कुल्लू: जिला कुल्लू के थरास के समीप मकराहड़ में देवता मार्कंडेय ऋषि थरास ने शुक्रवार को हजारों देवलुओं व भक्तों के साथ ब्यास व गोमती नदी के तट पर पवित्र स्नान किया. वहीं धरती पर लेटकर दूध पीने की रस्म भी निभाई गई. इस पवित्र रस्म को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और धार्मिक परंपराओं का विधि पूर्वक निर्वहन किया गया. मौके पर पहुंचे श्रद्धालुओं के अनुसार यहां देवता का यह पर्व प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया गया और धरती माता का दूध पीने की रस्में यहां निभाई गई.
हजारों श्रद्धालुओं के साथ देवता ने किया पवित्र स्नान: मान्यता है कि यहां जो देवता का मोहरा जमीन में खेत जुताई के समय मिला था जो आज भी यहां मौजूद है. वहीं, इस दिन यहां पवित्र स्नान करने से चर्मरोग से छुटकारा मिलता है. यहां शैतानों को पत्थर मारने की पुरानी परम्परा आज के समय में भी कायम है, जिसे स्नान से पूर्व सांकेतिक रूप से निभाया गया. सुबह 11 बजे देवता थरास गांव से देवलुओं के साथ अपने प्राचीन मंदिर मकराहड़ पहुंचे और यहां पूजा के बाद देवता के कारकून उल्टे पैर ब्यास और गोमती नदी के तट पर स्थित संगम की ओर देवता के संग चले. इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने देवता के साथ ब्यास नदी में स्नान किया और बोतलों में पानी भर घर ले गए.
देवता ने किया धरती मां का स्तनपान: इसके उपरांत देवता मार्कंडेय ऋषि थरास उस खेत में पहुंचे जहां सदियों पूर्व एक महिला को देवता का मोहरा मिला था. यहां पहुंचते ही देवता धरती मां के आंचल से लिपट गए और तीन बार धरती मां का स्पर्श किया. बार-बार देवरथ वापस आता रहा और धरती मां का स्तनपान किया. मान्यता है कि इस वक्त धरती फट जाती है और बालक रूपी ऋषि को अपनी गोद में लेकर दुलार कर दूध पिलाती है. इस दौरान हजारों लोग इस एतिहासिक पल के गवाह बने. मंदिर पहुंचकर देवता के गुर ने भविष्यवाणी करते हुए सुख शांति का संदेश दिया.
देवता के कारदार जीवन प्रकाश, भक्त हरीश शर्मा, दिनेश कुमार, पुरुषोत्तम शर्मा का कहना है कि हर साल यह पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है और देवता सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं. वहीं, इस दिन संगम स्थल पर स्नान करने से कई तरह के रोगों से भी श्रद्धालुओं को मुक्ति मिलती है.
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