धर्मशाला: विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मैक्लोडगंज में बीओटी बस स्टैंड में विवादित अवैध निर्माण के मामले पर सर्वाेच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने बीओटी के तहत निर्मित किए गए, इस भवन में अवैध रूप से तैयार किए गए होटल और रेस्टोरेंट को तोड़ने के आदेश जारी किए हैं. 2 सप्ताह के भीतर संबंधित कंपनी को इसे तोड़ने के लिए कहा है.
यदि कंपनी इसे निर्धारित समय में नहीं तोड़ती है, तो 1 माह के भीतर इस अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए जिला प्रशासन और वन विभाग को आदेश दिए गए हैं. मैकलोडगंज बस अड्डे के निर्माण के गड़बड़झाले पर सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे को गिराने के आदेश के बाद अब इसका निर्माण करने वाली कंपनी सहित कई विभागों के तत्कालीन अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी.
कानून की बड़ी जीत
बता दें कि सुप्रीमकोर्ट में तीन न्यायाधीशों न्यायमूर्ति डॉ.धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा, न्यायमूर्ति इंदिरा बेनर्जी की बैंच ने मंगलवार को सिविल अपील पर यह फैसला सुनाया है. याचिकाकर्ता ने इसे कानून की बड़ी जीत करार दिया है. इस संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी फैसला सुनाया था. देश के शीर्ष कोर्ट के निर्देश पर ही जिला एवं सत्र न्यायाधीश कांगड़ा को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था. उन्होंने साल 2018 में मामले की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी.
इसमें गैरकानूनी निर्माण के लिए कई विभागों, संस्थानों के अधिकारियों, कर्मियों को जिम्मेवार ठहराया गया था. इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की गई थी लेकिन, सरकार ने इसके आधार पर कार्रवाई नहीं की.
9 सितंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर, 2016 को सिविल अपील के आधार पर आदेश दिए थे कि बस अड्डे के निर्माण से जुड़े आरोपों की जिला एवं सत्र न्यायाधीश से जांच करवाई जाए. किन हालत में बस अड्डे, होटल, व्यावसायिक कॉन्प्लेक्स का निर्माण हुआ, इसकी गहनता से जांच हो.
इसमें अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका क्या रही, इसका भी खुलासा हो. जिला न्यायाधीश को इस केस में प्रेजेंटिग ऑफिसर नियुक्त करने को कहा गया था. प्रदेश के तत्कालीन प्रधान सचिव गृह ने 17 अप्रैल 2017 को जिला न्यायवादी को प्रेजेंटिग ऑफिसर यानी पीओ नियुक्त किया गया था.
बस अड्डे के निर्माण में बड़ा गड़बड़झाला
जिला एवं सत्र न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पर्यटन स्थल मैक्लोडगंज में बस अड्डे के निर्माण में बड़ा गड़बड़झाला हुआ. आरोप था कि गैर कानूनी तरीके से निर्माण हुआ है. न तो नगर नियोजन विभाग से नक्शा पास हुआ और न ही फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट के तहत अनुमति ली गई.
प्रशासनिक अधिकारी, टीसीपी से लेकर वन अधिकारियों ने आंखें मूंदे रखी. बिना इजाजत लैंड यूज चेंज कर दिया. जहां बस अड्डा बनना था, वहां होटल बना दिया. जिस कार्य के लिए स्वीकृति ली गई थी, मौके पर उसके विपरीत हुआ. इस कारण इसे गैर कानूनी माना गया.
कमेटी ने अफसरों को माना दोषी
एनजीटी ने इसके निर्माण पर न केवल रोक लगाई थी बल्कि गैर कानूनी निर्माण को गिराने के आदेश दिए थे. इसके लिए कमेटी गठित भी की थी. कमेटी ने अपनी सिफारिशों में कई अफसरों को दोषी माना था, लेकिन पूर्व कांग्रेस सरकार ने न तो अधिकारियों पर कार्रवाई की और न ही निर्माण को गिराया.
पीपीपी मोड पर किया गया था व्यावसायिक कांप्लेक्स का निर्माण
बता दें कि बस अड्डे और व्यावसायिक कॉन्प्लेक्स का निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी मोड पर किया गया. आरोप है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार निर्माण करने वाली कंपनी पर पूरी तरह से मेहरबान रही. सरकार को राजस्व का भी नुकसान हुआ. एनजीटी के फैसले के खिलाफ पूर्व सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली.
याचिकाकर्ता ने जताई खुशी
इस मामले के फैसले को लेकर याचिकाकर्ता अतुल भारद्वाज ने खुशी जताई है उनका कहना है कि सुप्रीमकोर्ट ने बस अड्डे को गिराने का आदेश दिया है. निर्माण के दौरान एफसीए के प्रावधानों की उल्लंघना हुई है. लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद राहत मिली है. कोर्ट में तथ्य पेश किए गए थे. सुप्रीमकोर्ट ने ही जांच करवाई थी. हमने इस रिपोर्ट को लागू करने का आग्रह किया था.
कंपनी से लिया जाएगा अवैध निर्माण को तोड़ने का खर्चा
वन विभाग कांगड़ा के मुख्य अरण्यपाल प्रदीप ठाकुर में कहा कि जिला प्रशासन और वन विभाग इस अवैध निर्माण को तोड़ता है तो इसका खर्चा संबंधित कंपनी से लिया जाएगा. वहीं इस स्थान को केवल नियमों के तहत प्रदान की गई अनुमति के अनुसार पार्किंग और बस स्टैंड के लिए ही प्रयोग किया जाएगा.