग की लाइन अभी तक नहीं पहुंच पाई. प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आते ही ग्रामीणों में उम्मीद की किरण जगी थी, लेकिन कब पूरी होगी पता नहीं. दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत तीनों गांवों के लिए 1.30 लाख रुपये से बिजली पहुंचाई जानी थी. योजना के तहत विद्युत विभाग ने टेंडर प्रकिया शुरू की. बिजली के खंभे और अन्य सामग्री भी गांवों में पहुंचाई गई.

वीडियो

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में आते गांव

सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये गांव ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क शमशी के तहत आते हैं. सैंक्चुअरी क्षेत्र होने के कारण वाइल्ड लाइफ विक ने काम पर रोक लगा दी. काम के लिए विद्युत विभाग को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) के तहत अनुमति लेनी चाहिए थी, जो नहीं ली गई. बंजार के विधायक सुरेंद्र शौरी ने गत दिनों हुई बैठक में यह मुद्दा उठाया था. इसके बाद आनन-फानन में विभाग के अधिकारियों ने इस संबंध में काम शुरू कर दिया.

जल्द जताएंगे विरोध
स्थानीय निवासी, मोती राम, प्रेम सिंह, शेर सिंह, दुले राम व जीत राम ने बताया कि छह महीने पहले यहां बिजली के खंभे पहुंचाए गए.अब ग्रामीण इन खंभों को वापस नहीं ले जाने देंगे. शाक्टी, मरौड़ और शुघाड़ गांव में आजादी के कई साल बाद भी बिजली न होना हैरान करने वाला. सैंज संयुक्त संघर्ष समिति अध्यक्ष महेश शर्मा ने बताया कि गांव तक न तो सड़क सुविधा है और न ही बिजली की. सैंज संयुक्त संघर्ष समिति जल्द विरोध जताएगी. बता दें कि ये गांव ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के तहत आते हैं. इन गांवों में सड़क-बिजली की सुविधा पहुंचाने के लिए वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) के तहत अनुमति लेनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें :अब कंगना ने की चीनी सामान के बहिष्कार की अपील, सोशल मीडिया पर जारी किया वीडियो

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश को ऊर्जा राज्य के नाम से जाना जाता है, लेकिन कुल्लू के तीन गावों में अभी भी अंधेरा छाया हुआ है. यहां के बाशिंदों को मोमबत्ती या लालटेन के सहारे जीवन गुजारन पड़ रहा है. जानकारी के मुताबिक बंजार उपमंडल की सैंज घाटी के तीन गांवों शाक्टी, मरौड़ व शुघाड़ में बिजली नहीं है. इस कारण 200 लोगों की आबादी वाले इन गांवों में न तो टीवी चलता है न ही मोबाइल फोन काम करता है.

शाक्टी, मरौड़ और शुघाड़ गांव के लिए कुछ समय पूर्व सोलर पैनल कनेक्शन दिए गए, लेकिन विद्युत विभाग की लाइन अभी तक नहीं पहुंच पाई. प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आते ही ग्रामीणों में उम्मीद की किरण जगी थी, लेकिन कब पूरी होगी पता नहीं. दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत तीनों गांवों के लिए 1.30 लाख रुपये से बिजली पहुंचाई जानी थी. योजना के तहत विद्युत विभाग ने टेंडर प्रकिया शुरू की. बिजली के खंभे और अन्य सामग्री भी गांवों में पहुंचाई गई.

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ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में आते गांव

सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये गांव ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क शमशी के तहत आते हैं. सैंक्चुअरी क्षेत्र होने के कारण वाइल्ड लाइफ विक ने काम पर रोक लगा दी. काम के लिए विद्युत विभाग को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) के तहत अनुमति लेनी चाहिए थी, जो नहीं ली गई. बंजार के विधायक सुरेंद्र शौरी ने गत दिनों हुई बैठक में यह मुद्दा उठाया था. इसके बाद आनन-फानन में विभाग के अधिकारियों ने इस संबंध में काम शुरू कर दिया.

जल्द जताएंगे विरोध
स्थानीय निवासी, मोती राम, प्रेम सिंह, शेर सिंह, दुले राम व जीत राम ने बताया कि छह महीने पहले यहां बिजली के खंभे पहुंचाए गए.अब ग्रामीण इन खंभों को वापस नहीं ले जाने देंगे. शाक्टी, मरौड़ और शुघाड़ गांव में आजादी के कई साल बाद भी बिजली न होना हैरान करने वाला. सैंज संयुक्त संघर्ष समिति अध्यक्ष महेश शर्मा ने बताया कि गांव तक न तो सड़क सुविधा है और न ही बिजली की. सैंज संयुक्त संघर्ष समिति जल्द विरोध जताएगी. बता दें कि ये गांव ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के तहत आते हैं. इन गांवों में सड़क-बिजली की सुविधा पहुंचाने के लिए वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) के तहत अनुमति लेनी पड़ती है.

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