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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में दिखेगी कुल्लू दशहरे की झांकी, लोगों में खुशी का माहौल

26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड़ की झांकी में इस बार हिमाचल के कुल्लू के दो देवरथ और 30 देवलु अंतरराष्ट्रीय दशहरे की झलक पेश करेंगे. देवरथों की शोभा बढ़ाने के लिए ढोल, नगाड़े, करनाल, नरसिंगों को बजाने वाले बजंतरी भी साथ होंगे. दोनों देवताओं के साथ कुल 30 देवलु भी होंगे.

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Published : Jan 24, 2020, 3:23 PM IST

Kullu's Dussehra will be seen in Delhi's Rajpath
दिल्ली के राजपथ में दिखेगा कुल्लू का दशहरा

कुल्लू : 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड़ की झांकी में इस बार हिमाचल के कुल्लू के दो देवरथ और 30 देवलु अंतरराष्ट्रीय दशहरे की झलक पेश करेंगे. देवरथों की शोभा बढ़ाने के लिए ढोल, नगाड़े, करनाल, नरसिंगों को बजाने वाले बजंतरी भी साथ होंगे.

इस बार गणतंत्र दिवस पर कुल्लू दशहरा की झांकी दिखाए जाने पर स्थानीय लोग काफी खुश हैं. लोगों का कहना है कि गणतंत्र दिवस पर दशहरे की झांकी को पूरी दुनिया देखेगी. इससे कुल्लू की संस्कृति और दशहरे को विश्व में बड़े स्तर पर पहचान मिलेगी. इससे कुल्लू में पर्यटन भी बढ़ेगा.

वीडियो रिपोर्ट

वहीं, देवताओं के साथ निशानदार, छतरी, ढोल, नगाड़, करनाल, नरसिंगों, गूर, पुजारी भी होंगे. जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में होने वाली झांकी के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है. इसके साथ 30 सदस्यों का दल भी दिल्ली गया है. भाषा और संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक और नोडल ऑफिसर राजकुमार सकलानी ने कहा कि राजपथ में इस बार विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा की झांकी प्रदर्शित की जा रही है.

वर्ष 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह की ओर शुरू किया कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है. 369 सालों से पहले राजवंश और अब प्रशासन हर बार 300 के करीब घाटी के देवी-देवताओं को दशहरे का न्योता देता आ रहा है.

कुल्लू : 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड़ की झांकी में इस बार हिमाचल के कुल्लू के दो देवरथ और 30 देवलु अंतरराष्ट्रीय दशहरे की झलक पेश करेंगे. देवरथों की शोभा बढ़ाने के लिए ढोल, नगाड़े, करनाल, नरसिंगों को बजाने वाले बजंतरी भी साथ होंगे.

इस बार गणतंत्र दिवस पर कुल्लू दशहरा की झांकी दिखाए जाने पर स्थानीय लोग काफी खुश हैं. लोगों का कहना है कि गणतंत्र दिवस पर दशहरे की झांकी को पूरी दुनिया देखेगी. इससे कुल्लू की संस्कृति और दशहरे को विश्व में बड़े स्तर पर पहचान मिलेगी. इससे कुल्लू में पर्यटन भी बढ़ेगा.

वीडियो रिपोर्ट

वहीं, देवताओं के साथ निशानदार, छतरी, ढोल, नगाड़, करनाल, नरसिंगों, गूर, पुजारी भी होंगे. जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में होने वाली झांकी के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है. इसके साथ 30 सदस्यों का दल भी दिल्ली गया है. भाषा और संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक और नोडल ऑफिसर राजकुमार सकलानी ने कहा कि राजपथ में इस बार विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा की झांकी प्रदर्शित की जा रही है.

वर्ष 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह की ओर शुरू किया कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है. 369 सालों से पहले राजवंश और अब प्रशासन हर बार 300 के करीब घाटी के देवी-देवताओं को दशहरे का न्योता देता आ रहा है.

Intro:दिल्ली के राजपथ में दिखेगा कुल्लू का दशहरा
ढोल नगाड़ों के साथ राजपथ पर चलेंगे देवलु

बाईट: श्याम कुल्लुवी, स्थानीय
बाईट: सुनीला ठाकुर, जिला भाषा अधिकारीBody:


26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड़ की झांकी में इस बार हिमाचल के कुल्लू के दो देवरथ और 30 देवलु अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे की झलक पेश करेंगे। देवरथों की शोभा बढ़ाने के लिए ढोल, नगाड़े, करनाल, नरसिंगों को बजाने वाले बजंतरी भी साथ होंगे। दोनों देवताओं के साथ कुल 30 देवलु भी होंगे। झांकी के माध्यम से कुल्लू दशहरा की देव संस्कृति को दिखाया जाएगा। झांकी में शामिल होने के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है। राजपथ पर दिखने वाली झांकी में सभी देवताओं के देवरथों को दिखाना संभव नहीं था। राजपथ पर दिखने वाली कुल्लू दशहरा की झांकी में जहां देवताओं के रथ दिखाए जाएंगे। वहीं देवताओं के साथ निशानदार, छतरी, ढोल, नगाड़, करनाल, नरसिंगों, गूर, पुजारी भी होंगे। जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में होने वाली झांकी के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है। इसके साथ 30 सदस्यों का दल भी दिल्ली गया है। भाषा और संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक और नोडल ऑफिसर राजकुमार सकलानी ने कहा कि राजपथ में इस बार विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा की झांकी प्रदर्शित की जा रही है। Conclusion:


कुल्लू दशहरा के लिए 369 साल पहले राजा जगत सिंह ने देवताओं को बुलाने के लिए न्योता देने की परंपरा शुरू की जो आज भी चली आ रही है। बिना न्योते के देवता अपने मूल स्थान से कदम नहीं उठाते। वर्ष 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह की ओर शुरू किया कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। 369 सालों से पहले राजवंश और अब प्रशासन हर बार 300 के करीब घाटी के देवी-देवताओं को दशहरे का न्योता देता आ रहा है।

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